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कत्यूरी शासन-काल - 12

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कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल - 12


पं. बदरीदत्त पांडे जी के "कुमाऊँ का इतिहास" पर आधारित

वर्तमान में कुमाऊँ का जो इतिहास उपलब्ध है उसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश राज से पहले कुछ वर्षों (१७९० से १८१७) तक कुमाऊँ में गोरखों का शासन रहा जिसका नेतृत्व गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने किया था और वह पश्चिम हिमाचल के कांगड़ा तक पहुँच गया था।  गोरखा राज से पहले चंद राजाओं का शासन रहा।  अब तक जो प्रमाण मिलते हैं उनके अनुसार कुमाऊं में सबसे पहले कत्यूरी शासकों का शासन माना जाता है।  पं. बदरीदत्त पांडे जी ने कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल ईसा के २५०० वर्ष पूर्व से ७०० ई. तक माना है।

१३. भूमिदान

ललितसूरदेव के एक ताम्रपत्र का तो विस्तृत विवरण ऊपर दिया है। दूसरे में जो जमीन दी गई है, वह भी कार्तिकेयपुर से दी गई है।
  1. इन्द्र वक के पास जो जमीन थपलिया सारी में है, वह भी श्रीनारायण भट्टारक को दी गई है। तपोवन में साधु-सन्तों की सेवा के लिये भूमिदान हुआ है । यह तपोवन धौली के किनारे जोशीमठ के ऊपर बताया जाता है।
  2. देशटदेव ने नारायण वर्मन् के क़ब्ज़े का ग्राम यमुना को विजयेश्वर मंदिर को चढ़ाया। ईशाल प्रान्त के शासकों को इसकी सूचना दी गई है।
  3. पद्मटदेव ने टंगनपुर के शासकों को आज्ञा दी है और सुभिक्षराजदेव ने भी टंगनपुर तथा अंतरांग प्रान्त के राजकर्मचारियों को आज्ञा दी है कि अमुक ज़मीन बदरिकाश्रम को चढ़ाई गई है।
  4. सुभिक्षराजदेव के तामपत्र में अनेक नाम हैं, जिनको इस समय पहिचानना कठिन है:--
1- विधिमालका में जमीन जो वच्छेतक के पास है। भेटासारी में ८ नाली।
2- बारीयाल में ४ द्रोण भूमि।
3- बनोलिक में जमीन।
4- कंडायिक से सरना तक जो सुभट्टक की है।
5- सटिक तोक।
6- यच्छसद्द। जो गोचिंटगक के कब्जे में है।
7- तल्लासाट जो बिहान्दक के पास है।
8- शीरा जो वेनवक के हाथ में है।
9- गंगारक जो सोशी जीवक के पास है।
10- पेट्टक, कथा सिल, न्यायपट्टक, बंदीवाला जो आदित्यों के पास है।
11- इच्छावाला, भिहलक, महराजियक, खोराखोहन जो सिलादित्य के पास है।
12- हर्षपुर में जो जमीन पर्बभानु ऊँगक के हाथ में थी, और अब दुर्गा भट्ट की रियासत में है।
13- भरोसिक में नई जमीन जो सिट्टक, उसोक, विजत, दुजन, अतंग, वाचतक और बराह के अधिकार में है।
14- जतिपातोक जो इज्जर में है।
15- समिजीप तथा पैरी का गोदोध जो सत्रक के पुत्रों के पास है।
16- योशिक का धासमेंगक, सिदारा, बलिबर्द और सिला, इहंग, रुल्लथ, तिरिंग, कटनसिल, गन्धोधारिक, पुग, कर्कटथल, डाली-मूलक, जो घरनाग के कब्जे में हैं।
17- दारक जो कटुस्थिक के हाथ में है।
18- रणदावक, लोहारस जो तंगादित्य के अधिकार में हैं।
19- योशिक की भूमि।
20- रत्नावली जो सडायिक के निकट है। जिसकी सीमा यह है-पूर्व में अंडारिगनिक, उत्तर में गंगा, पश्चिम में संकट, दक्षिण में तमेहक-और जो सेनायिक के हाथ में है। इत्यादि जमीनें व गाँवों को अधिकार श्रीनारायण तथा ब्रह्मेश्वर भट्टारकों को दिया गया है। ये लोग दुर्गादेवी-मंदिर के पुजारी थे। इन संस्कृत के नामों का इस समय ठीक-ठीक पता लगाना कठिन काम है।

१४. कत्यूरियों की दिग्विजय

इन राजाओं के राज्याधिकार में जिस-जिस जाति के लोग थे, उनका ब्यौरा भी ताम्रपत्रों में है। अतः इस वृत्तांत को हम यहाँ पर कोष्ठक में दे देते हैं:-

