
काफल या कायफल (Bayberry)
लेखक: शम्भू नौटियाल
काफल या कायफल (Bayberry), वानस्पतिक नाम-Myrica esculenta: उत्तराखण्ड अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ यहाँ के कुछ विशेष फलों, फूलों और अन्य व्यंजनों के लिए सम्पूर्ण देश-विदेश में प्रसिद्ध है। इतना ही नहीं यहां से विदेशो को कीमती दवाईयां बनाने के लिए जड़ी-बूटियाँ भी भेजी जाती है जो कि उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में ही उगती हैं। कहा तो यहां तक जाता है कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में उगने वाली प्रत्येक वनस्पति चाहे वह घांस-फूस या कोई कांटा ही क्यों ना हो किसी ना किसी औषधि के काम आती है। उत्तराखंड आने वाले शख्स ने अगर यहां के फलों का स्वाद नहीं लिया, तो संभवतः यात्रा का पूरा मजा लेने से वंचित रह गये।

ऐसे ही फलों
में एक बेहद लोकप्रिय नाम है-काफल
उत्तराखण्ड के लोक गीत को विश्व में पहचान दिलाने वाले इस प्रसिद्द गीत की पंक्तियाँ सुनऐ-
बेडुपाको बार मासा, हो नरैण काफल पाको चैता, मेरि छैला।
काफल पाको मैं नि चाख्यो!
इसमें चैत के महीने में काफल पकने की सूचना निहित है।
काफल, एक ऐसा फल जिसका नाम सुनते ही स्थान विशेष कर उत्तराखण्ड के लोगों का मन अनुपम आनंद से भर उठते हैं। काफल उत्तराखंड का एक जंगली फल है। इसका वानस्पतिक नाम: Myrica esculata है। यह मध्य हिमालयी क्षेत्रों में पाये जाने वाला सदाबहार वृक्ष है। गर्मी के मौसम में काफल के पेड़ पर अति स्वादिष्ट फल लगता है, जो देखने में शहतूत की तरह लगता है लेकिंन यह शहतूत से अलग है। यह पौधा 1300 मीटर से 2100 मीटर (4000 फीट से 6000 फीट) तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पैदा होता है।

यह अधिकतर हिमाचल प्रदेश, उतराखंड, उत्तर-पूर्वी राज्य मेघालय, और नेपाल में पाया जाता है। इसे बॉक्स मर्टल और बेबेरी भी कहा जाता है। यह स्वाद में खट्टा-मीठा मिश्रण लिए होता है। कई बेरोजगार लोग दिनभर काफी मेहनत से जंगल से काफल निकालते हैं तथा शहरों में अच्छे दामों में बेचते हैं जिससे उनकी अच्छी आमदनी हो जाती है। गर्मी के मौसम में किसी बस स्टैंड से लेकर प्रमुख बाजारों तक में ग्रामीण काफल बेचते हुए भी दिखाई देते हैं।
काफल के फल के उपयोग
काफल का फल अत्यधिक रस-युक्त और पाचक होता है। फल के ऊपर मोम के प्रकार के पदार्थ की परत होती है जो कि पारगम्य एवं भूरे व काले धब्बों से युक्त होती है। यह मोम मोर्टिल मोम कहलाता है तथा फल को गर्म पानी में उबालकर आसानी से अलग किया जा सकता है। यह मोम अल्सर की बीमारी में प्रभावी होता है। इसके अतिरिक्त इसे मोमबत्तियां, साबुन तथा पॉलिश बनाने में उपयोग में लाया जाता है। इस फल को खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं।

मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए काफल काम आता है। इसके तने की छाल का सार, अदरक तथा दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिश तथा फेफड़े ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है। इसके पेड़ की छाल का पाउडर जुकाम, आँख की बीमारी तथा सरदर्द में सूँधनी के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। इसके पेड़ की छाल तथा अन्य औषधीय पौधों के मिश्रण से निर्मित काफलड़ी चूर्ण को अदरक के जूस तथा शहद के साथ मिलाकर उपयोग करने से गले की बीमारी, खाँसी तथा अस्थमा जैसे रोगों से मुक्ति मिल जाती है। दाँत दर्द के लिए छाल तथा कान दर्द के लिए छाल का तेल अत्यधिक उपयोगी है। काफल के फूल का तेल कान दर्द, डायरिया तथा लकवे की बीमारी में उपयोग में लाया जाता है. इस फल का उपयोग औषधी तथा पेट दर्द निवारक के रूप में होता है।
काफल के पेड़ ओर फल के अनेक फायदे-
काफल का पेड़ अनेक प्राकृतिक औषधीय गुणों से भरपूर है। दाँतून बनाने, व अन्य चिकित्सकीय कार्यां में इसकी छाल का उपयोग होता है। इसके अतिरिक्त इसके तेल व चूर्ण को भी अनेक औषधियों के रूप में तथा आयुर्वेद में इसके अनेक चिकित्सकीय उपयोग बनाए गये हैं।
काफल पेड़ अपने प्राकृतिक ढंग से ही उगता है। माना जाता है कि चिड़ियों व अन्य पशु-पक्षियों के आवागमन व बीजों के संचरण से ही इसकी पौधें तैयार होती है ओर सुरक्षित होने पर एक बड़े वृक्ष का रूप लेती है।
आयुर्वेद में इसे कायफल के नाम से जाना जाता है! इसकी छाल में मायरीसीटीन, माय्रीसीट्रिन एवं ग्लायकोसाईड पाया जाता है विभिन्न शोध इसके फलों में एंटी-आक्सीडेंट गुणों के होने की पुष्टी करते हैं जिनसे शरीर में आक्सीडेटिव तनाव कम होता तथा हृदय सहित कैंसर एवं स्ट्रोक के होने की संभावना कम हो जाती है

काफल
के फलों में पाए जानेवाले फायटोकेमिकल पोलीफेनोल सूजन कम करने सहित जीवाणु
एवं विषाणुरोधी प्रभाव के लिए जाने जाते हैं
काफल को भूख की अचूक दवा माना
जाता है। मधुमेह के रोगियों के लिए भी इसका सेवन काफी लाभदायक है। यह पेट
की कई बीमारियों का निदान करता है और लू लगने से बचाता है।
काफल रसीला फल है लेकिन इसमें रस की मात्रा 40 प्रतिशत ही होती है। इसमें विटामिन सी, खनिज लवण, प्रोटीन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, आयरन और मैग्निशीयम होता है। काफल खाना है तो उत्तराखंड के पहाड़ों में आना ही पड़ेगा क्योंकि इसे लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। इसलिए अभी तो काफल का सीजन नहीं है लेकिन आने वाला है तब उत्तराखंड के गाँव आईये, काफल खाईऐ ओर रोंगो से दूर हो जाईऐ।

श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
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