
मानिला देवी मंदिर, सल्ट
उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ/कूर्मांचल क्षेत्र में अल्मोड़ा जनपद को मंदिरों का जनपद भी कहा जा सकता है। मध्यकाल में यह क्षेत्र कत्यूरी राजवंश द्वारा शासित था। बाद में चंद वंश के अधिकार में आने के बाद चंद राजाओं ने यहाँ अनेक मंदिरों का निर्माण कराया था। इसी जनपद के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में चीड़ के वृक्षों से आच्छादित ऊँची पहाड़ी के ढलान पर बसे मानिला गाँव में दो मानिला मंदिर हैं- मानिला मल्ला और मानिला तल्ला। बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव ने वर्ष १४८८ ई० में कराया था।
वर्तमान मंदिर का स्वरूप वर्ष १९७७-७८ में इस मंदिर का जीर्णोद्धार स्थानीय लोगो द्वारा किये जाने के बाद २००९ से पुनर्निर्माण का कार्य किया गया है। मंदिर के अंदर काले पत्थर से निर्मित दुर्गा माता और भगवान विष्णु की सुंदर मूर्तियां स्थापित हैं यह मन्दिर बहुत ही पूराना ओर ऐतिहासिक माना जाता है। पर्यटन की दृष्टि से भी मंदिर का विशेष महत्व है और मंदिर में मां के दर्शन को दूर-दूर से श्रद्धालुओं के साथ ही काफी संख्या में पर्यटक भी पहुंचते हैं। गाँव के नाम मानिला शब्द की उत्पत्ति के विषय में प्रचलित है यह माँ अनिला का अपभ्रंश या संक्षिप्त स्वरूप है।

यह मन्दिर कत्यूरी राजवंश व कत्यूर वासियों की पारिवारिक देवी, माँ मानिला देवी का मंदिर है। मानिला की चोटी से आपको शिवालिक हिमालय और वृहद् हिमालय के एक साथ दर्शन होते हैं। १४ किमी की लम्बाई तक फैला मानिला क्षेत्र तल्ला मानिला और मल्ला मानिला में विभाजित है, तल्ला मानिला समुद्र सतह से लगभग १५०० मीटर की ऊंचाई पर मुख्य सड़क पर तथा मल्ला मानिला लगभग १९५० मीटर की ऊंचाई की चोटी पर स्थित है। मल्ला मानिला में ही मानिला देवी की शक्तिपीठ है, जहाँ पर चारो ओर आपको चीड, देवदार और बांज के वृक्ष बहुतायत में मिलेंगे। अगर मौसम साफ़ हुआ तो बरसात के बाद के समय पर यहाँ से हिमालय की हाथी मत्था से लेकर पंचचुली तक की पर्वत श्रंखलायें और त्रिशूल पर्वत का नजारा देखने को मिलता है
माँ मानिला देवी का यह मन्दिर बहुत ही पूराना ओर ऐतिहासिक है माना जाता है। अल्मोडा के पाली पछायू क्षेत्र में जब कत्यूरी राजा सारंग देव के प्रथम पुत्र बृह्म देव का शासन था। उस समय सन् १४८८ में चन्द्रवंशी राजा कीर्ति चन्द पुरे कुमाऊँ पर अपना अधिकार करने की लालसा से कत्यूरी राज्यों को नरसंहार कर जीतते हुये, भिकियासैण पहुचकर लखनपुर-विराटनगरी (वर्तमान द्वाराहाट-चौखुटिया) पर आक्रमण की तैयारी कर रहे थे। यह सूचना लखनपुर के शासक बृह्म देव को ज्ञात होने पर उन्होंने अपने सुख-सुविधा व स्वाभिमान की परवाह किये बिना बेकसुर प्रजा को कत्ले-आम से बचाने के लिये चंद राजा से सन्धि करके उनको अपनी प्रजा व राज्य सौंप दिया और इस प्रकार पालि-पछाऊं का क्षेत्र चंद शासन के आधीन आ गया। तब लखनपुर के शासक बिरमदेव (राजा ब्रह्मदेव) ने सन् 1488 में मानिला वन में मन्दिर बनाकर "माँ मानिला देवी" की स्थापना की।
मन्दिर दो भागों में बँटा हुआ है जिसे स्थानीय भाषा में मल मानिला (ऊपरी मानिला) और तल मानिला (निचला मानिला) कहते है। प्राचीन मन्दिर तो तल मनीला में ही स्थित है लेकिन मल मानिला मन्दिर के पीछे की कहानी जो स्थानीय लोगो के बीच बहुत प्रचलित है वो ये है कि:
कि एक समय कुछ चोर माता के मन्दिर से उनकी अष्ट धातु की प्रतिमा चुराने गए पूरी प्रतिमा को जब वह नहीं ले जा पाए तो उन्होंने देवी की प्रतिमा का एक हाथ तोड़ा और उसे चुरा कर ले भागे। बहुत दूर तक भागने के बाद जब वे थकने लगे तो वे विश्राम के लिए रुके और मूर्ति का हिस्सा भूमि पर रख दिया। लेकिन विश्राम के बाद जब वह आगे जाने के लिए उठे और देवी के हाथ को उठाने लगे तो वे देवी के उस हाथ को नही उठा सके। उनने कई बार प्रयास किया पर देवी प्रतिमा के हाथ वाले हिस्से को उठा नहीं सके, यहाँ तक कि तब तक भोर हो गयी। किसी को पता चलने के डर से वे प्रतिमा के उस हिस्से को वही छोड़ कर भाग गए।

