
सियूँण/सिसूण/कंडाली (NETTLE)
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(लेखक: जगमोहन साह)
(लेखक: जगमोहन साह)
सियूँण, पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाना वाला पौधा है। इस पौधे को जहाँ कुमाऊ मंडल में सियूँण (सिसूण) के नाम से है तो वही गढ़वाल मंडल में इसे कंडली कहते है। हिंदी में इसे बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इस पौधे पर हाथ लगता ही एक करंट सा लगता जैसे बिच्छू ने काटा हो। इसे अंग्रेजी में नेटल (Nettle ) तथा बॉटनिकल नाम अर्टिका डाइओका ( Urtica dioica) भी जाना जाता है।
इस पौधे के पत्तो एव तनो पर हलके कांटे भी होते है सुई की तरह। पहाड़ी इलाकों में इस घास का प्रयोग बिगड़े बच्चों को सुधारने के लिए किया जाता है। स्कूल और घर लोग अक्सर इस घास के नाम से बच्चों को डराते दिख जाते हैं। जहाँ लोग इस पौधे को छूने से डरते है तो इस पौधे के कई मेडिसिनल फायदे भी है। जैसे - आप के शरीर के किसी पर चोट के कारण सूजन है तो बिना हिचकिचाए इस पौधे के टहनी से एक दो छपाक लगा दो, देखिये पांच मिनट में सूजन एव दर्द गायब, बुखार आने, (पेरासिटामोल से दस गुना ज्यादा) शरीर में कमजोरी होने, तंत्र-मंत्र से बीमारी भगाने, पित्त दोष, गठिया, शरीर के किसी हिस्से में मोच, जकड़न और मलेरिया जैसे बीमारी को दूर भागने में उपयोग करते हैं।
बिच्छू घास एक प्राकृतिक मल्टीविटामिन है।इसमें कई सारे विटामिन जैसे A, C, आयरन, कैलशियम, मैग्निज व पोटेशियम अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है, विटामिन, मिनरल के अलावा कार्बोहाइड्रेट व एनर्जी तत्व भी पाये जाते हैं। कोलेस्ट्रॉल सबसे कम होता है तथा यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसमें आयरन सबसे अधिक मात्रा में पाया जाता है। अब इसकी चाय भी बनने लगी है जिसकी कीमत 2500/- प्रतिकिलो से उपर है।
अब मंगरोली गांव, चमोली जिला में बिच्छू घास से ग्रामीणों ने मफलर और अन्य कपड़े के उत्पाद तैयार किए, जिनकी बाजार में डिमांड अच्छी रही। बिच्छू घास से तैयार होने वाले कपड़ों में अपनी विशिष्ट पहचान बना सकेगा।
(प्रस्तुति: जगमोहन साह, बी ब्लाक, सेक्टर 62 नोएडा)
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