
कुमाऊँ अंचल के मेले (Fairs of Kumaun region)
प्राचीन काल से ही हमारे देश में मनाये जाने वाले विभिन्न पर्वों के अवसर पर कई स्थानों पर मेलों के आयोजन की परम्परा रही है। इसी परंपरा के क्रम में हमारे कुमाऊँ अंचल में भी विभिन्न पर्वों के अवसर पर मेले आयोजित होते रहते हैं। इन मेलों में कुछ मेले तो धार्मिक आस्था के कारण आयोजित किये जाते हैं और कुछ मेले धार्मिक आस्था के साथ-साथ व्यापारिक महत्व भी रखते हैं। वैसे आधुनिक तकनीकी युग में यातायात और संचार की सुविधा के कारण मेलों का व्यापारिक महत्व धीरे धीरे कम होता जा रहा है।
मेला किसी नियत स्थान पर नियत समय पर आयोजित किये जाने वाला उत्सव हैं जहां पर जन-समूह की आवश्यकता के वस्तुओं के क्रय-विक्रय हेतु अस्थायी बाजार भी लगाया जाता है। इस प्रकार किसी भी आयोजित होने वाले मेले में हमको आस्था, व्यापार, संस्कृति व मनोरंजन का संगम देखने को मिलता है। मेलों का इतिहास की बात करें तो शायद उतना ही पुराना है जितनी मानव सभ्यता। हमारे देश में देश में सिंधु घाटी सभ्यता के पुरातात्विक अवशेषों में आस्था, व्यापार, संस्कृति व मनोरंजन हेतु पर्व एवं उत्सवों के आयोजित होने के प्रमाण मिलते हैं।
अगर हम मेलों के सांस्कृतिक महत्व की बात करें तो मेले और उत्सव किसी क्षेत्र विशेष के जनजीवन व संस्कृति को समझने का एक सशक्त माध्यम होते हैं। हमारे कुमाऊँ के पहाड़ी क्षेत्र में विषम और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण मेलों के आयोजन का महत्व और भी बढ़ जाता है। शायद धार्मिक पर्वों के अवसर पर किसी धार्मिक स्थल पर आस्था के कारण जुटे जनसमूह की आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मेलों की शुरुवात हुयी होगी। जो समय के साथ व्यापारिक स्तर पर विकसित होते चले गए और व्यापारिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो गये। लेकिन साथ ही इनमें स्थानीय लोक संस्कृति और लोक कलाओं का समावेश भी होता रहा। इस प्रकार यह मेले स्थानीय लोगों को अपनी आवश्यकता की वस्तुएं क्रय करने के साथ ही मनोरंजन और सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रस्तुत करने का अवसर भी प्रदान करते हैं।
मेलों को स्थानीय कुमाऊँनी भाषा में कौतिक कहा जाता है जो हिंदी के कौतुक का अपभ्रंश हो सकता है। क्योंकि मेलों में जाने या प्रतिभाग करने के लिए उस क्षेत्र के नागरिकों में कौतुहल पूरे वर्ष बना रहता है। कुछ दशक पूर्व रंग बिरंगे पोशाकों में लोकगीत गाते और नृत्य करते जनसमूह को मेलों में जाते हुए देखना एक आम दृश्य होता था। मेलों में स्थानीय लोग अस्थायी दुकानों से अपनी पसंद की वस्तुएं प्राप्त करते थे तो विभिन्न पकवानो और मिठाइयों का जायका भी लेते थे। मेलों के विभिन्न रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम एक और जहां लोगों को मनोरंजन प्रदान करते हैं वहीँ स्थानीय कलाकारों को अपनी कला को प्रस्तुत करने तथा स्थानीय संस्कृति के प्रसार का अवसर भी देते हैं।
क्षेत्रवार कुमाऊँ अंचल के विभिन्न स्थानों पर आयोजित होने वाले प्रमुख मेले व स्थान निम्न हैं:-
जनपद
अल्मोड़ा |
नंदादेवी
मेला, रानीखेत
श्रावणी
शिवरात्रि मेला, जागेश्वर
सोमनाथ
मेला, मासी
ओलगिया
नैथड़ा मेला, नैथड़ा
चैत्राष्टमी
मेला, देघाट
चैत्राष्टमी
अग्नेरी मेला, चौखुटिया
दूनागिरी
नवरात्रि मेला, दूनागिरी
गणनाथ
का मेला, सतराली
सैंण
शिवरात्रि मेला, भिकियासैंण
वृष
संक्रांति मेला, मानिला
उत्तरायणी
गिरी मेला, चौखुटिया
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जनपद
बागेश्वर |
महाशिवरात्रि
मेला, बागेश्वर
बैजनाथ
चैत्राष्टमी मेला, गरुड़
नंदादेवी
मेला, डंगोली
हरु
का मेला, थान
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जनपद
पिथौरागढ़ |
मोष्टामाण्डू
मेला, पिथौरागढ़ बालेश्वर
बैशाखी मेला, थल
उत्तरायणी
मेला, थल
गबला
देव मेला, दारमा घाटी
अष्टमी
मेला, गंगोलीहाट
उत्तरायणी
मेला, रामेश्वर
उत्तरायणी
मेला, पंचेश्वर
उत्तरायणी
मेला, पाताल भुवनेश्वर
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जनपद
चम्पावत |
पूर्णागिरी
नवरात्री मेला, टनकपुर वैशाखी
मेला, रीठा साहिब
चैतोला
मेला, गुमदेश
उत्तरायणी
मेला, ब्यानधूरा
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जनपद
नैनीताल |
महाशिवरात्रि
मेला, छोटा कैलाश पिनरौ महाशिवरात्रि
मेला, कोटाबाग उत्तरायणी
मेला, रानीबाग़
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जनपद
उधमसिंह नगर |
नागेश्वर-मोटेश्वर
महाशिवरात्रि मेला, काशीपुर अटारिया मेला, रुद्रपुर रामबाग
महाशिवरात्रि मेला, दिनेशपुर दीपावली मेला, नानकमत्ता झारखंडेश्वर महाशिवरात्रि
मेला, सितारगंज
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