
ब्राह्मी, मण्डूकपर्णी (ब्रह्ममाण्डूकी) या गोटूकोला (Indian Pennywort)
लेखक: शम्भू नौटियाल
ब्राह्मी, मण्डूकपर्णी (ब्रह्ममाण्डूकी) या गोटूकोला वानस्पतिक नाम : सेन्टेला एशियाटिका: Centella asiatica (Linn) Syn. Hydrocotyle asiatica पादप कुल एपिऐसी (Apiaceae) से संबंधित है। अग्रेंजी में इसे इण्डियन पेनीवर्ट (Indian pennywort), मॉर्श पेनीवर्ट (Marsh pennywort) तथा शीप रौट (Sheep rot) तथा संस्कृत में मण्डूकपर्णी, माण्डूकी, ब्राह्मी, सरस्वती, मडूकी, दिव्या, सुप्रिया, ब्रह्ममाण्डूकी, दर्दुच्छदा कहते हैं। मेंढक के पंजों की तरह पत्तियां होने के कारण से मंडूकपर्णी के नाम से जाना जाता है।
यह एक बहुवर्षीय शाकीय पौधा है जो कि उत्तराखंड सहित उत्तरी भारत ट्राॅपिकल क्षेत्रों में जलाशयों के किनारे या नमी अथवा छाया वाली जगह पर मिल जाती है। मंडूकपर्णी का प्रयोग मानसिक रोगों के उपचार और स्मरण शक्ति को तीव्र बनाने के लिए किया जाता है। mandukaparni vs brahmi मंडूकपर्णी का प्रयोग प्रमुख रूप से तंत्रिका तंत्र मनोरोग पागलपन मिर्गी जैसे भयानक रोगों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है महर्षि चरक के अनुसार मंडूकपर्णी मानसिक रोगों के उपचार की अचूक वनस्पति है इसे देश के कुछ राज्यों में ब्राह्मी कहा जाता है।
इसका फैलने वाला छोटा क्षुप होता है जो नमी वाले स्थानों पर होता है। इसकी पत्तियां चिकनी और चमकदार होती हैं। इनकी पत्तियां पतले डंठलों में होती हैं जिनका रंग गहरा हरा और छ्त्राकार होते हैं तथा किनारों पर दंतुर होते है। इसके पत्तों का व्यास लगभग आधा इंच से लेकर एक इंच तक होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस दिव्य बूटी के सेवन से ब्रह्म की साधना में मदद मिलती है। इसी से साधक जन प्राय इस बूटी का सेवन करते रहते हैं।
वैदिक काल में माण्डूकी द्रव्य का वर्णन मिलता है। संहिताग्रन्थ में मेध्य रसायन के रूप में मण्डूकपर्णी का विवेचन किया गया है। निघण्टु ग्रन्थों में मण्डूकपर्णी और ब्राह्मी को एक-दूसरे का पर्याय बतलाकर संदिग्धता उत्पन्न कर दी गई, किन्तु आजकल मण्डूकपर्णी से Centella asiatica और ब्राह्मी से Baccopa monnieri का वर्णन करते हैं। चरक-संहिता के अपस्मार चिकित्सा में वर्णित ब्राह्मीघृत, ब्राह्मी-रसायन व शाकवर्ग में मण्डूकपर्णी का उल्लेख प्राप्त होता है। चरक-संहिता में निर्दिष्ट किया गया है कि उदररोग से पीड़ित रोगी एवं विष पीड़ित रोगी के लिए इसका शाक पथ्य है। इसके अतिरिक्त वयस्थापन महाकषाय तथा तिक्तस्कन्ध में भी मण्डूकपर्णी का उल्लेख प्राप्त होता है।
सुश्रुत-संहिता में शाक-वर्ग तथा ब्राह्मीघृत एवं ब्राह्मी-रसायन आदि योगों में इसका उल्लेख प्राप्त होता है। मण्डूकपर्णी स्मृतिवर्धक, बुद्धिवर्धक, मेध्य तथा कुष्ठ, पांडु एवं मस्तिष्क के विकारों में लाभकारी है। यह हृदय के लिए बलकारक, स्तन्यजनन, स्तन्य-शोधक, व्रणरोपक, व्रणशोधक, वयस्थापक एवं रसायन है। मण्डूकपर्णी का अर्क पाण्डु रोग, विषदोष, शोथ तथा ज्वर-शामक होता है। इसका शाक कटु, तिक्त, शीत, वातकारक