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कंटकारी (Yellow Fruit Nightshade)

आयुर्वेद के अनुसार कंटकारी (Yellow Fruit Nightshade)का पौधा सम्पूर्ण रूप से उपयोगी है Kateri or Kanthkari botanical name solanum virginianum is a medicinal plant in Ayurveda,Yellow fruit nightshade in hindi,kateri tree

कंटकारी (Yellow Fruit Nightshade)

हमारे पहाड़ो पर बंजर जमीन पर पाए जाने वाली कंटकारी को हम सब जानते हैं और सामान्यत: हम इसे एक जहरीले, कंटीले और अनुपयोगी पौधे के रूप में ही देखते हैं, क्योंकि हमारे सामान्य जनजीवन में इसका कोई उपयोग नहीं होता है।  इसके औषधीय उपयोग के बारे थोड़ा बहुत इतना जरूर बताया जाता है  दर्द या दन्त में कीड़ा को समस्या में इसे सूखे बीजों के के धुंए का प्रयोग दर्द में राहत देता है।  लेकिन आयुर्वेद में बंजर जमीन पर उगने वाला कंटकारी का यह पौधा बहुत ही उपयोगी बताया गया है।  इस लेख के माध्यम से हम कंटकारी (जिसे कंठकारी भी बोला जाता है) तथा इसके विभिन्न उपयोगों के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।

कंटकारी के प्राप्ति स्थल (Places where found)

भारत के लगभग सभी गर्म प्रदेशों में यह खरपतवार के रूप में सड़कों के किनारे एवं बंजर रिक्त स्थानों पर उगता देखा गया है इसके अतिरिक्त इसका पौधा पहाड़ी स्थानों पर भी समुद्र तल से लगभग 2200 मी की ऊँचाई तक बंजर और खाली जमीन पर उगता पाया जाता है।  कंठकारी का कंटिली झाड़ियों वाला यह पौधा हमारे उत्तराखण्ड राज्य में भी लगभग सभी जगह पाया जाता है।

कंटकारी के विभिन्न नाम (Different Names)

प्रजातियों के अनुसार कंटकारी का वानस्पतिक नाम Solanum virginiannum L. (सोलेनम वर्जिनीएनम), Syn-Solanum xanthocarpum Schrad. & Wendl. तथा Solanum surattense Burm.f. है।  कंटकारी  Solanaceae (सोलैनेसी) कुल की होती है तथा कंटकारी को अंग्रेजी में Yellow berried night shade (येलो बेरीड नाइट शेड) या Thorny night shade (थॉर्नी नाइट शेड) भी कहते हैं।  अरबी (Arbi) में इसे बादिंजन बर्री (Badinjan barri), शैकतुल्अकरब (Shaiktulakrab) के नाम से तथा फ़ारसी (Persian) में -बदनगनेदश्ती (Badanganedashti), कटाई खुर्द (Katai khurd) के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

भारत के विभिन्न प्रांतों में इसे भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है:
जैसे संस्कृत (Sanskrit) में - कण्टकारी, दुस्पर्शा, क्षुद्रा, व्याघी, निदिग्धिका, कण्टकिनी, धावनी आदि
हिंदी में (Hindi) में -कंटकारी, कंठकारी, कटेरी, छोटी कटाई, भटकटैया, रेंगनी, रिगणी, कटाली, कटयाल आदि
उर्दू (Urdu) में - कटीला के नाम से जानते हैं
बंगाली (Bengali) में भी कंटकारी (Kantakari) के नाम से सम्बोधित करते हैं
तेलुगू (Telegu) में - नेलवाकफडु (Nelavakudu), वाकफडु (Vakudu) आदि
मराठी (Marathi) में - रिङ्गणी (Ringani), भुईरिङ्गणी (Bhuiringani), पसरकटाई (Pasarkatai) आदि
तमिल (Tamil) में -कांडनगट्टरी (Kandangattari), सुट्टुरम (Sutturam) आदि
मलयालम (Malayalam) में -कण्टकारीचुण्टा (Kantakarichunta), पुट्टाचुंट(Puttachunta),कण्टकारीवलुटाना (Kantakarivalutana), कण्टकट्टारी (Kantakattari)।
कन्नड़ (Kannada) में - नेलगुल्ला (Nelagulla), चिक्कासोण्डे (Chikkasonde) आदि
गुजराती (Gujrati) में -भोयारिंगणी (Bhoyaringani)
ओड़िया (Odia) में - ओन्कोरान्ती (Onkoranti), रेगिंनी भेजिरी (Rengini bhejiri) आदि नामों से जानते हैं।

