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आड़ू, बेड़ू, घिंगारू में बेड़ू (Himalayan wild fig)

बेड़ू मध्य हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले अंजीर प्रजाति के जंगली फलों में से एक है। Bedu ya Fedu, Himalayan wild fig, botanical name Ficus palmata forsk,Bedu Pako,Bedu ka fal

"आड़ू, बेड़ू, घिंगारू" में "बेड़ू" (Himalayan wild fig)


आज के समय में बेड़ू शब्द एक तरह से उत्तराखंड का प्रतीक शब्द हो गया है, जिसका कारण है स्व. बिजेंद्र लाल साह जी द्वारा संकलित कुमाऊँनी गीत "बेडू पाको बारा मासा, नारैणा काफल पाको चैत, मेरी छैला।"  यह गीत उत्तराखंड का प्रतीक गीत बन गया है, जहां भी यह गीत सुनाई देगा हर किसी को उत्तराखंड सामने आ जाता है। इस गीत के कारण बेड़ू शब्द भी देश के लोगों की जुबान ओर आ जाता है, चाहे वे लोग बेड़ू के बारे में शायद ही नहीं जानते हों।  वैसे कुमाऊँ में एक फल के रूप में कोई प्रतिष्ठा नहीं है।  स्थानीय भाषा में लोग दुसरे  को तुच्छ दिखाने के लिए कह देते हैं, "कहाँ से आ जाते हैं, जाने आड़ू, बेड़ू, घिंघारू।"

बेड़ू के बारे में हम कह सकते हैं की बेड़ू उत्तराखंड में पाया जाने वाला एक जंगली पहाड़ी फल है जिसे गढ़वाल में फेडू भी बोला जाता है।  यह अंजीर की एक पहाड़ो में पायी जाने वाली जंगली प्रजाति है।  इसका वृक्ष ५ से १० मीटर के लगभग तक ऊंचा हो सकता है, इसके पत्ते आकार में पीपल के पत्तों के बराबर पर गोलाकार और किनारे आरीनुमा होते हैं।  बेडू का फल आकार में गोल लगभग २ सेमी व्यास का, रंग शुरू में हरा और पकने पर हल्के काले जमुनी रंग का होता है।  पकने पर बेड़ू का स्वाद कसैला मीठा होता है जिसके भीतर बीच में बारीक बीज होते हैं और बीज सहित संपूर्ण फल खाने योग्य होता है।  बेडू का एक  पूर्ण विकसित पेड़ अनुकूलित मौसम में 25 किलोग्राम के आस-पास तक फल दे सकता है।

कुमाऊँनी संस्कृति में बेड़ू (Himalayan wild fig in Kumauni Culture):

अगर हम गीत ही बात करेंगे तो उसके बोलों से लोग यह अर्थ निकलते हैं ही या फल बारहों महीने पकता है। लेकिन कुमाऊँनी के प्रसिद्द साहित्यकार श्री पूरन चन्द्र कांडपाल जी ने इस भ्रम की दूर करने के लिए इसका स्पष्टीकरण किया है कि बार मासा का अर्थ बारहों महीने ना होकर कुमाऊनी में बारियो मासा (अर्थात परहेज किये जाने वाले महीने) या सावन/भादो मास से है जो सरकारी कैलेंडर का जुलाई/अगस्त का महीना होता है। पहाड़ो में बेड़ू का फल जून के महीने से फल रूप में विकसित होते हुए पूर्ण रूप से इन्ही दिनों पकता है।

हमारे पहाड़ एक मिथ काफी प्रचलित है की अगर किसी ने तिमिल का फूल देख लिया तो वह बड़ा भाग्यवान होता है।  बेड़ू के तथाकथित फूल का एक फर्जी फोटो भी सोशल मीडिआ पर काफी शेयर किया जाता है।  वैज्ञानिक रूप से वास्तविक सत्यता यह है की बेड़ू और तिमिल (wild Figs) अंजीर परिवार के सदस्य हैं।  अंजीर/तिमिल/बेड़ू (Figs)  वास्तव में फल ना होकर एक संलग्न फूल (enclosed flowers) होते हैं जो अंदर की और (inward) खिलते हैं।  शायद यह अजीब सा प्रतीत होता है लेकिन जब आप एक अंजीर में काटते हैं, तो इसके अंदर सैकड़ों छोटे धागे जैसे फूलों को देख सकते हैं।

