
देववृक्ष पइयाँ/पंय्या
लेखक: शम्भू नौटियाल
उत्तराखंड के पहाड़ों में देववृक्ष के नाम से प्रसिद्ध पंय्या जिसका वानस्पतिक नाम-प्रूनस सेरासोइड्स (Prunus cerasoides) है। एक पर्णपाती वृक्ष है जो लगभग 30 मीटर (98 फीट) तक बढ़ता है। इस वृक्ष को पद्म या पद्मख भी कहा जाता है। ये वृक्ष हिमालयी क्षेत्रों में उगता है। इसकी छाल भूरे-भूरे रंग की, चिकनी होती है। उत्तराखंड में पंय्या के पेड का सीधा संबंध सांस्कृतिक रीति रीवाजों से भी है। गांव में होने वाली शादी में प्रवेश द्वार पर पंय्या की शाखाऐं लगाई जाती हैं। खास बात ये भी है कि शादी का मंडप भी पंय्या की शाखाओं और पत्तियों के बिना अधूरा माना जाता है।
धार्मिक
दृष्टि से पंय्या का बडा महत्व है। पूजा के लिऐ इस्तेमाल होने वाली इसकी
पत्तियां पवित्र मानी जाती हैं। उत्तराखंड में घर के द्वार, गृह प्रवेश या
हवन के दौरान इसका इस्तेमाल बंदनवार के रूप में होता है। पंय्या के पेड की
छाल का इस्तेमाल दवा बनाने के लिए किया जाता है। रंग बनाने के लिए भी इसकी
छाल का इस्तेमाल होता है। दवाइयों के लिए भी इस पेड़ का बड़े पैमाने पर
इस्तेमाल होता है।

पइयाँ/पंय्या की लकड़ी के चंदन के समान पवित्र माना जाता है।
हवन मे पइयाँ/पंय्या की लकडी का इस्तेमाल पवित्र माना जाता है। ये पेड एक लंबे
अंतराल के बाद पत्तियां छोड़ता है। पत्तियों का इस्तेमाल गाय बकरियों के
विछौने के रूप में किया जाता है। आगे चलकर ये ही सूखे पत्ते उर्वरा और खाद
का काम करती हैं।

पइयाँ/पंय्या का वृक्ष लम्बी उम्र वाला होता है। इसकी हरी-भरी
शाखाएं बेहद ही खूबसूरत होती हैं। हालांकि चिंता की बात यह है कि इस वृक्ष
का दोहन बड़ी संख्या में हो रहा है। अतएव हमें अपने स्वार्थ को त्यागकर
बेमिसाल पइयाँ/पंय्या के वृक्ष को भावी पीढ़ी को सौंपने लिए सुरक्षित रखने का
संकल्प लेना चाहिए।
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