कंटकारी का पौधा (How the plant looks)

कंटकारी एक प्रकार का कांटेदार पौधा होता है जो झाड़ी के रूप में जमीन पर फैला हुआ होता है।  पूरी तरह कांटो से भरा कंटकारी का पौधा देखने से ऐसा लगता है, जैसे कोई अपने शरीर पर अनेकों कांटो का वत्र ओढ़े गर्जना कहते हुए कह रहा हो, कि मुझे कोई छूना मत।  इसके पूरे पौधे में इतने कांटे होते हैं कि इसे छूना दुष्कर है।  यहां तक कि इसके पत्तों में भी बड़े बड़े तीखे कांटे होते हैं, जिस कारण संस्कृत में इसका उपनाम दुस्पर्शा भी है।  कंटकारी के पत्ते हरे रंग के, फूल नीले-बैंगनी रंग के और कच्चे फल गोल हरे रंग में सफेद धारियों वाले होते हैं, जो पकने पर पीले रंग का कागजी नीम्बू जैसा दिखता है और अंग्रेज़ी में इसे College Star कहते हैं।  यह कांटेदार पौधा आयुर्वेद में औषधीय गुणों से भरपूर बताया गया है और इस कारण विभिन्न औषधियों में इसका उपयोग किया जाता है।

भारत में कंटकारी की मुख्यतया तीन प्रजातियां पायी जाती हैं:
1. छोटी कंटकारी (solanum virginianum Linn.)
2. बड़ी कंटकारी (Solanum anguivi Lam)
3. श्वेत कंटकारी (Solanum lasiocarpum Dunal)
इसमें श्वेत कंटकारी (Solanum lasiocarpum Dunal) का प्रयोग चिकित्सा के लिए विशेष रूप से किया जाता है।छोटी कंटकारी के दो भेद होते हैं एक तो बैंगनी या नीले रंग के पुष्प वाली जो कि सभी जगह मिल जाती है। दूसरी सफेद पुष्पवाली जो हर जगह नहीं मिलती है। इस दूसरी प्रजाति को श्वेत कंटकारी (Solanum lasiocarpum Dunal) कहते हैं। संस्कृत के आयुर्वेद ग्रंथों में इस प्रजाति को श्वेतचन्द्रपुष्पा, श्वेत लक्ष्मणा, दुर्लभा, चन्द्रहासा, गर्भदा आदि नामों से जाना जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार कंटकारी (Yellow Fruit Nightshade)का पौधा सम्पूर्ण रूप से उपयोगी है Kateri or Kanthkari botanical name solanum virginianum is a medicinal plant in Ayurveda,Yellow fruit nightshade in hindi,kateri tree

श्वेत कंटकारी का कांटा वाला पौधा वर्षायू, छोटा एवं हल्के रंग का होता है। इसके फूल सफेद रंग के होते हैं तथा फूलों के भीतर की केसर सफेद या पीले रंग के होते हैं। इसकी जड़ छोटी, पतली तथा शाखायुक्त होती है। यह पौधा शीत-ऋतु में पैदा होता है तथा वर्षा-ऋतु में गल जाता है।

श्वेत कंटकारी प्रकृति से कड़वी, गर्म, कफवात कम करने वाली, रुचि बढ़ाने वाली, नेत्र के लिए हितकर, भूख बढ़ाने वाली, पारद को बांधने वाली तथा गर्भस्थापक (conception promoter) होती है। इसके बीज भूख बढ़ाने में मदद करते हैं। इसकी जड़ भूख बढ़ाने तथा हजम शक्ति बढ़ाने में मदद करती है।

श्वेत कंटकारी के फल भूख बढ़ाने वाली, कृमिरोधी; सांस की तकलीफ, खांसी, बुखार या ज्वर, मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी समस्या, अरुचि या खाने की कम इच्छा, कान में सूजन आदि बीमारियों के उपचार में हितकारी होती है। श्वेत कंटकारी के फल का काढ़ा बुखार से राहत दिलाती है।