राजा का नाम ताम्रपत्र की तिथि किन जातियों के नाम आये हैं
1. ललितसूरदेव 21 खस, द्रविड़, कलिंग, गौड़, उड, आंध्र, चांडाल।
2. ललितसूरदेव 22 खस, द्रविड़, कलिंग, गौड़, उड, आंध्र, चांडाल, किरात, हूंण, मेढ़।
3. देशटदेव 5 खस, कलिंग, हूंण, गौड़, मेढ़, आंध्र, चांडाल ।
4. पद्मटदेव 25 खस, कलिंग, हूंण, गौड़, मेढ़, चांडाल।
5. सुभिक्षराजदेव 4 खस, कलिंग, हूंण, गौड़, मेढ़, चांडाल।
6. देवपाल देव 33 गौड़, मालव, खस, हूण, कलिंग, कारनाटक, लासात, भोट, मेढ़, अंधारक, चांडाल।

बंगाल के छठे नंबर के लेख में उन जातियों का नाम आना ठीक है, पर कुमाऊँ के कत्यूरी-शासन में दक्षिण की जातियों की नामावली यही सूचित करती है कि या तो उन प्रान्तों के लोग यहाँ आकर बसे होंगे, या संभव है, कभी उन प्रान्तों में भी कत्यूरी-शासनाधिकार रहा हो। कत्यूरियों की दिग्विजय की सूचना ये तामपत्र देते हैं।

विद्वान् लेखक तथा पुरातत्त्वान्वेषी अठकिन्सन साहब यह मत सूचित करते हैं कि कत्यूरी-शासन के शिला-लेख व तामपत्रों के लेखक ने बंगाल के तामपत्रों की नकल की है। सिर्फ भूमि व दानपत्रों का नाम बदलकर बाकी मज़मून वही रहने दिया है। वह कहते हैं कि इस बात का प्रमाण है कि बंगाल के पाल तथा सेन राजा कुमाऊँ में आये हैं। राजा गोपाल का केदार-यात्रा में जाना पहले लिखा गया है। पाल राजाओं के बाद बंगाल में मगध के सेनवंशी राजाओं का राज्योदय हुआ है। जागीश्वर के मंदिर के एक पत्थर में 'माधवसेन' नाम खुदा हुआ है। संभव है, मगध के सेन राजा माधवसेन कुमाऊँ में आये हों। अठकिन्सन यह भी तर्क करते हैं कि संभव है, इन पाल व सेन राजाओं ने कुमाऊँ के कत्यूरियों को भी अपनी दिग्विजय में जीता हो। यही कारण आप मुंगेर, भागलपर तथा कत्यूर के ताम्रपत्रों में सामंजस्य होने का बताते हैं। पर यह बात केवल अनुमान व अनुसंधान है, ऐतिहासिक महत्त्व की नहीं।

पहले तो पालों व सेनों के कुमाऊँ को जीतने की बात कहीं भी इतिहास में नहीं आई है। कत्यूरी राजाओं के वंशज अब तक पाल कहे जाते हैं। संभव है, इन पालों का उन पालों से संबंध हो, और ये पाल भी उसी पाल-वंश के हों, या कुमाऊँ के कत्यूरियों व पालों ने दिग्विजय कर भूमि खंड राज्यों में बाँट ली हो। या कत्यूरी राजाओं के यहाँ इन राजाओं के राजदूत रहते हों, उनसे इनको तामपत्रों की नकलें मिल गई हों या मगध राजाओं के बदरीनाथ, केदारनाथ या जागनाथ-यात्रा को जाने में कत्यूरियों ने उनसे शिला-लेखों की प्रतिलिपि प्राप्त की हो, या कत्यूरियों से सेन व पालों ने सीखी हो, क्योंकि यह बात निर्विवाद है कि कत्यूरी समाट भी बड़े प्रतापी तथा अतुल बलशाली उस समय में हो गये हैं। उनका राज्य दूर-दूर था। पर यह सब अनुमान की बातें हैं, और अनुमान को जहाँ चाहो, दौड़ा लो। तब हम यह दलील कि कत्यूरियों ने सेन या पालों के शिला-लेखों की नकल की है, सहसा मानने को प्रस्तुत नहीं। कत्यूरी राजाओं के सब तामपत्र कार्तिकेयपुर से जारी किये गये हैं, जोशीमठ से एक भी नहीं पाया गया है, इससे यह भी बात सहसा नहीं मानी जाती कि कत्यूरी राजा गढ़वाल से यहाँ आये।

श्रोत: "कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे, अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा,
ईमेल - almorabookdepot@gmail.com, वेबसाइट - www.almorabookdepot.com

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