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म्यर गौं - कुमाऊँनी कविता

 
म्यर गौं - कुमाऊँनी कविता,poem in kumaoni describing native village,apne gan par kumaoni kavita

म्यर गौं 

रचनाकार: रमेश हितैषी
                   
यौ म्यर गौं झिमारा, येती बोलि छ न्यार न्यारा।  
भल बण पंछी अधारा, जग जगौं में पाणि धारा। 
  
पूरब में छौ बजारा, उत्तर में धुर जंगव गजारा।  
दक्षिण में गाढ़ गध्यरा, पश्चिमम गढ़वाल प्यारा। 
 
 येतिक भल छ कारोबारा, दूर डनोमें इनरि सारा।  
मल बाखई कूलल सीजाव, स्यर सै गई सुनारा।

बकर भैसों व्यौपारा, येती लिस मर्चक ठ्यकदारा।  
धामि कामी मिस्त्री, येतिक मीठि बोलि मेसलदारा।

 रंगिल लोग कौतक्यार, होरि झ्वड़ दरिक जिलारा।  
भाबरि बल्दुका टकदारा, द्वी भै सेठ अर सौकारा।

सामणी झिंडी ढै छौ पारा, म्यर गौं झिमार वारा।  
सात बाखई इतनु ठुल गौं, मारि गे पलायन मारा।

सर्वाधिकार@सुरक्षित, 
जून ३०, २०२१

श्री रमेश हितैषी
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