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पीपल का वृक्ष (Peepal tree)

  
पीपल का औषधीय प्रयोग से कई रोगों में लाभ लिया जा सकता है। Ficus religiosa Linn. or Peepal is common tree of religious and medicinal importance
पीपल का वृक्ष (Peepal tree)
लेखक: शम्भू नौटियाल

पीपल वानस्पतिक नाम: फाइकस रिलीजिओसा (Ficus religiosa Linn.) Syn-Ficus caudata Stokes; Ficus peepul Griff. है और यह मोरेसी (Moraceae) कुल से संबंधित है। अग्रेंजी में इसे पीपल ट्री (Peepal tree), द बो ट्री (The bo tree), बोद्ध ट्री (Bodh tree), द ट्री ऑफ इन्टेलिजेन्स (The tree of intelligence), Sacred fig (सेक्रेड फ्रिग) तथा संस्कृत में पिप्पल, कुञ्जराशन, अश्वत्थ, बोधिवृक्ष, चलदल, बोधिद्रुम, गजाशन कहते हैं।

पीपल के पेड़ का मूल (Origin) भारत भूमि मानी जाती है व भारतीय संस्कृति में इसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। यह पेड़ चिरायु है और कई हजार साल तक रहता है। मुम्बई में एक पेड़ 3000 वर्ष से अधिक पुराना है। श्रीलंका में एक पेड़ 288 ईसा पूर्व (B.C.) का है, इसे भारत से ले जाया गया था। वह पेड़ आज सबसे पुराना है और उसे पैतृक वृक्ष कहकर उसकी पूजा की जाती है। प्राचीन काल से इस पेड़ की पूजा होती है। बुद्ध को पीपल के पेड़ के नीचे ही ज्ञान प्राप्त हुआ था इसलिए इसे बोधि वृक्ष भी कहा जाता है। बौद्घ-धर्म के प्राय: सभी मन्दिरों में पीपल का वृक्ष पाया जाता है।

समुद्रतल से 5000 फीट (1524 मीटर) तक की ऊँचाई तक पीपल के पेड़ को सहज रूप से लगाया जा सकता है। भारत से यह पेड़ ले जाकर संसार के बहुत सारे मुल्कों में लगाया गया है, जैसे- यूनाइटेड स्टेट्स (United States) साउथ केलीफोर्निया (Southern California) फ्लोरीडा (Florida) हवाई (Hawaii) इजराल (Israel) और संसार के कई ट्रापिकल (Tropical) क्षेत्र। शायद ही कोई इंसान होगा जो पीपल के पेड़ के बारे में नहीं जानता होगा। हाथी इसके पत्तों को बड़े चाव से खाते हैं। इसलिए इसे गजभक्ष्य भी कहते हैं।

पीपल का पेड़ प्रायः हर जगह उपलब्ध होता है। सड़कों के किनारे, मंदिर या बाग-बगीचों में पीपल का पेड़ हमेशा देखने को मिलता है। पीपल के पेड़ की जड़ भूमि के अन्दर उपजड़ों से युक्त होती है और बहुत दूर तक फैली रहती है। वट वृक्ष के समान ही इसके पुराने वृक्ष के तने तथा मोटी-मोटी शाखाओं से जटाएं निकलती हैं। ये जटायें बहुत मोटी तथा लम्बी नहीं होती। इसके तने या शाखाओं को तोड़ने या छिलने से या कोमल पत्तों को तोड़ने से एक प्रकार का चिपचिपा सफेद पदार्थ (दूध जैसा) निकलता है।

पीपल के पेड़ का औषधीय प्रयोग भी किया जाता है और इससे कई रोगों में लाभ लिया जा सकता है। कई पुराने आयुर्वेदिक ग्रंथों में पीपल के पेड़ के गुणों के बारे में बताया गया है कि पीपल के प्रयोग से रंग में निखार आता है, घाव, सूजन, दर्द से आराम मिलता है। पीपल (peepal tree) खून को साफ करता है। पीपल की छाल मूत्र विकार में लाभदायक होती है। पीपल की छाल के उपयोग से पेट साफ होता है। सुजाक, कफ दोष, डायबिटीज, ल्यूकोरिया, सांसों के रोग में भी पीपल का इस्तेमाल लाभदायक होता है। इतना ही नहीं, अन्य कई बीमारियों में भी पीपल का उपयोग किया जाता है।
F. religiosa contains several phytoconstituents like β-sitosteryl-D-glucoside, vitamin K, n-octacosanol, kaempeferol, quercetin, and myricetin. The plant has been studied for their various pharmacological activities like antibacterial, antifungal, anticonvulsant, immunomodulatory, antioxidant, hypoglycemic, hypolipidemic, anthelmintics, and wound healing activities. 