बेड़ू का वानस्पतिकी विवरण (Botanical Description of Himalayan wild fig):

वनस्पति विज्ञान के अनुसार बेड़ू का वैज्ञानिक नाम फिकस पामेटा फोर्स्क (Ficus palmata forsk) है।  जिसे आमतौर पर फिगेरा फिग (Fegra Fig) के रूप में जाना जाता है, जो मोरासी (Moraceae) या Urticaceae के कुल का सदस्य है।  यह हिमालयी क्षेत्र में जंगली वृक्ष के रूप में पाया जाता है, इसलिए इसे हिमालयन जंगली अंजीर (Himalayan wild Fig) भी कहा जाता है।  बेड़ू मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिमी भारत और राजस्थान के क्षेत्रों का मूल निवासी है जो समुद्र तल से 1,000 मीटर ऊपर स्थानों पर स्वत: उगने वाले जंगली पेड़ के रूप में पाया जाता है। प्राकृतिक रूप से यह पेड़ ज्यादातर गांवों के आसपास की बंजर भूमि तथा खेतों के किनारे में अधिक उगते हैं तथा जंगलों में कहीं कहीं ही पाए जाते हैं।

बेड़ू के उपयोग (Uses of Himalayan wild fig):

बेड़ू का फल ज्यादातर स्थानीय बच्चे, मवेशी और जंगली पशु खूब चाव से खाते हैं, कुछ लोग बेडू के फलों को मसलकर इसमें नमक मिलाकर भी खाते है। वैसे आम लोगो द्वारा इसे खाने के लिए बहुत ज्यादा पसंद नहीं किया जाता है और वैसे भी इसके कसैले स्वाद के कारण भी इसको अधिक खाया नहीं जा सकता। बेड़ू के वृक्षों की टहनियों और पत्तियों को चारे के रूप में पशुओं को खिलाने के लिए भी प्रयोग  किया जाता है। बेड़ू के तने, टहनियों, पत्तियों तथा फलों से चिपचिपा सफ़ेद द्रव श्रावित होता है जो रंग से दूध जैसा प्रतीत होता है।  जिसके कारण ऐसा माना जाता है कि इसके पत्तियों को चारे के रूप में दूधारू पशुओं को खिलाने से वह अधिक दूध देते हैं।

बेड़ू मध्य हिमालयी क्षेत्र में पाए जाने वाले अंजीर प्रजाति के जंगली फलों में से एक है। Bedu ya Fedu, Himalayan wild fig, botanical name Ficus palmata forsk,Bedu Pako,Bedu ka fal

बेड़ू उत्तराखण्ड के कुमाऊँ तथा गढ़वाल के अलावा भारत के पंजाब, कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल, नेपाल, सिक्किम, अरुणाचल  राज्यों तथा पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, सोमानिया, इथीयोपिया तथा सुडान में भी पाया जाता है। बताया जाता है की विश्व में बेडु की लगभग 800 प्रजातियां पाई जाती हैं।  बेड़ू का फल पकने के बाद किसी भी मीठे रसदार फल की भांति ही होता है।  इसे अगर सीमित मात्रा में खाया जाए तो यह स्वाद में एक कसैला मीठा बहुत ही स्वादिष्ट फल है।   सामान्यत: पहाड़ी क्षेत्रों में जहां भी यह उगता है स्थानीय लोगों के द्वारा पसंद किया जाता है।  कहीं-कहीं इस फल का उपयोग स्क्वैश, जैम और जेली जैसे विभिन्न उत्पादों को बनाने में भी किया जाता है।