आयुर्वेद के अनुसार कंटकारी गर्म प्रकृति की होने के कारण पसीना पैदा करने वाली होती है तथा कफ वात को भी कम करने में सहायक होती है। कंटकारी का पौधा (plant) कटु, कड़वा और गर्म तासीर का होने के कारण खाना हजम करने में सहायता करने वाला बताया जाता है।  भूख कम लगने और पित्त संबंधी बीमारी को दूर करने के में इससे तैयार औषधि बड़ी प्रभावशाली तरीके से काम करती है तथा यह मूत्र संबंधी विकारों और शरीर के तापमान को नियन्त्रित कर बुखार को कम करने में उपयोगी होती है।

इसके मूत्रल गुण के कारण शरीर में पानी की मात्रा बढ़ाकर सूजन में, सूजाक या गोनोरिया, मूत्राघात और मूत्राशय की पथरी में भी यह औषधि लाभकारी परिणाम देती है। यह खून को साफ करने वाली, सूजन कम करने वाली और रक्तभार को कम करती है।  यह श्वांस नलिकाओं तथा फेफड़ों से हिस्टेमीन को निकालती है।  ऐसा माना जाता है कि यह गला साफ कर  आवाज को बाघ या व्याघ्र के समान तेज करती है इसलिए इसको व्याघी भी कहते हैं।

कंटकारी की जड़ से प्राप्त रस में स्टेफीलोकोक्कस औरीयस (Staphylococcus aureus) एवं एस्चरीशिया कोलाई (Escherichia coli) रोधी गुण पाए जाते हैं।

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कंटकारी का उपयोगी भाग (Useful Parts)आयुर्वेद के अनुसार कंटकारी का पौधा सम्पूर्ण रूप से उपयोगी है तथा औषधि के रूप इसके पञ्चाङ्ग अर्थात जड़, पत्ते, पुष्प, फल तथा बीज का प्रयोग विभिन्न विकारों के उपचार के लिए किया जाता है।

कंटकारी के पौधे के उपयोग और फायदे (Uses and Benefits)

एक औषधि के रूप में कंटकारी के फायदों के बारे में आम लोगों को बहुत कम जानकारी पता है। लेकिन आयुर्वेद में इस कंटीले पौधे के अनगिनत औषधीय गुणों के कारण कंटकारी को शरीर की कई बीमारियों के उपचार हेतु प्रयोग किया जाता है। यहां हम इस बारे में विशेषज्ञों की राय के अनुसार कुछ विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं-
दांत दर्द में ( Relieve Pain in Toothache)
दांत दर्द की परेशानी दूर करने में कंटकारी मदद करती है।
-श्वेत कंटकारी के बीजों का धूम्रपान के रूप में प्रयोग करने से भी दाँतों का दर्द कम होता तथा दंतकृमि द्वारा होने वाले दंतक्षय को कम करने में सहायक होता है।
-दांत में अत्यधिक तेज़ दर्द हो तो कंटकारी के बीजों का धुआं लेने से तुरन्त आराम मिलता है।
-कंटकारी की जड़, छाल, पत्ते और फल लेकर उनका काढ़ा बनाकर कुल्ला करने से भी दांतों का दर्द दूर होता है।

सरदर्द तथा बालों सम्बन्धी समस्या (Headache and Head related problems)
सरदर्द तथा बालों की समस्या में कंटकारी का उपयोग फायदेमंद होताहै क्योंकि आयुर्वेद शास्त्रों में इसको बालों के लिए अच्छा बताया गया है।
सिरदर्द में फायदेमंद कंटकारी (Relieve pain in Headache)
हर किसी को आजकल काम के तनाव और भागदौड़ भरी जिंदगी के वजह से सिरदर्द की शिकायत रहती है, तो कंटकारी का घरेलू उपाय बहुत लाभकारी सिद्ध होता है।
-कंटकारी का काढ़ा, गोखरू का काढ़ा तथा लाल धान के चावल से बने ज्वरनाशक पेय का थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में तीन-चार बार सेवन करने से बुखार होने पर जो सिर दर्द होता उसमें आराम मिलता है।
-कंटकारी के फल के रस को माथे पर लेप करने से सिर दर्द कम होता है।
गंजापन कम करने में (Beneficial in stopping Alopecia)
आमतौर पर कई बार किसी बीमारी के कारण बाल झड़कर गंजेपन की अवस्था आ जाती है तो इस अवस्था में कंटकारी का पौधा (plant) उपचार में फायदेमंद साबित हो सकता है विशेषज्ञों के अनुसार 20-50 मिली कंटकारी के पत्ते के रस में थोड़ा शहद मिलाकर सिर में चंपी करने से इन्द्रलुप्त (गंजापन) में लाभ होता है।
-श्वेत कंटकारी के 5-10 मिली फल के रस में मधु मिलाकर सिर में लगाने से इन्द्रलुप्त में लाभ होता है।
दारूणक रोग या बालों की रूसी के उपचार में (Treatment of Dandruff)
पर्यावरण में अत्यधिक प्रदूषण के कारण दिन भर बाहर धूल मिट्टी या धूप में रहने पर अक्सर बालों में रूसी की समस्या हो जाती है।  इससे निजात पाने के लिए कंटकारी के फल के रस में समान मात्रा में मिलाकर सिर में लगा सकते है।

