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पहाड़ी ककड़ी - उत्तराखण्ड का बहुमूल्य उत्पाद

पहाड़ी ककडी में पोषक तत्व तथा मिनरल्स प्रचूर मात्रा में पाये जाते है, himalayan cucumber is grown in hill regions of India

पहाड़ी ककड़ी

उत्तराखण्ड का बहुमूल्य उत्पाद - 40

उत्तराखण्ड के बहुमूल्य उत्पादों की श्रृंखला में आज आपको ऐसे उत्पाद का परिचय कराना चाहते है जो कि लगभग प्रतिदिन किसी ना किसी रूप में हमारे भोजन का खास हिस्सा रहता है। अपनी अलग पहचान के अलावा पहाड़ी ककड़ी सामान्यतः ककडी या खीरा नाम से जानी जाती है लेकिन उच्च पर्वतीय क्षेत्र उगायी जाने वाली ककडी अपने खास स्वाद की वजह से आज अपने आप में एक ब्रांड है जिसको सिर्फ खाने पश्चात ही समझा जा सकता है।

अत्यधिक मांग में रहने वाली पहाड़ी ककड़ी उत्तराखण्ड में बहुतायत उगायी जाती है। इसका वैज्ञानिक नाम Cucumis sativus L. जो की Cucurbitaceae कुल के अंतर्गत आती है। विश्वभर में लगभग सभी जगह उगायी जाने वाली ककडी को अनेकों नामों से जाना जाता है जैसे कि खीरा, ककडी- उर्दू, पेपिनो-स्पेनीस, हुआंग गुआ- चाइनीज, क्यूरी- जापानीस, पिपिगंगना-श्रीलंका आदि। इसके अलावा संपूर्ण भारतवर्ष में लगभग 1600 मी0 (समुद्रतल से) तक की ऊंचाई पर उगाई जाने वाली ककडी को हिन्दी में खीरा, ककडी, बंगाली में साउसा, तमिल में वेलारिका, तेलगू में कीरा डोस्लाया, कन्नड में सवातेकाई, मराठी में सितालचीनी, गुजराती में ककडी, असम में तियोह आदि नामों से जाना जाता है। उत्तराखण्ड में पारम्परिक रूप से पहाडी ककडी को कीचन गार्डन तथा पारम्परिक फसलों के बीच में उगाई जाती है।

सामान्यतः ककडी का उपयोग खाने में सलाद तथा रायते में किया जाता है लेकिन इसके अलावा इसको विभिन्न खाद्य पदार्थों में मिलाकर भी प्रयोग में लाया जाता है जैसे कि पर्वतीय क्षेत्रों में इससे ’बडी’ बनायी जाती है। घरेलू उपयोग के अलावा इसका उपयोग कॉस्मेटिक उत्पाद, आयुर्वेदिक औषधियां तथा एनर्जी ड्रिंक्स बनाने में भी किया जाता है। इसमें एल्केलॉइडस, ग्लाइकोसाइड्स, स्टेरोइड्स, केरोटीन्स, सेपोनिन्स, अमीनो एसिड, फलेवोनोइड्स तथा टेनिन्स आदि रासायनिक अवयव पाये जाते है।

ककडी में पोषक तत्व तथा मिनरल्स प्रचूर मात्रा में पाये जाते है तथा इसमें मौजूद विटामिन्स-’ए’, ’बी’ तथा ’सी’ की मात्रा होने से यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढाने में सहायता करती है। इसमें ऊर्जा-16 किलो कैलोरी, कार्बाइाइड्रेट-3.63 ग्रा0, डाइटरी फाइबर- 0.5 ग्रा0, वसा- 0.11 ग्रा0, प्रोटीन- 0.65 ग्रा0, फोलेट्स- 7.0 मी0ग्रा0, विटामिन ’बी’- 0.25 मि0ग्रा0, विटामिन ’सी’- 2.8 मि0ग्रा0, विटामिन ’k - 16.4 मि0ग्रा0, सोडियम- 2.0 मि0ग्रा0, पोटेशियम- 14.7 मि0ग्रा0, फोस्फोरस- 24 मि0ग्रा0, कैल्शियम- 16 मि0ग्रा0, कॉपर- 0.17 मिग्रा0, आयरन- 0.3 मि0ग्रा0, मैग्नीशियम- 13 मि0ग्रा0, मॅग्नीज़ - 0.08 मि0ग्रा0, फ्लोराइड- 1.3 मि0ग्रा0 तथा जिंक- 0.2 मि0ग्रा0 तक की मात्रा में पाये जाते है।

पहाड़ी ककड़ी का उत्पादन पर्वतीय क्षेत्रों में बिना किसी रासायनिक खाद तथा अन्य कीटनाशक की सहायता से किया जाता है जिसके कारण इसकी अत्यधिक मांग रहती है। एक समाचार पत्र में प्रकाशित लेख के अनुसार पहाड़ी ककड़ी की कीमत मैदानी क्षेत्रों में उगायी जाने वाली ककडी से अधिक होने के बाद भी बाजार में ज्यादा पसंद की जाती है।

उत्तराखण्ड के कुमाऊं तथा गढवाल क्षेत्रों में पहाड़ी ककड़ी का खूब उत्पादन किया जाता है, जो कि स्थानीय काश्तकारों को आर्थिकी का मजबूत विकल्प है। पहाड़ी ककड़ी में प्राकृतिक मिनरल्स तथा विटामिन्स प्रचूर मात्रा में हाने के कारण स्थानीय लोगों द्वारा कृषि कार्यों के दौरान खेतों में एक ऊर्जा के विकल्प में खूब पंसद किया जाता है। पहाड़ी ककड़ी का प्रदेशभर में अच्छा उत्पादन किया जाना चाहिए ताकि इसे प्रदेश की आर्थिकी का ओर मजबूत विकल्प बनाया जा सकें।

डा0 राजेन्द्र डोभाल, पूर्व महानिदेशक,
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्, उत्तराखण्ड।

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