
शराबी मैंसुल खै हालिं गौंनूं क तीज़ त्यौहार
(रचनाकार: दिनेश कांडपाल)
पहाड़ क तीज त्यारौंकि व्यथा जो घर घर में घुसि शराब ल बहुतै दयनीय करि हालि ........
दिनभर फड़ में तास छैं चहा पाणि लै पास,
सैंणी खुपाव मे खप रईं मैंसूं हात में गिलास।
शराबी मैंसुल खै हालिं गौंनूं क तीज़ त्यौहार,
सैंणी खुपाव मे खप रईं मैंसूं हात में गिलास।
शराबी मैंसुल खै हालिं गौंनूं क तीज़ त्यौहार,
ब्या काजों में आब है जैं छ हर दिन मारामार।
पूज हो या परायण हर जाग थैलि क मांग,
जब तिथाड़ में बोतल खुललि तबै लागल आग।
बुढ़ बाढ़ि क् लै भेद भ य ब्या काजौ में आब,
हातखुट टुटणं क डर भयि इज्जत अलग खराब।
पल्टन् कि कैन्टीन बटि गौं में ऐ गै आज,
ताश -अत्तर दगड़ गौंनूं में आब् छै यौ क राज।
पढ़ी लिखिन कैं काम नै आब मिल पौंटिक् साथ,
द्वि थैलिन कं बेचि बटि मिलिं दिनभरकि सौगात।
सरकारैकि झोलि भरलि तबै हलो यांक विकास,
गौं घर गाड़ में तब् तलै है जाल् पुरै विनाश।

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