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यस भल् जै के हूँ पै

यस भल् जै के हूँ पै -कुमाऊँनी कविता,kumaoni poem about good habits,kumaoni bhasha ki kavita, kumaoni kavita

यस भल् जै के हूँ पै!

रचनाकार: हीरा बल्लभ पाठक

पड़ोसक् झगड़
बैरिक् दगड़
भल् जै के हूँ पै?
*
पुराणि दगड़ तकरार
न्यौलि दगड़ प्यार
भल् जै के हूँ पै?
*
मुख पार् चुपड़ि
मन में दुहरि
भल् जै के हूँ पै?
*
भ्यार् हूँ माँछ
भित्येर हूँ स्याप
भल् जै के हूँ पै?
*
कांसक् फूटी भान्
द्याप्तक् उजड़ी थान
भ्योव पारिक् मकान
और उधारैकि दुकान
भल् जै के हूँ पै?
*
द्वी दिनैंकि जिन्नगी 
प्रेमैंल् रूंण चैं 
ओंतर्याट् फोंतर्याट 
भल् जै के हूँ पै?
*
अहो दाज्यु! तुमत् सिद्द मैंस भ्या
बिल्कुल द्यप्त् जस्
म्यर् चारि उजड्ड और सनकी
भल् जै के हूँ पै?
*
इक्वाड़ बल्द, टुटी हौव
खेतम् कुरी बुज
नान्तिन् परदेश
बुड़-बाड़ि उदेखम्
भल् जै के हूँ पै?
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हीरावल्लभ पाठक (निर्मल)
स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर,रामनगर
 
हीरा बल्लभ पाठक जी द्वारा फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी पर पोस्ट

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