
सिसूंण/कंडाली/बिच्छू घास(Nettle Grass)
लेखक: शम्भू नौटियाल
सिसूण/कंडाली का साग खाने में इतना स्वादिष्ट कि भुलाये नहीं भूलता। सिसूण/कंडाली के
साग के साथ पहाड़ी भात व मांड का स्वाद का तो मजा ही कुछ और है।
उत्तराखण्ड के गढ़वाल में कंडाली व कुमाऊँ में सिसूण नाम से जाना जाने वाला
यह पौधा दुनिया में बिच्छू घास, स्टीनगींग नेटल, कॉमन नेटल और नेटल नामों
से जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम अर्टिका डाईओका है।
गर्म तासीर वाला
यह पौधा विटामिन, मिनरल, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, सोडियम, कैल्शियम, आयरन
और मैगनीज की खान है। इसमें इतनी तरह के विटामिन पाए जाते हैं कि
इसे मल्टीविटामिन युक्त भी कहा जाता है। इसके रोयेनुमा काँटों में मौजूद
हिस्टामीन की वजह से शरीर में छूने पर जलन होती है। उबलने पर इससे यह निकल
जाता है लिहाजा इसका साग हमें किसी किस्म का नुकसान नहीं पहुंचाता है।
इससे
बुरा क्या हो सकता है कि सिसूण/कंडाली का पहाड़ के खान-पान में अब वह दर्जा नहीं
रहा जैसा की पिछली पीढ़ियों के दौर में हुआ करता था अब यह गरीबों का भोजन
मात्र रह गया है। हमारी कई लुप्त होती जा रही भोजन परम्पराओं में से एक
सिसूण/कंडाली से बनाये जाने वाले व्यंजन भी है। दुर्भाग्य से आज पहाड़ों में
तिरस्कृत रहने वाली कंडाली विदेशों में काफी गुणकारी मानी जाती है।

इस
पौधे के चिकित्सकीय गुणों के देखते हुए विदेशों में इसके रेशों से बने
कपड़ों (जैकेट, साड़ी, शाल, स्टोल, स्कार्फ और बैग) की भी भारी मांग है।

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