बेड़ू के स्थानीय उपयोग की बात करें तो यह एक बहुपयोगी पौधा है जिसका हर भाग उपयोगी होता है।   इसके अलावा भी इसकी छाल, जड़, पत्तियां, फल तथा इससे निकलने वाला सफ़ेद दूध जैसा द्रव (स्थानीय भाषा में चोप) औषधियों के गुणो से भरपूर बताया जाता है।  इसके युवा अंकुरों तथा कच्चे-अधपके फलों का उपयोग गर्मियों की प्रारंभिक सब्जी के रूप में किया जाता है।  जिसके लिए इसके फलों को पहले पानी में थोड़ा राख मिलाकर उबाल लिया जाता है और फिर निचोड़ कर पानी निकाला जाता है। इससे फल का कसैला स्वाद कम हो जाता है फिर इसकी एक अच्छी हरी सब्जी तैयार की जा सकती है।

बेड़ू  के रासायनिक घटक (Chemical composition of Himalyan wild fig):

बेड़ू के फल रसदार होते हैं, जिनमें 45.2% निकालने योग्य रस और 80.5% तक नमी होती है।  बेड़ू के रस में घुलनशील ठोस की कुल मात्रा लगभग 12.1% तक होती है है। बेड़ू के फल-रस में कुल शर्करा लगभग 6% तथा इस फल में  पेक्टिन कंटेंट लगभग 0.2% तक होता है।  बेड़ू का फल विटामिन सी का बहुत अच्छा स्रोत नहीं हैं और इसके प्रति १०० ग्राम गूदे में मात्र 3.3 मिलीग्राम के लगभग विटामिन सी पाया जाता है।  बेड़ू के फल में प्रोटीन कंटेंट 1.7%  तथा ऐश कंटेंट  0.9% के लगभग होता है।  बेड़ू में पाए जाने वाले मुख्य खनिज तत्वों में फास्फोरस 0.034%, पोटेशियम 0.296%, कैल्शियम 0.071%, मैग्नीशियम 0.076% और आयरन 0.004% के लगभग पाया जाता है।

बेड़ू का औषधीय महत्त्व (Medicinal value of Himalayan wild fig):

बेड़ू  के फल के तथा पत्तों के मवेशियों के लिए चारे के रूप उपयोग के बारे में हम पहले ही जान चुके हैं। अगर बेड़ू के औषधीय उपयोग की बात करें तो स्थानीय लोगों द्वारा इसके चोप का हाथ पावं में हलकी-फुल्की चोट-खरोंच के घावों के उपचार हेतु किया जाता है।  सामान्यत: हलके-फुल्के खरोंच के घाव इसके चोप के उपयोग से ठीक भी हो जाते हैं।  क्योंकि यह अंजीर की ही एक प्रजाति होने के कारण परंपरागत रूप से इसका उपयोग कब्ज के मामलों में मुख्य औषधीय आहार के रूप में किया जाता है।  बेड़ू में मुख्य रूप से शर्करा और श्लेष्मा गुण होते हैं और, तदनुसार कब्ज के समस्याओ में भी काफी फायदेमंद होती है।

बेड़ू के फल सर्वाधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ होने के साथ-साथ इसमें बेहतर एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाये जाते हैं जिसकी वजह से बेड़ू को कई बिमारियों जैसे–तंत्रिका तंत्र विकार तथा जिगर से सम्बन्धी रोगों के उपचार में भी प्रयुक्त किया जाता है।  बेड़ू का उपयोग बेड़ू का प्रयोग गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकार, हाइपोग्लाइसीमिया, ट्यूमर, अल्सर, मधुमेह, हाइपरलिपिडेमिया और फंगल संक्रमण आदि जैसे अन्य रोगों के उपचार में भी किया जाता है। परंपरागत रूप से इसके चोप के स्टेम लेटेक्स का प्रयोग मांस में गहराई से धँसे किसी कांटे जैसी नुकीली वस्तु को निकालने के लिए भी किया जाता है।


सन्दर्भ:
http://www.phytopharmajournal.com/Vol3_Issue5_11.pdf
https://himalayanhaat.org/fabulous-fig-facts/
https://indiabiodiversity.org/observation/show/324099

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