
छोटा गोखरू (Common Cocklebur)
लेखक: शम्भू नौटियालसंखाहुली या छोटा गोखरू, वानस्पतिक नाम: जैन्थियम स्ट्रूमेरियम (Xanthium strumarium) Synonyms: Xanthium indicum. कुल एस्टेरेसी (Asteraceae: Sunflower family) से संबंधित है। इसे अंग्रेजी में Common Cocklebur, broad bur, burdock datura, clotbur, rough cockleburr, हिन्दी में छोटा धतूरा, छोटा गोखुरू, घाघरा, संखाहुली, बनओकरा, शंकेश्वर तथा संस्कृत में अरिष्ट, मेध्य, सर्पक्षी, भूलग्न, चाँद, कम्बुमालिनी, कीति, शंखकुसुम, शंखमालिनी कहते हैं।
यह वर्ष वार्षिक झाड़ी वाला पौधा भारत में प्रायः सभी स्थानों उत्पन्न होता है। बचपन में इसके कंटकी फल ऊनी कपड़े खासकर स्वेटर पर चिपकाने का खेल खूब खेला था और पशुओं पर भी यदा-कदा दिख जाते हैं। इसके पत्ते एक के पश्चात् एक लगते हैं। ये करीब 4 इंच लम्बे, डंठलयुक्त और हृदयाकृति के होते हैं। इसके पत्तों को दोनों तरफ रुएँ होते हैं। इसके फूल डाली के सिरे पर लगते हैं। इसका बीजकोष अण्डाकृति, चपटा और मुलायम होता है। पुष्पन अगस्त से सितंबर में होता है।

संखाहुली के औषधीय गुण (Medicinal use of Common Cocklebur):
आयुर्वेदिक मतानुसार यह वनस्पति तीक्ष्ण, कसेली, विरेचक, मज्जावर्धक, कृमिनाशक, शीतल, विषनाशक, धातुपरिवर्तक, पौष्टिक; पाचक, ज्वरनिवारक, क्षुधावर्धक, स्वरशोधक, कान्तिवर्द्धक और स्मरणशक्ति को जागृत करने वाली होती है। यह धवलरोग, पित, मृगी, ज्वर और जहरीले जानवरों के डंक पर लाभदायक होती है। बच्चों के दांत निकलने के समय की तकलीफों में भी यह उपयोगी होती है।
शंकेश्वर पसीना लानेवाला, लारवर्धक, कुछ मूत्रल, शामक और शोषनाशक होता है। यह दुनिया के कई देशों में उपयोग में लिया जाता है। मलेरिया ज्वर और जीर्णज्वर में इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर दिया जाता है। चेचक की बीमारी में दाह को कम करने के लिये और दोनों को अच्छी तरह से बाहर निकाल देने के लिये इसका उपयोग किया जाता हैं। इसकी जड़ का रस नासूर, फोड़े और दुष्ट व्रणों के ऊपर लगाने के काम में लिया जाता है। गंडमाला और दाद को मिटाने में सहायक है।

सुश्रुत के मतानुसार यह वनस्पति सर्पदंश में दूसरी ओषधियों के साथ उपयोग में ली जाती है मगर केस और महस्कर के मतानुसार यह वनस्पति सर्प विष में निरुपयोगी होती है। यह वनस्पति विच्छू के विष पर भी यह उपयोगी मानी जाती है। इस पौधे को मलेरिया, गठिया, रोगग्रस्त गुर्दे, तपेदिक के लंबे समय तक चलने वाले मामलों के इलाज में उपयोगी माना जाता है और इसका उपयोग धतूरा स्ट्रैमोनियम के लिए एक मिलावट के रूप में किया जाता है।
जेन्थियम स्ट्रुमरियम के फलों में एनोडीन, जीवाणुरोधी, एंटीफंगल, एंटीमिरियल, एंटीह्यूमैटिक, एंटीस्पास्मोडिक, एंटीट्यूसिव, साइटोटॉक्सिक, हाइपोग्लाइसेमिक जैसे गुण होते हैं। वे आंतरिक राइनाइटिस, साइनसिसिस, कैटरस, गठिया, संधिशोथ, कब्ज, दस्त, और कुष्ठ के उपचार में आंतरिक रूप से उपयोग किया जाता है। जड़ का काढ़ा उच्च बुखार के उपचार में इस्तेमाल किया गया है और महिलाओं को प्रसव के बाद स्वस्थ होने में मदद करने के लिए और स्थानीय लोगों द्वारा मूत्राशय की शिकायतों के उपचार में बीज के काढ़े का उपयोग किया जाता है।

जेथियम स्ट्रूमेरियम के सूखे पत्ते टैनिन का एक स्रोत हैं। जेन्थियम स्ट्रूमेरियम चरने वाले जानवरों के लिए जहरीला है।
श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
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