प्रात:काल में जब कोई गाँव का व्यक्ति वहां से गुजर रहा था तो उसने प्रतिमा के टूटे पड़े हिस्से को देखा और अन्य गामीणो को खबर दी। जिसके बाद में स्थानीय लोगो ने वह पर माता मानिला के मन्दिर की स्थापना की, अब यह मंदिर ही शक्तिपीठ मल्ला मनीला के नाम से जाना जाता है। जनश्रुति के आधार पर बताया जाता है कि पूर्व में "मां मानिला देवी" के प्राचीन मंदिर से करूणामयी मां अपने भक्तों के प्रति वातसल्य रूप में प्रकट होकर आवश्यक निर्देश देती थी। लेकिन तब से मां के यहां स्थापित होने के उपरान्त माँ की दोनों मन्दिरों में पूजा होती है परन्तु मां के प्रत्यक्षदर्शी निर्देशों से क्षेत्र के भक्त अब वंचित हो गये।
माता मानिला का प्राचीन शक्तिपीठ तल्ला मनीला नामक गाँव में है जिसे तल्ला मानिला माता शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। मल्ला मानिला माता शक्तिपीठ तल्ला मनिला से लगभग 0 किलोमीटर दूर ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। देवदार, चीड, बाँज व बुरांस के जंगलो के बीच स्थित यह मन्दिर वास्तव में अनुपम है अनेको बुगयालो के बीच यह शक्तिपीठ देख कर आत्मा को चिर आनंद की अनुभूति होती है तथा माता के दर्शन पा कर भक्तगण मन की शान्ति व आशीष पाने का अनुभव करते है।
कुछ समय पूर्व तक मानिला गाँव सदियों पुरानी अपनी प्राकृतिक छटा को यथावत बनाये रखे था परंतु उत्तराखंड के सृजन के उपरांत गाँवों के नगरीकरण की ऐसी होड़ लग गई है कि मानिला गाँव अब कुछ-कुछ छोटे मैदानी नगर जैसा ही लगने लगा है। लगातार बढ़ती आबादी, दिन प्रतिदिन कटते वृक्ष, घरों के ऊपर पानी की ऊँची टंकियाँ, सड़कों के किनारे खड़े होते बिजली के खम्भे, हाथों में मोबाइल और घरों में टी०वी० तथा रामनगर से आने वाली मुख्य सड़क पर लगी वाहनों की कतार सभी कुछ इस तपोमय भूमि के उच्छृंखल स्वरूप धारण कर लेने की कहानी कह रहे हैं। जिस कारण मुख्य सड़क के किनारे स्थित होने के कारण तल्ला मानिला का पुराना मंदिर अब अपनी नैसर्गिक आभा त्यागकर एक मैदानी मंदिर के व्यापारिक स्वरूप को ओढ़ चुका है।

लेकिन समुद्र तल से लगभग १८०० मीटर की ऊँचाई पर स्थित मल्ला मानिला मंदिर अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण आज भी पहाड़ की अपनी प्राकृतिक कमनीयता पूर्ववत सँजोये हुए है। यद्यपि ग्राम मानिला से इस मंदिर को जाने वाली पहाड़ी पर एक डामरीकरण कर पक्की सड़क बन गई है, पर सड़क के दोनों ओर लगे हुए वृक्षों और झाड़ियों से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है और वहाँ न तो कोई्र निर्माण कार्य हुआ है और न कोई दूकान खुली है। इस प्रकार मल्ला मानिला मंदिर परिसर का क्षेत्र आज भी पूर्ववत चीड़ और बांज के ऊँचे ऊँचे वृक्षों से ढका हुआ है। यहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता देखते ही बनती है, देवदार, चीड़ और बांज के वृक्षों से आच्छादित यहाँ के वन ग्रीष्म ऋतू में तन और मन को शीतलता प्रदान करते हैं।
लगभग पांच सौ पचास वर्ष पूर्व पुराने मां-मानिला देवी मन्दिर का निर्माण कत्यूरवंश के अंतिम राजा ब्रह्मदेव द्वारा करवाया गया था। जिसमें सिस्ट पत्थरों की भगवान लक्ष्मीनारायण की मूर्तियां विराजमान हैं। समय के साथ-साथ अनेकों बार इसका जीर्णोद्घार किया गया, परन्तु मन्दिर का व्यवस्थित तरीके से निर्माण वर्ष 2009 से शुरू हुआ जो अब पूर्ण होने के चरण मे है। नए डिजाइन के साथ मन्दिर का मुख्य द्वार बद्रीनाथ मंदिर के जैसा बनावाया गया है। अब यहां आने वाले श्रद्घालुओं के लिए रात्रि विश्राम की व्यवस्था भी की गयी है।

मानिला देवी मन्दिर आने के लिए यह स्थान रामनगर जो उत्तराखंड का एक प्रमुख नगर और रेलवे स्टेशन है से लगभग ८० किमी की दूरी पर स्थित है। वैसे रेलवे का मुख्य जंक्शन मुरादाबाद है जो रामनगर से लगभग १०० किमी की दूरी पर है। मुरादाबाद या रामनगर से यहाँ तक बस, टैक्सी या निजी वाहन द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है। इस क्षेत्र का यह एक प्रसिद्ध मन्दिर है और हर वर्ष दूर-दूर से लोग यहां देवी के दर्शनों के लिए आते हैं।
यहाँ पर आने के लिए अक्टूबर से लेकर जून तक का महिना बहुत ही उचित है, वैसे अक्टूबर-नवम्बर के समय आपको यहाँ से हिमालय के दर्शन भी हो सकते हैं। यहाँ पर ठहरने के लिए अभी केवल उत्तराँचल बन विभाग और कुमाऊं मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस है। यह एक बहुत रमणीक स्थान है जिसकी सुंदरता से अभिभूत होकर महात्मा गाँधी ने कहा था, "इन दीज हिल्स, नेचर्स ब्यूटी इक्लिप्सेज औल मैन कैन डू।"
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