तथा कफपित्तशामक होता है। यह श्वास-नलिका शोथ, प्रतिश्याय, श्वेतप्रदर, वृक्करोग, मूत्रमार्गगतशोथ, जलशोफ, रतिज विकार, तीव्र शिरशूल, पामा तथा त्वक् विकार-शामक होती है। इसके पञ्चाङ्ग चूर्ण को दूध में मिलाकर सेवन करने से स्मरणशक्ति तेज होती है। मण्डूकपर्णी को गोटू कोला के नाम से भी जाना जाता है। यह एक आयुर्वेदिक औषधी है जो मस्तिष्क स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में सहायक होती है। इसका औषधीय उपयोग कर आप विभिन्न प्रकार की बीमारियों का भी उपचार कर सकते हैं।

भारत और अन्य देशों में त्वचा रोगों के इलाज के लिए और स्मृति बढ़ाने वाले टॉनिकों के निर्माण में पारंपरिक रूप से चिकित्सा प्रणाली में मण्डूकपर्णी के पौधे का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग पाक की तैयारी और सलाद में सब्जी के रूप में भी किया जाता है। मण्डूकपर्णी को अपनी व्यापक लाभकारी न्यूरोपैट्रोडिक गतिविधि के कारण मस्तिष्क टॉनिक के रूप में माना जाता है। इसके अलावा, विभिन्न अन्य प्रभाव जैसे कि anti-inflammatory, एंटीप्रोलिफेरेटिव, एंटीकैंसर, एंटीऑक्सिडेंट, एंटीकुलर, घाव भरने, आदि में भी यह उपयोगी है।
आयुर्वेद में इसे औषधीय क्षुप माना जाता है। यह वनस्पति मेध्य द्रव्य (मेधा शक्ति बढाने वाला) के रूप में गिना जाता है। पागलपन और मिर्गी की प्रसिद्ध औषधि सारस्वत चूर्ण में इसके स्वरस की भावना दी जाती है। मंडूकपर्णी में सोपोरिफिक (स्लीप इन्ड्यूजिंग) प्रभाव होते हैं, ये परिणाम दिमाग पर इसकी शांत क्रिया के कारण होता है। गोटू कोला मानसिक ऊर्जा को पुनर्स्थापित करता है और मस्तिष्क में ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करके कोशिकाओं को फिर से जीवित करता है। आयुर्वेद में, 3 ग्राम मंडूकपर्णी पाउडर को एक हफ्ते तक सोने से एक घंटा पहले एक कप दूध के साथ लेने की सलाह दी जाती है। यह अनिद्रा का इलाज करने में मदद करता है और अच्छी नींद के स्तर में सुधार करता है और विश्राम को बढ़ावा देता है।

हालांकि, मंडूकपर्णी मिर्गी में बहुत प्रभावी नहीं है जब यह अकेले उपयोग किया जाता है। वच (एकोरस कैलामास), कुलंजन और इलायची के बीज जैसी अन्य जड़ी-बूटियों के साथ, मिर्गी के प्रबंधन में इसका बहुत अच्छा प्रभाव होता है। आयुर्वेद में, इन जड़ी बूटियों का उपयोग मिर्गी और बेहोशी के उपचार में किया जाता है। मंडूकपर्णी फूली हुई नसों में विश्राम को प्रेरित करके रक्त परिसंचरण में सुधार करता है। इसके द्वारा सर्कुलेशन में सुधार पैरों में असुविधा, दर्द और एडिमा को कम करता है। मंडूकपर्णी का आंतरिक सेवन घाव को जल्दी भरने मदद करता है। यह आमतौर पर मधुमेह वाले लोगों के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी की पत्तियों के बारीक पाउडर को पानी में मिलाकर त्वचा के घाव पर लगाया जा सकता है। इससे प्रभावित क्षेत्र में रक्त की आपूर्ति में सुधार होता है। यह घावों, त्वचा के अल्सर और मामूली जले में त्वचा पर लगाया जा सकता है।
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