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Jindagi k haal(2): जिंदगी क हाल

कुमाऊँनी कविता-जिन्दगी उकाव, जिन्दगी होराव, कभैं अन्यार औंछ यैमें, कभैं छ उज्याव। Kumauni Poem describing about life how it goes

Jindagi k haal(2): जिंदगी क हाल
खरी खरी - 445 : जिंदगी क हाल (2)
रचनाकार : पूरन चन्द्र काण्डपाल

जिन्दगी उकाव
जिन्दगी होराव
कभैं अन्यार औंछ यैमें
कभैं  छ उज्याव।

जिन्दगी क म्यल मजी
मैंस कसा कसा,
गिरगिट जौस रंग देखूनी
आँसु मगर जसा।
कैं भुकणी कुकुर यैमें
कैं घुरघुरू बिराउ।
जिन्दगी...

जिन्दगी में औनै रनी
रस कसा कसा,
कैं कड़ुवा नीम करयाला
कैं मिठ बत्यासा।
कैं खट्ट अंगूर यैमें
कैं मिठ हिसाउ।
जिन्दगी...

कैहुणी नागफणी यैमें
कैहुणी क्वैराव,
कैहुणी लंगण छीं यां
कैहुणी रैंसाव।
कैहुणी यौ मिठी शलगम
कैं क्वकैल पिनाउ।
जिन्दगी...

(क्रमशः -अंतिम भाग-3)

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 23.06.2019

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