'

घुघुती (Spotted Dove)

घुघुती के गले में काले रगं की पट्टी व सफेद धब्बे से इसे पहचाना जा सकता है।  30 सेमी लम्बा घुघती उत्तराखंड में सभी जगह पाया जाता है। Ghuguti or brown spotted dove-Streptopelia chinensis is known as ghugut or ghuguti in kumaun

घुघूती या फाख्ता(Spotted Dove)

लेखक - शम्भू नौटियाल

घुघुती या चित्रोखा फाख्ता: (Spotted Dove) कबूतर परिवार का एक सुन्दर पक्षी है। इसका जन्तु वैज्ञानिक नाम Streptopelia chinensis है। भारत में कई नामों से जाना जाता है जैसे कि पर्की, चित्रोखा, फाख्ता, घुघूती, घुघु पक्षी इत्यादि, परंतु इसका सबसे प्रचलित नाम फाख्ता है। 30 सेमी लम्बा घुघती उत्तराखंड में सभी जगह पाया जाता है। चितकबरे फाख्ते के गले में काले रगं की पट्टी व सफेद धब्बे से इसे पहचाना जा सकता है। घुघती जंगल व मानव बस्तियों, खेतों में सभी जगह पाया जाता है। अधिकतर जोड़ो या समूहों में पाये जाने वाला पक्षी है। नर और मादा लगभग एक से दिखाई देते हैं।

पेड़ की शाखाओं पर या छत की मुण्डेर पर या किसी तार पर पर जब यह अकेली उदास सी बैठी होकर कुछ गाती है तो उसका उच्चारण ‘घु-घू-ती’ प्रतीत होता है जिससे इसका नाम ही पड़ गया है ‘घुघूती’ या घुघु पक्षी। यह एक नियततापी, उड़ने वाला पक्षी है जिसका शरीर परों से ढँका रहता है। मुँह के स्थान पर इसकी छोटी नुकीली चोंच होती है। मुख दो चंचुओं से घिरा एवं जबड़ा दंतहीन होता है। अगले पैर डैनों में परिवर्तित हो गए हैं। पिछले पैर शल्कों से ढँके एवं उँगलियाँ नखरयुक्त होती हैं। इसमें तीन उँगलियाँ सामने की ओर तथा चौथी उँगली पीछे की ओर रहती है।

यह आबादी के आसपास या जन्तुओं तथा मनुष्य के सम्पर्क में रहना अधिक पसन्द करता है। परन्तु यह घोसला घरों में नहीं प्रायः पेड़ों की डाल पर या छोटी झाड़ियों के ऊपर बनाता है। आकार व रूप के आधार पर गढ़वाल में तीन प्रकार की घुघूती है। घुघूती जो आकार में सबसे बड़ी होती है और उसके गले में दो काली चूड़ी बनी होती है उसे ‘माल्या घुघुती’ कहते हैं। यह लगभग सिलेटी रंग के कबूतर के आकार की होती है। अंग्रेजी में इसे Eurasian Collared Dove कहते हैं।

इसका जूलोजीकल नाम Streptopelia decaocto है। ‘माल्या’ घुघूती से थोड़ी छोटी व जिसकी गर्दन के पार्श्व भाग तथा पीठ पर मसूर के आकार व रंग के असंख्य दाने से दिखायी देेते हैं, को ‘मसुर्याली’ घुघूती कहते है। अंग्रेजी में इसे Spotted Dove कहते हैं। जबकि इसका जूलोजीकल नाम Stigmetopelia chinensis है। ‘मसुर्याली’ घुघुती के ही आकार की किन्तु सामान्य रंग वाली घुघुती ‘काठी’ घुघुती कहलाती है। अंग्रेजी में इसे Laughing Dove कहते हैं। और इसका जूलोजीकल नाम Stigmetopelia senegalensis है। 

घुघती या फाख्ता पक्षी को आप अक्सर जमीन पर चलते हुए देख सकते हैं, यह जमीन पर पड़े हुए बीज और दाने खाना पसंद करता है, कभी कभी छोटे कीट पतंगे भी खा लेता है। Spotted Dove या फाख्ता पक्षी वर्ष में कभी भी अंडे दे सकता है, इसका विशेष प्रजनन का मौसम सितंबर से दिसंबर तक होता है नर फाख्ता आपस में इलाके के लिए लड़ाई करते हैं, इन की लड़ाई विशेष प्रकार की होती है फाख्ता पक्षी 30 से 40 मीटर ऊपर जाते हैं तथा फिर नीचे की ओर ग्लाइड करते हैं, यह कबूतरों की तरह गर्दन फुलाकर मादा के आसपास नृत्य भी करते हैं तथा अपने सर को ऊपर और नीचे करते रहते हैं।

फाख्ता पक्षी बहुत सामान्य से घोसला बनाता है इसमें तिनकों का उपयोग किया जाता है यह अपना घोंसला किसी भी ऊंचे स्थान पर बना लेता है, नर घुघूती पक्षी और मादा दोनों ही अंडों को सेने और बच्चों को भोजन खिलाने का काम करते हैं, यह पक्षी दो हफ्तों तक अण्डों को सेता है। घुघुती तो हमारे दुख-दर्द से लेकर लोक संस्कृति का भी अभिन्न हिस्सा है। चैत-बैसाख की बात हो और घुघुती की बात न हो, ऐसा नहीं हो सकता। घुघुती के बिना खुदेड़ (विरह) गीतों की कल्पना करना भी बेमानी होगा।

दादी-नानी अक्सर एक लोरी सुनाया करती थी; ‘घुघूती, बासुती, क्या खान्दी, दूधभाती…’ उम्र आगे बढ़ी तो रेडियो पर ‘ना बास घुघुती चैत की, खुद लगीं च माँ मैत की..’ बजते यह गाना मन को मोह लेता था। गढ़रत्न श्रद्धेय नरेन्द्र सिंह नेगी जी द्वारा रचा व गाया गया गीत भी मन को खूब भाया; ‘घुघुती घुराॅण लगीं म्यारा मैत की, बौड़ी-बौड़ी ऐगे ऋतु; ऋतु चैत की। पांच सालों से नये जमाने के लोकगायक किशन महिपाल का घुघुती वाला लोकगीत ‘किंगर का छाला घुघुती, पंगर का डाला घुघूती, भै घुर घुराॅन्दि घुघुती, फुर उड़ाॅन्दि घुघूती’ भी गढवाल से मुम्बई तक खूब धूम मचाया है।



श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक पोस्ट से साभार
श्री शम्भू नौटियाल जी के फेसबुक प्रोफाइल पर जाये

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