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भादो की गाड़

कुमाऊँनी कविता, भादो म्हैणा गाड़ ऐगे, गाड़ गध्यारन पाणि भरी गो. इस्कूल कसिक्यै जानूं। Kumauni Poem rain drain in Bhado flood

भादो की गाड 
(रचनाकार: घनानन्द पाण्डे 'मेघ')

भादो म्हैणा गाड़ ऐगे, 
इस्कूल कसिक्यै जानूं। 
बौली ग्यान रौड़-भौड़, 
इस्कूल कसिक्यै जानूं।।

मैं दी राखै भौत काम, 
भ्वल हुनी छ इम्हिान।
परेशान है गयाँ याँ 
इस्कूल कसिक्यै जानूं।।

डान-कान अन्यार है गो,
सरग घड़कन पै गो। 
हम घर में रै गयाँ याँ, 
इस्कूल कसिक्यै जानूं।।

गाड़ गध्यारन पाणि भरी गो. 
डान-कान बादल उरी गो। 
हम भिजन पै गयाँ याँ, 
इस्कूल कसिक्यै जानूं।।

बरखा हौ या पैर पड़ौ,
ह्यूं पड़ौ या मारो पड़ौ। 
हम कभै ले नी कूना,
 इस्कूल कसिक्यै जानूं।।
कुमाऊँनी कविता, भादो म्हैणा गाड़ ऐगे, गाड़ गध्यारन पाणि भरी गो. इस्कूल कसिक्यै जानूं। Kumauni Poem rain drain in Bhado
घनानन्द पाण्डे 'मेघ'
फोटो सोर्स: गूगल

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