'

बिरुड़ पंचमी और सातूं-आठूं

बिरुड़ पंचमी और सातूं-आठूं, Birud Panchami aur Satu Athun pooja in kumaon, kumaon mein dubde ka vrat aur satu athun pooja


बिरुड़ पंचमी और सातूं-आठूं

लेखक: विनोद पन्त 'खन्तोली'

आज सातू आठू पर बचपन की बातें कुछ यादें ताजा हो गयी।  हमारा गांव एक बडा गांव है, कई मोहल्ले थे, जगह जगह सातूं आठूं की पूजा होती थी।  बचपन में मैं भी ईजा ( माताजी) के साथ सातूं-आठूं(सप्तमी अष्टमी ) की पूजा में जाता था।  वहां पर पूजा करते हुए देखता था, मैं ही नही और बच्चे भी अपनी ईजा के साथ वहां होते।  हम बच्चे कुछ देर पूजा देखते महिलाओ द्वारा गाये जाने वाले गीत सुनते फिर खेलने लग जाते।  तब की कुछ स्मतृियां मन मस्तिष्क में थी कुछ जो विस्मृत हो गयी थी वो आज ईजा से पूछा तो सभी यादें ताजा हो गयी।

मेरा घर दो मोहल्लों से के बीच में था, हमारा घर जहां पर था वो धार में कहलाता।  धार में ग्वालुखा और भरनौला नाकुडा और तेकुडा मोहल्लों के बीच में था।  ईजा कभी ग्वालुखा प्रेमबल्लभ बडबाज्यू के यहां तो कभी नाकुडा तारादत्त चाचाजी के यहां पूजा के लिए जाती थी।  तो मैने दोनो जगह की सातूं-आठूं देखी है, भाद्रपद कृष्ण पक्ष पंचमी के दिन बिरुड भिगाने से शुरुआत होती थी।  बिरुड में पांच या सात अनाज भिगोये जाते थे, जिन्हें पंच-बिरुड कहा जाता है।  बिरुड भिगाने के साथ एक पोटली भी बनायी जाती थी जिसे कुटुरि कहा जाता है।  कुटुरि में गेहूं और सरसों के साथ कच्ची हल्दी दूब और एक फल डाला जाता है।  बिरुड भिगाने में जो अनाज डाले जाते हैं वो पांच घरों से मागे जाते थे और लोगों को दिये भी जाते थे मतलब एक दूसरे से मागे और दिये जाते हैं।  शायद ये परम्परा आपस में मेल मिलाप और सामूहिक को बढावा देने के लिए किये जाते होगे।

फिर सप्तमी के दिन फिर बिरुड धोने के लिए नौले या धारे पर जाते हैं।  वहां सिर्फ बिरुडे ही ले जाते हैं कुटुरि घर ही रहती है, वहां पर बिरुड धोये जाते हैं।   बिरुड के पानी से नहाया भी जाता है फिर पांच पत्तों में पांच जगह बिरुड रखे जाते हैं।  फिर सभी महिलाए एक घर में जाऐगी, वहां पर गौरा महेश्वर बनाये जाते हैं।  गौरा महेश्वर जिन चीजों से बनाये जाते हैं उनको डाई बोट कहते हैं जो कि अनाज के पौधे और कुछ फल के पेडों की टहनियों और फूल के पौधे से बनाये जाते हैं।  जिनमें मुख्यतया धान, मादिरा, कौणी, तिल, गुबरि कटारि(एक जंगली पौंधा) फूल, आडु की टहनी आदि से बनाये जाते हैं।