सामान्य जुकाम गले सम्बन्धी विकारों तथा अस्थमा के उपचार में (Treatment of Common Cold & Asthma)
जुकाम से राहत (Relief in Common Cold)
-कंटकारी के बारे में आयुर्वेद में बहुत कुछ लिखा गया है यह सर्दी जुखाम व कफ साइनस में गुणकारी है, अक्सर मौसम के बदलने पर नजला, जुकाम व बुखार हो जाता है, उसमें पित्तपापड़ा, गिलोय और छोटी कंटकारी सबको समान मात्रा में (20 ग्राम) लेकर आधा लीटर पानी में पकाकर एक चौथाई भाग का काढ़ा सेवन करने से बहुत लाभ मिलता है।
-अगर किसी को लम्बे समय से खांसी हो रही हो और किसी भी दवा से ठीक नही हो रहा हो तो वे बाजार से कंठकारी का पंचांग ले लें।  इस पंचांग की 3-4 ग्राम मात्रा को 200 ग्राम पानी में पकाये जब 50 ग्राम शेष रह जाये तो उसे छानकर नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करे।   इसके सेवन से कितनी भी पुरानी खांसी हो वह ठीक होगी व जमा हुआ बलगम बाहर निकाल जायेगा।
-इस प्रकार अगर कंठकारी का काढ़ा बनाकर सेवन करे तो श्वास रोग, खांसी तथा बलगम से छुटकारा पा सकते हैं।

गले की सूजन के इलाज में (Relief from Sore Throat)
आप यदि गले की सूजन से परेशान है तो आपके लिए कटेरी का उपयोग फायदेमंद हो सकता है क्योंकि इसमें सूजन को कम करने के साथ -साथ कफ को भी शांत करने का गुण भी पाया जाता है।

गले में खरास व खाँसी में (Treatment of Cough)
मौसम के बदलाव के कारण लगातार खांसी की परेशानी कम ना होने की स्थिति में कंटकारी इलाज में सहायक हो सकती है।
-20-40 मिली कंटकारी के काढ़े का सेवन करने से सांस संबंधी समस्या, खांसी तथा छाती के दर्द में लाभ होता है।
-15-20 मिली कंटकारी के पत्ते का रस या 20-30 मिली जड़ के काढ़े में 1 ग्राम छोटी पीपल चूर्ण एवं 250 मिग्रा सेंधा नमक मिलाकर देने से खांसी में आराम मिलता है।
-छोटी कंटकारी के रस में पकाए हुए घी को 5-10 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से खाँसी में आराम मिलता है।
-श्वेत कंटकारी के फल के 1-2 ग्राम चूर्ण में मक्खन मिलाकर सेवन करने से भी खांसी में आराम मिलता है।
-25 से 50 मिली कंटकारी के काढ़े में 1-2 ग्राम पिप्पली चूर्ण मिलाकर सेवन करने से खांसी से राहत मिलती है।
-आधा से 1 ग्राम कंटकारी के फूल के चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर चटाने से बालकों की सब प्रकार की खांसी दूर होती है।

