
ना्न्छिनाक अकल-०१
लेखिका: चम्पा पान्डे
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एक दिनक बात इज जैरेयि बण पन, हम द्वि बैणी हौय घर पन, दाद गौरूक ग्वाव जै रछी शायद। हम द्वि बैंणीयांक मन पकोड़ि खांहा हौय, तो हमूल पकोड़ि बनाणक सोचि हो इज कैं पकोड़ि बनाण देखी तो हौय पर पीसी और बेसणक अन्ताज नी हौय।
हमूल ली मणि पीसी और बा्ड् पन बै मणी हरी पतेल-पातेल लै टोड़ि-टाड़ि बे धर, एक द्वि गांठ प्याजक लै काटि।फिर जगायी आ्ग। लरबराटम बज्जरपाड़ी आ्ग लै नी जलि, फिर मणी मट्तेल तौहडाय चूलम! पै पाडि सिलाइ, धम्म कनै आग मुख्खै पर आयि, मुनावक बाब लै भड़ी गा्य्, और लै भड़ैन बास ऐगेइ सारै, पर जे लै हौय आखिर आग जली गोय हो।
फिर धर कढै चुलम, जतु तेल छी डाबम उ सब्बै लौटै दी। आब पीसी छौइ बे उमै अन्ताजल सबै चीज डा्ल दी, तेल कैं गरम लै नी हौंण दी हमूल उमै पकौड़ि पकाहा खित दी, पकौड़ि कैं वरकानै छी फरकानै छी! आदू तो तीराइ कढै मजी चिपीक गोय और आदू ढिन जौस पाकै ना! उ पाकछी लै कसी सुदै बनायी हा्य् ढिन जास, फिर उ वसिकै अदकच्चै निकालि दी। इसकै द्वि चार बनायी हो।
इजक डर लै लागि हेयि कि इज देखिली जब तो रिसालि इसी बर्बादी किलै करण छा कनै। भ्यारह लै चानै रुं रौय।आब पकौड़ि खाणक टैम ऐ गोय हो जस्सै गिजम धरौ तो गज्ज ला्ग् और नूणल कौपिस हयी हा्य, भतेर बै काच्चै हा्य। मट्तेलक बास अलगै आरेयि, पै के करछी एक द्वि खा्य उसकै |मणि बच लै गा्य इतू में दाद लै ऐगौय, एक द्वि वैल लै खा्य। फिर लै मणी आ्य बच गाइ, पै उनुकु गौरु कैं खवै दी, चलो पकौड़िक कहानी तो खतम हैगे पर डबि में जो तेल कम है गोय् उ कसी पुर करि? यौ कलाकारी फिर बतूल कभतै 😀😀😊
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धन्यवाद

*चम्पा *पान्डे*, 25-07-2020
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