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हिसालू की जात बड़ी रिसालू, जाँ जाँ जाँछ उधेड़ि खाँछ

कुमाऊँ का पहाड़ी फल हिसालु औषधीय गुणों के भरपूर है  article about Hisalu or Yellow Himalayan Raspberryकुमाऊँ का पहाड़ी फल हिसालु औषधीय गुणों के भरपूर है  article about Hisalu or Yellow Himalayan Raspberry


🔥"हिसालू की जात बड़ी रिसालू, जाँ जाँ जाँछ उधेड़ि खाँछ।"🔥
(लेखक: डा.मोहन चन्द तिवारी)

💄हिमांतर में पढ़िए मेरा लेख💄


कुमाउंनी के आदिकवि गुमानी पंत की एक लोकप्रिय उक्ति है -
"हिसालू की जात बड़ी रिसालू ,
जाँ जाँ जाँछ उधेड़ि खाँछ।
यो बात को क्वे गटो नी माननो,
दुद्याल की लात सौणी पड़ंछ।"
कुमाऊँ का पहाड़ी फल हिसालु औषधीय गुणों के भरपूर है  article about Hisalu or Yellow Himalayan Raspberry

अर्थात् हिसालू की प्रजाति बड़ी गुसैल किस्म की होती है,जहां-जहां इसका पौधा जाता है, बुरी तरह उधेड़ देता है, तो भी कोइ इस बात का बुरा नहीं मानता, क्योंकि दूध देने वाली गाय की लातें भी खानी ही पड़ती हैं।हिसालू होता ही इतना रसीला है कि उसके आगे सारे फल फीके ही लगते हैं। इसीलिए गुमानी ने हिसालू की तुलना अमृत फल से की है-
"छनाई छन मेवा रत्न सगला पर्वतन में,
हिसालू का तोपा छन बहुत तोफा जनन में,
पहर चौथा ठंडा बखत जनरौ स्वाद लिंण में,
अहो में समझछुं, अमृत लग वस्तु क्या हुनलो ?"

अर्थात् पहाड़ों में तरह-तरह के अनेक रत्न हैं, हिसालू के फल भी ऐसे ही बहुमूल्य तोहफे हैं,चौथे पहर में ठंड के समय हिसालू खाएं तो क्या कहने! मैं समझता हूँ इसके आगे अमृत का स्वाद भी क्या होगा !
कुमाऊँ का पहाड़ी फल हिसालु औषधीय गुणों के भरपूर है  article about Hisalu or Yellow Himalayan Raspberry

जिस भी उत्तराखंडी भाई का बचपन पहाड़ों में बीता है तो उसने हिसालू का खट्टा-मीठा स्वाद जरूर चखा होगा और इस फल को तोड़ते समय इसकी टहनियों में लगे टेढ़े और नुकीले काटों की खरोंच भी जरूर खाई होगी।

गर्मियों के महीने में दोपहर के बाद गांव के बच्चे हिसालू के फल तोड़ने जंगलों की तरफ निकल पड़ते हैं और घर के सब लोग ताजे ताजे फलों का स्वाद लेते हैं। हिसालू का दाना कई छोटे-छोटे नारंगी रंग के कणों का समूह जैसा होता है,जिसे कुमाऊंनी भाषा में 'हिसाउ गुन' कहते हैं। नारंगी रंग के हिसालू के अलावा लाल हिसालू की भी एक प्रजाति पाई जाती है। उत्तराखण्ड के लोग हिसालु को अपनी जन्मभूमि के फल के रूप में बहुत याद करते हैं,क्योंकि उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों के अलावा यह फल शायद कहीं और नहीं मिलता है। इस रसभरे फल को पहाड़ से अन्य महानगरों में ले जाना भी संभव नहीं है क्योंकि यह फल तोड़ने के 2-3 घन्टे के बाद खराब हो जाता है और खाने लायक नहीं रह पाता।

‌मई-जून के महीने में पहाड़ की कंटीली झाड़ियों में फलने फूलने वाला खट्टे मीठे स्वाद वाला हिसालु उत्तराखंड का अत्यंत ही रसीला स्थानीय ऋतुफल है। हिसालु पहाड़ की जलवायु के हिसाब से जेठ-असाड़ (मई-जून) के महीने में छोटी झाड़ियों में उगने वाला एक जंगली रसदार फल है।इस फल को कुछ स्थानों पर “हिंसर” या “हिंसरु” के नाम से भी जाना जाता है। Rosaceae कुल की झाडीनुमा इस वनस्पति का लैटिन वानस्पतिक नाम Rubus Ellipticus, है जिसे अंग्रेजी में Golden Himalayan Raspberry अथवा Yellow Himalayan Raspberry के नाम से भी जाना जाता है।

आधुनिक आयुर्वैदिक वनौषधियों के सन्दर्भ में हुई खोजों के अनुसार हिसालु का फल अपने औषधीय गुणों के कारण वास्तव में अमृततुल्य ही है। मेडिसिनल हर्ब्स के रूप में हिसालु को आई.यू.सी.एन. द्वारा 'वर्ल्ड्स हंड्रेड वर्स्ट इनवेसिव स्पेसीज' की लिस्ट में शामिल किया गया है I उत्तराखंड का यह वानस्पतिक पौधा 'एंटीआक्सीडेंट' प्रभावों से युक्त पाया गया है। जर्नल आफ डायबेटोलोजी' के अनुसार हिसालु के फलों का रस बुखार,पेट दर्द, खांसी एवं गले के दर्द में बड़ा ही लाभकारी माना गया है। हिसालु की जड़ों को बिच्छुघास 'Indian stinging nettle' की जड़ एवं 'जरुल' यानी Lagerstroemia parviflora की छाल के साथ कूट कर काढा बनाकर बुखार में दिया जाता है। इसकी ताजी जड़ से प्राप्त स्वरस का प्रयोग पेट से सम्बंधित बीमारियों में लाभकारी होता है। इसकी पत्तियों की ताज़ी कोपलों को ब्राह्मी की पत्तियों एवं 'दूर्वा' यानी Cynodon dactylon के साथ स्वरस निकालकर सेवन करने से पेप्टिक अल्सर की चिकित्सा की जाती है।

आयुर्वैदिक दृष्टि से हिसालु का पौधा किडनी से सम्बन्धित रोग की बेहतरीन दवा मानी गई है। नाडी दौर्बल्य, बहुमूत्र (पोली-यूरिया), योनि-स्राव, शुक्र-क्षय एवं बच्चों के शय्या-मूत्र आदि के लिए भी इस वनस्पति का चिकित्सीय प्रयोग बहुत ही लाभकारी माना गया है। इसके फलों से प्राप्त मूलार्क में एंटी डायबेटिक तत्त्व पाए जाते हैं।तिब्बती चिकित्सा पद्धति में इसकी छाल का प्रयोग सुगन्धित एवं कामोत्तेजक प्रभाव के लिए किया जाता है। उत्तराखंड हिमालय अनेक प्राकृतिक जड़ी-बूटियों एवं औषधीय गुणों से युक्त ऋतुफलों से समृद्ध है।उनमें से हिसालु एक जंगली फल नहीं अपितु अमृत तुल्य बहुमूल्य वनौषधि भी है।

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