पीपल के जड़ से लेकर पत्तों तक में रोग निवारण की अद्भुत क्षमता है। दूध जैसा दिखने वाला इसका रस हृदय रोग को दूर करता है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में भी पीपल के औषधीय गुणों का महत्व बतलाया गया है।
* सांस फूलने या दमा का दौरा पड़ने पर पीपल की सूखी छाल के चूर्ण की 5 ग्राम मात्रा गुनगुने पानी के साथ दिन में तीन बार लेने से काफी राहत मिलती है और धीरे-धीरे यह रोग शांत हो जाता है।
* यदि कब्ज़ हो, तो पीपल के पत्तों को छाया में सुखाकर उसके चूर्ण को गुड़ के साथ मिलाकर गोलियां बना लें. रात को सोने के कुछ समय पहले दो गोली गुनगुने दूध के साथ सेवन करने से तुरंत ही लाभ होता है।
* आंखों से पानी गिरने पर पीपल की पांच कोपलें एक कप पानी में रात को भिगो दें और सुबह उसी पानी से आंखों को धोएं।
* कोपलों के रस में शुद्ध शहद मिलाकर सलाई से आंखों में प्रतिदिन लगाने से आंखों की लाली तथा जलन भी दूर होती है।
* पीपल के छोटे पत्तों को कालीमिर्च के साथ पीसकर मटर के आकार की गोलियां बनाएं। एक गोली दांतों तले दबाकर कुछ देर रखने से दांतों का दर्द दूर हो जाता है।
* 50 ग्राम पीपल की गोंद में समान मात्रा में मिश्री मिलाकर चूर्ण बनाएं। प्रतिदिन सुबह 3 ग्राम यह चूर्ण सेवन करने से शरीर की गर्मी शांत होती है और नकसीर से छुटकारा मिल जाता है।
* पीपल और लसौढ़े के 5-5 पत्ते अच्छी तरह पीसकर उसमें सेंधा नमक मिलाकर पंद्रह दिनों तक पीने से पीलिया रोग पूर्ण रूप से ख़त्म हो जाता है।

* पीपल के पंचांग का चूर्ण एवं गुड़ समान मात्रा में मिलाकर सौंफ के अर्क के साथ दिन में दो बार सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं। बच्चों के लिए यह बहुत उपयोगी नुस्ख़ा है।
* पीपल की छाया में प्रतिदिन विश्राम करने वाले लोग चर्म रोग से बचे रहते हैं।
* सन्निपात ज्वर के रोगी को पीपल के पत्तों पर लिटाने से उसका ज्वर उतर जाता है।
* पीपल के 3-4 नए पत्तों को मिश्री के साथ 250 मिली पानी में बारीक पीस-घोलकर छान लें। यह शर्बत रोगी को 2 बार पिलाएं। इसे 3-5 दिन प्रयोग करें। यह पीलिया रोग के लिए रामबाण औषधि है।
* पीपल के पांच पके हुए फल प्रतिदिन खाने से स्मरणशक्ति बढ़ती है। साथ ही शरीर भी पुष्ट एवं ओजयुक्त होता है।
* मकड़े के विष को खत्म करने के लिए पीपल, लिसोड़ा तथा विभीतक त्वचा का प्रयोग करना चाहिए। इनके बने पेस्ट को काटने वाले स्थान पर लेप करने से लूता (मकड़ा) के विष में लाभ होता है।
*पीपल की नरम कोपलों को जलाकर कपड़े से छान लें। इसे पुराने बिगड़े हुए फोड़ों पर छिड़ने से लाभ होता है।
पीपल की छाल के चूर्ण को पीसकर उसमें घी मिला लें। इसे जलने या चोट लगने से हुए घाव पर लगाने से रक्तस्राव बंद हो जाता है और घाव तुरंत भरने से लाभ होता है। पीपल की छाल के चूर्ण को आग से जलने के कारण हुए घाव पर छिड़कने से तुरंत घाव सुख जाता है।

पुराने तथा ना भरने वाले घावों पर पीपल की अंतर छाल को गुलाब जल में घिसकर लगाएं। इससे घाव जल्दी भर जाते हैं। घाव पर औषधि का लेप लगाकर पीपल के कोमल पत्तों से ढक दें। यह घाव को सुखाता है।
जीवनदायिनी ऑक्सीजन से स्वास्थ्य-लाभ एवं दीर्घ आयु प्राप्त कर सकें तथा पर्यावरण को सुधारने में सहयोगी बनें। शास्त्रों में कहा गया है कि पीपल के वृक्ष को बिना प्रयोजन के काटना अपने पितरों को काट देने के समान है। ऐसा करने से वंश की हानि मानी जाती है। यज्ञादि पवित्र कार्यों के उद्देश्य से इसकी लकड़ी काटने से कोई दोष न होकर अक्षय स्वर्ग की प्राप्ति होती है पीपल सर्वदेवमय वृक्ष है, अत: इसका पूजन करने से समस्त देवता पूजे जाते हैं -
श्लोक
छिन्नो येन वृक्षश्वत्थश्छेदिता पितृदेवता: ।
यज्ञार्थं छेदितऽवत्थे ह्यक्षयं स्वर्गमाप्नुयात् ।।
अश्वत्थ: पूजितो यत्र पूजिता: सर्वदेवता:।।

 

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