
जसुली - भाग १
लेखक: विनोद पन्त 'खन्तोली'
जसुलि रत्तिब्याण उठ गे, चौमासाक दिन भाय। बेलि रात भर बर्ख भै सरग जोर जोरलि घडम्म चडम्म करणै में भै। कती दूर बजर ठसकणकि जसि आवाज ले भै - ढम्म ....कैबेर। कल्ज कामन हैगे वीक उ बखत, नानू भौ कें काखि लै ले च्याप वीलि कि डर नि जाओ। रात में पाख च्वैंण ले लागि भै कदुकै जाग बटी। भीतर वीलि कन्टर, लोट्टी, थाई परात लगाई भाय च्वैणी जागन पर। टन टन, कन -कन, टप्प-टप्प टिप-टिप हुण लागि भै। बीच में उठबेर उ भान सरूण ले हई भै, भरी जाणाय जल्दी। बर्ख जसि ज के हई भै सुदै सरगै बटी गध्यार बगण लागी भै।
राति में भौ अलगै किकाट करनेर भै बीच बीच में। सौरज्यू रात में भ्यैर जाणाय झाड् पीसाब लिजी। द्वार जब खुलाल तो धर्र कि आवाज करनेर भाय। जसुलि कें पुरि रात नींन नि ऐ, रत्ते नीन उणय पर उठण ले जरूरी भै। को करौल काम फिर देर है जालि तो भैंस क ले टैम गजबजी जानेर भै दूद निकालणा लिजी गोठ बटी अल्लै डुडाट पाडौल - डक्कां-डक्कां, ड्वां-ड्वां कैबेर। सौरज्यू क लिजी पाणि ले गरम करण पडौल, सास कें चहा ले चैल।
जसुलिलि उठ बेर आग जगूण कि कोशिश करि लाकाड बेलि भीतर धरण भुलि गे तो कदुकै सिट सलाई क पाडि हाल सलाई ले स्वेदी जां चौमास में। ठ्यास्स ठ्यास हुनेर भै पर आग नि जग। जसुलि लि लैम्फू बटी मटीतेल चुल हाल.. भक्क कैबेर आग जगण तो बैठ पर तिन लाकाडन बटी धुंग्योई हैगे। खापैलि फूऊऊ.. फूऊऊ करनी छी पर धुंग कम नि भै। आब सास माच करैलि कै ले वीक कल्ज कामन बैठ गे। सासु भीतर ख्वांक-ख्वांक कैबेर खांसण बैठ गे और कूण लागि - कि बज्जर पाडि है यो। सौल मारणी जस करि हालौ, फुक किलै नी मरनई तौ आग? जसुलि लि होय कौय ओर आग फुकणकि कोशिश करण बैठ गे।
आब जरा चुल ले तात गे लाकाड ले सिलक ग्याय और चहा कितलि बटी ले खटखटाट जस पाणि उमवकि आवाज उण लागि गे। कितलिक गडु बटी फ्वा फ्वां फ्वां फ्वां कैबेर भापकि फुंकार उण बैठ गे। जसुलिलि एक चावैलि कितलीक ढक्कन उठैबेर उमें चहापत्ति हाल्। चहापत्ति हालण है पैली सौरज्यू तें उसै चहा निकालि हाल किलैकि उ चहा नि पीनेर भाय उनर तें ज्वाण क पाणि बणूण पडौल। सास कें चाहा दिबेर ऐ तो सासुलि एक टोन्ट मारि हाल - सारै चाहा पत्ती यमैं ई खलकै हालनै.. गौंत जस बणै हालौ..। जसुलि के नि बुलाणि .. यो तो रोजकै काम भै।
जसुलि लि आपुण चहा लोट्टि में ढगिबेर धर हाल, पैली सौरज्यू तैं गरम पाणि करूं नतर उ झुकियै रै जाल। जसुलि पाणि लूण न्हैगे, गोठ बटी पाणि लैबेर एक तौलि में ततूणा लिजी धरणी वाल छी तो भीतर भौ उठि गे। वीलि टिटाट पाणन शुरु करि हाल, सास कें मौक चैन हई भै, कूण लागि यो भौ कें मनूनी (दूध पिलूनी) पैली। आपुणि उजेरि चिरणकि हई भै, पछिल नि पी सकनी तौ चहा। भौ बेलि रात बटी भुकै छ, सिबौ .. पेटन मुरुक पडि रईन यैक। आब जसुलि कें कूण पड - चहा नि पीणयूं.. यो सौरज्यू क लिजी पाणि धरण लागि रयूं, सबुतै कां हैरौ मेकें..।
सास बमकि गे - पैं यो धोपरि में उठली तो कां बटी होल सबुत। हम तो अधराति में उठ जानेर भयां, तसिके हडी बेर हूंछै कारबार। मीलि कि नि कर, काम ले करौ, खेति पाति ले करी, छै नानतिन ले पालन। अच्छायलन एकै में गावगाव ऐ जां ब्वारिनाक, हे भगवान कस बखत आ निमखण रनौ..। हमार जदुक नानतिन हुना कि करना तुम! जसुलि कें आब यस टुकारनैकि सार पडि गे, उ भौ कें दूद पिलूण लागि गे।
भौ कैं दूद पिलाई आदुकै हई भै तो .. भ्यैर बटी सौरज्यू कि आवाज ऐगे - दुल्हैणी ..... ओ दुल्हैणि! पाणि तताछै ईजा त्वीलि, ला धें। जसुलि बिचार कि कूंछी ह्यांक्क रैगे, भौ मनूणा अलबलाट में पाणि तौल चुल में धरण भुलि गे बिचारि। आब कि करूं.. सौरज्यू लि फिर आवाज लगै - ब्वारी .. पाणि ततै हालछै..
जसुलि के बुलाछी .. सास कूण लागि। आपुण मुनई फोडे यो.. परचेत छ परचेत। कथप आग कथप पाणि.. आफि हैबेर ज कि तातौल।
सौरज्यू जै भालै मैंस भै बिचार .. कूण लाग, के बात नि भै ईजा, मी जागि जूल। तू आरामलि कर, मैलि कति जाण ज कि छ। और बुडी कें मैक्याते हुए कूण लाग .. तू पडी पडिये खाप नि खाई कर बुडिया..! बुड़ि मचमचाट लगूण बैठ गे! सौरज्यू लि फिर जसुलि कें धात लगै - दुल्हैणी तब तक ज्वांणौ पाणि लि आ..। जसुलि होय कैबेर ज्वाण क पाणि ततूण बैठ गे। सौरज्यू क चाख में रेडियो खर्र खर्र कैबेर खडबडाट करण लागि गे, मौसम खराब हई भै। जसुलि लि ज्वाण क पाणि दिबेर ऐ सौरज्यू कें। वीलि पाणि ततूण धरि हाल और आब पीणी पाणि लूणा लिजी नौल उज्याणि बाट लागि गे। वीक ख्वार में गगरि और हाथ में एक कन्टरनुमा डाब भै।
विनोद पन्त' खन्तोली ' (हरिद्वार), 22-05-2021
M-9411371839
फोटो सोर्स: गूगल
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