अस्थमा के कष्ट से आराम (Beneficial in Asthma)br/> मौसम के बदलते ही दमा या अस्थमा के रोगी को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है लेकिन कटेरी का औषधीय गुण इस कष्ट से आराम दिलाने में लाभकारी होता है।
-कंटकारी की प्रसिद्धि कफ को नाश करने वाली गुणकारी औषधि के रूप में बहुत अधिक है जिस कारण सीने के दर्द समबन्धी समस्याओं में इसका प्रयोग किया जाता है। अगर किसी की छाती में कफ जमा हुआ हो तो इसका 20-30 मिली काढ़ा देने से बहुत लाभ होता है। इसके फलों के 20-30 मिली काढ़े में 500 मिग्रा भुनी हुई हींग और 1 ग्राम सेंधा नमक डालकर पीने से जीर्ण अस्थमा में भी लाभ होता है।
-छोटी कंटकारी के 2-4 ग्राम कल्क में 500 मिग्रा हींग तथा 2 ग्राम मधु मिलाकर, सेवन करने से अस्थमा में लाभ होता है।
-छोटी कंटकारी की जड़ के पावडर (powder), श्वेत जीरक और आंवला से बने चूर्णं (1-3 ग्राम) में, शहद मिलाकर प्रयोग करने से अस्थमा की समस्या में लाभ होता है।
-कंटकारी पञ्चाङ्ग (आयुर्वेद की दुकान में मिलता है) को यवकुट कर आठ गुना पानी मिलाकर गाढ़ा होने तक पकाएं, गाढ़ा होने पर कांच की शीशी में रखें।  इसमें 1 ग्राम मधु मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से आराम मिलता है।

हृदय सम्बन्धी बिमारियों के उपचार में (Treatemnt of Heart Diseases)
कंटकारी हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक होती है इसके उपयोग से दिल की बीमारी होने की संभावना कम होती है। 1-2 ग्राम श्वेत कंटकारी के जड़ की त्वचा के चूर्ण का सेवन करने से हृदय की बीमारी कम होती है।
बुखार से दिलाये राहत कंटकारी (Relief in High Fever)
बुखार के लक्षणों से कष्ट से निजात दिलाने में कंटकारी का घरेलू उपाय लाभकारी होता है-
-कंटकारी की जड़ और गिलोय को समान मात्रा में मिलाकर उसका काढ़ा बनाया जाता है। 10-20 मिली काढ़े को सुबह शाम रोगी को पिलाने से बुखार तथा पूरे शरीर का दर्द कम होता है।
-कंटकारी की जड़, सोंठ, बला-मूल, गोखरू तथा गुड़ को समभाग लेकर दूध में पकाकर, 20-40 मिली सुबह-शाम पीने से मल-मूत्र की रुकावट, बुखार और सूजन दूर होती है।

आँखों सम्बन्धी बिमारियों के उपचार में (Relief from Eye Disease)
दैनिक जीवन में मनुस्य को आँख संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे- सामान्य आँख में दर्द, आँख काअ लाल होना, रात में कम दिखना (रतौंधी) आदि।  इन सब तरह के समस्याओं में  कंटकारी से तैयार घरेलू नुस्ख़ा बहुत काम आता है। कंटकारी का पौधे(plant) के 20-30 ग्राम पत्तों को पीसकर उनकी लुगदी बनाकर आंखों पर बांधने से (आंखों का दर्द ) दर्द कम होता है।

उल्टी के परेशानी में फायदेमंद (Treatment of Vomiting)
अगर मसालेदार खाना खाने या किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के वजह से उल्टी हो रही है तो कंटकारी का सेवन इस तरह से करने पर फायदा मिलता है।
-10-20 मिली कटेरी के रस में 2 चम्मच मधु मिलाकर देने से उल्टी से राहत मिलती है।
-अडूसा, गिलोय तथा छोटी कटेरी से बने काढ़े ठंडा होने पर उसमें मधु मिलाकर, 10-20 मिली की मात्रा में पीने से सूजन और खाँसी  से आराम मिलता है।

पेट सम्बन्धी रोगों के उपचार में (Treatment of Stomach Diseases)
पेट संबंधी समस्याओं में कटेरी का प्रयोग फायदेमंद होता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार कटेरी में दीपन और पाचन के गुण होते है जो कि पाचन शक्ति को अच्छा रखकर पेट संबंधी रोगों को ठीक करने सहायक होता है।

पेट दर्द में फायदेमंद कंटकारी (Treatment of Stomachache)
अक्सर मसालेदार खाना खाने या असमय खाना खाने से पेट में गैस हो जाने पर पेट दर्द की समस्या होने लगती है। कटेरी के फलों के बीज निकाल कर उनको छाछ में डालें तथा उबालकर सुखा दें। फिर उनको रातभर मट्ठे में डुबोएं तथा दिन में सुखा लें। ऐसा 4-5 दिन तक करके उनको घी में तलकर खाने से पेट दर्द तथा पित्त संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है।

