
कुमाऊँ के लोकदेवता - ऐड़ी देवता
लेखक: दुर्गा दत्त जोशी
ऐड़ी राजपूतों में एक पराक्रमी वीर पैदा हुए उनका नाम ऐड़ी है। ऐड़ी को कुछ लोगअर्जुन का अवतार व कुछ शिव का अंश भी मानते हैं। कहते हैं ऐड़ी बहुत बड़ा पहलवान व महाबली थे।ऐड़ी को शिकार खेलने का शौक था। ऐड़ी का निशाना अचूक था। मृत्यु के बाद ऐड़ी बालकों व औरतों व लोगों को चिपटने लगे। नचाने पर कहने लगे, "वह ऐड़ी है।" उसको हलवा पूरी बकरा आदि चढाकर उसकी पूजा करो तो वह चिपटना छोड़ देगा।"
कालांतर में पूरे कुमाऊं में ऐड़ी की पूजा होने लगी। काली कुमाऊं में ऐड़ी के बहुत मंदिर हैं। ऐड़ी को पहाड़ों की चोटियों में चढ़कर शिकार खेलने का शौक है। ऐड़ी की डांडी ले जाने वाले "साऊ भाऊ" कहे जाते हैं। कहते हैं जो ऐड़ी के कुत्ते का भौंकना सुनता है वह अवश्य कष्ट पाता है। ए कुत्ते ऐड़ी के साथ ही रहते हैं उनके गले में घंटियां बंधी होती है। शिकार के लिए जानवरों को घेरने का काम परियां करती हैं जिन्हें "आंचरी-किंचरी" कहते हैं। इनके पैर पीछे को होते हैं। परियां इनके साथ नाचती हैं।
धनुष बाण ऐड़ी के आयुध हैं।
कभी कभी जंगल में बिना जख्म का जानवर मरा मिलता है तो उसे ऐड़ी का मारा हुआ
मानते हैं। कहते हैं कभी कभी ऐड़ी का चलाया हुआ तीर छत के आले से " मकान से
धुंवा निकालने का छेद " घुस आता है। जब किसी मनुष्य को वह लगता है उसके
शरीर को लकवा मार जाता है वह लुंज पुंज हो जाता है। उसकी कमर टूट जाती
है।उसका बदन सूख जाता है। हाथ पैर कांपने लगते हैं। इस बाबत पहाड़ी किस्सा
है, " डाल मुणि से जाणो जाला मुणि नी सेणों " पेड़ के नीचे सो जाना, पर आले
के नीचे मत सोना"।
रात में ऐड़ी की सवारी आते जाते कुछ लोग देख भी लेते हैं। झिझाण गांव के एक किसान जो किसी काम से गांव के बाहर गया था , चांदनी रात थी । यकायक उसे कुत्तों के गले की घंटियों की और जानवरों को घेरने की आवाज आयी। किसान ने पहचान लिया कि यह ऐड़ी ही हैं। किसान ने उनकी डांडी पकड़ ली, छौड़ने को बहुत कहा परंतु उस वीर किसान ने उसे छोड़ा नहीं। तब ऐड़ी ने उससे बरदान मांगने को कहा। उस किसान ने बरदान में अपने गांव में ऐड़ी को न आना मांगा, और ऐड़ी ने स्वीकार किया।
कहते हैं ऐड़ी के चार हाथ होते हैं जो अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित हैं। चैत्र की नवरात्रियों में ऐड़ी की दश दिन पूजा होती है।पूजने वाले डंगरिए गेरूवे रंग का कपड़ा सिर पर बाधते हैं। दिन में दो बार नहाते हैं और एक समय भोजन करते हैं। अपने आप को किसी को छूने नहीं देते। इनको दूध मिठाई नारियल बकरा चढ़ता है। लाल रंग का झंडा फहराते हैं। पत्थरों की पूजा होती है, त्रिसूल व धनुष आदि थान में रखते हैं।
संदर्भ ग्रंथ कुमाऊं का इतिहास
दुर्गा दत्त जोशी जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा से साभार
दुर्गा दत्त जोशी जी के फेसबुक प्रोफाइल विजिट करे
2 टिप्पणियाँ
Glt jaankari
जवाब देंहटाएंग़लत जानकारी है
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