गौरा महेश्वर को वस्त्र आभूषण पहनाये जाते हैं, श्रृगार आदि किया जाता है।  गौरा महेश्वर को बर और ब्योली(दुल्हा दुल्हन) सा सजाया जाता है।  उन्हें बर ब्योली को पहनायी जाने वाले मुकुट भी पहनाते हैं।  खास बात ये है कि ये मुकुट नये नहीं खरीदे जाते बल्कि किसी बर ब्योली के उतारे गये जिन्हैॆ नौले में सिला दिया जाता है वही पहनाये जाते हैं।  असल में कुमाऊ में बिवाह के बाद दूल्हा दुल्हन के मुकुट नौले में रख दिये जाते हैं।  उन्हें कोई दूसरा उठाकर अपने घर ले जाता है और रख देता है, कहते हैं कि ये मुकुट बर ब्योली को दुबारा नही दिखाते।  गौरा महेश्वर को तैयार करने में जब डाई बोट लगाये जाते हैं तब महिलऐ गीत भी गाती हैं -
पूरब दिशा हेरो फेरो नै पाई डाई बोट रे,
जाना जाना बद्रीनाथ वैं पायो डाई बोट रे,
महिलाऐ और भी बहुत से मंगल गीत गाती हैं।

फिर पूजा के उपरान्त कुटुरि वहीं रखकर महिलाऐ घर आ जाती हैं।  फिर आंठू के दिन पुन: बिधि विधान से पूजा की जाती है, गाय के गोबर से एक कुण्ड बनाया है।  उसमें दूध और जल मिलाकर दूब से सभी महिलाओ को स्नान कराया जाता है।  उस समय कहते हैॆ -
कां नांछा माई (कहां स्नान करोगे माई)
हरी हरिद्वार, बद्री केदार, गया जगन्नाथ
फिर अपने गांव के नौले धारों का नाम लेते हैं।
सबै नै राखौ कौय बल ------होय .

फिर ननद भौजी कुटुरि छिपाने खोजने का खेल खेलते हैं,  ननद छुपाती है भाभी ढूढती है  फिर भाभी छुपाएगी ननद ढूढकर लाती है।  फिर कुटुरि को आंचल से छाया करके पूछते हैं-
ईश्वर घर -पार्वती ज्यू लि कि कि दि राखौ बल होय
फिर कहते हैं-
यमें हीरा लाल मोत्यूं सबै दी राखन बल होय .
फिर कुटुरि खोलकर आटे से कुटुरि सफेद की जाती है जिसे कुटुरि पूर्यूण कहते हैं।
फिर बारी आती है कुटुरि के माध्यम से परिवार के सगस्यों की लम्बी उम्र की कामना करने की।  आटे से कुटुरि के अन्दर की सामग्री को सफेद (फुलूण) करके कहते हैं-
फलांण फुल गो बल होय...
परिवार के मुखिया से लेकर छोटे बच्चों तक फुलना मतलब बाल सफेद होना।  ये लम्बी उम्र और समृद्धि का परिचायक है।  फिर एक दूसरे से अपने परिवार को फुलवाते हैं (वही सांकेतिक तरीका)।  फिर बीण भाट की कथा सुनाई जाती है, एक लोटे में एक एक गेहूॆ का दाना डालकर कथा कही जाती है।  यहां पर एक किंवदन्ती है कि दाना एक एक ही डालमा होता है दो दाने डाले तो जुडवा बच्चे होते हैं बल।

फिर अंत में बारी आती है गौरा महेश्वर को सिला दिया जाता है मतलब विसर्जन किया जाता है।  यहां पर एक प्रचलित गीत गाया गाया जाता है-
होलरी बाला....., होलरी
ऐ कोखी से बाला, ये दूदी पे
रडुवा पिनालू की खाणी मेरी बाला
चौगंगा पारै की धाणी मेरी बाला....
इसमें मैं एक  चीज बताना भूल गया, शुरू में सातू के दिन ये गीत भी गाया जाता है -
लाओ रे चेलियो धतूरी का फूल
तुम चेलीन धतूरी पियारी
फूल नी पोंलू के ल्हिबे उलो
फूल नी होलो गोफ टोडी लाये
इस गीत मेॆ फिर बिवाहित और अबिवाहित लडकियों के नाम बोले जाते हैं।  इसी तरह बहुत से गीत और बींण भाट की कथा गीतों के माध्यम से कही जाती है।
इस प्रकार सातू आठूं की पूजा समपन्न हो जाती है।

विनोद पन्त' खन्तोली ' (हरिद्वार), 30-08-2021
M-9411371839

विनोद पंत 'खन्तोली' जी केफ़ेसबुक वॉल से साभार
फोटो सोर्स: गूगल

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