दस्त कम कर उसे रोकने (Fight Diarrhea)
अगर ज्यादा मसालेदार खाना, पैकेज़्ड फूड या बाहर का खाना खा लेने के कारण दस्त है कि रूकने का  नाम ही नहीं ले रहा तो कटेरी का घरेलू उपाय बहुत काम आयेगा।श्वेत कंटकारी के 1-2 ग्राम फल चूर्ण का सेवन तक्र (छाछ) के साथ करने से अतिसार में लाभ होता है।

अग्निमांद्द या अपच से छुटकारा (Treatment of Dyspepsia)
अगर खान-पान में गड़बड़ी होने पर बदहजमी की समस्या हो रही है तो उसमें कटेरी का इस तरह से सेवन करने पर आराम मिलता है।
समान मात्रा में कंटकारी और गिलोय के 1½ ली रस में 1 किग्रा घी डालकर पकाना चाहिए। जब केवल घी मात्र शेष रह जाए तब उसको उतार कर छान लें। इस घी को 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से अपच की समस्या तथा खांसी की समस्या से राहत मिलती है। कंटकारी के गुण अपच के समस्या से राहत दिलाने में मदद करते हैं।

मंदाग्नि या अपच का उपचार (Beneficial in Indigestion)
मंदाग्नि होने से खाना ठीक से नहीं पचता है इस स्थिति में आपके लिए कटेरी का सेवन लाभकारी हो सकता है, क्योंकि कटेरी में आयुर्वेद के अनुसार दीपन और पाचन के गुण पाए जाते है जिससे ये मंदाग्नि में दूर कर खाना पचाने में मदद करती है।

बवासीर या पाइल्स के उपचार में उपयोगी (Useful in treatment of Piles)
अगर ज्यादा मसालेदार, तीखा खाने के आदि है तो पाइल्स के बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। उसमें  बवासीर का घरेलू उपाय बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। श्वेत कंटकारी के फलों को कोशातकी के काढ़े में पकाकर प्रयोग करने से अर्श या पाइल्स में लाभ होता है।

मूत्रकृच्छ्र या मूत्र संबंधी समस्याओं के उपचार में (Treatment of Dysuria)
मूत्र संबंधी बीमारी में बहुत तरह की समस्याएं आती हैं, जैसे- मूत्र करते वक्त दर्द या जलन होना, मूत्र रुक-रुक कर आना, मूत्र कम होना आदि। कंटकारी इस बीमारी में बहुत ही लाभकारी साबित होता है।
-छोटी कंटकारी के जड़ के चूर्ण में समान भाग में बड़ी कटेरी के जड़ का चूर्ण मिलाकर, 2 चम्मच दही के साथ, सात दिन तक खाने से पथरी, मूत्रकृच्छ्र (मूत्र त्याग में कठिनता) तथा जलोदर (पेट में जल की मात्रा अधिक होने के कारण सूजन) में लाभ होता है।
-कंटकारी के 10-20 मिली रस को मट्ठे में मिलाकर, कपड़े से छानकर पिलाने से मूत्रकृच्छ्र (पेशाब की रुकावट) में लाभ होता है।

प्रसूति सम्बन्धी तथा अन्य स्त्री रोगों के उपचार में (Obstetrics and other women health problems)
स्तनों के ढीलेपन का उपचार (Treatment of Laxity of Breast)
अगर ब्रेस्ट या स्तन के ढीलेपन से परेशान हैं तो कंटकारी की जड़ और अनार की जड़ को सामन मात्रा में  लें। उसको पीसकर  स्तनों पर लेप करने से स्तन कठोर हो जाते हैं और स्तन या ब्रेस्ट का ढीलापन कम होता है।

गर्भपात का खतरा कम करने में (Abortion)
कंटकारी का औषधीय गुण गर्भपात के खतरे को कम करने में मदद करता है। छोटी कंटकारी या बड़ी कटेरी की 10-20 ग्राम जड़ों को 2-4 ग्राम पिप्पली के साथ मिलाकर भैंस के दूध में पीस छानकर कुछ दिन तक रोज दो बार पिलाते रहने से गर्भपात का भय नहीं रहता और स्वस्थ शिशु का जन्म होता है।

प्रसव-पीड़ा या लेबर पेन में लाभकारी (Useful in treatment of Labour pain)
कंटकारी का औषधीय गुण लेबर पेन को कम करने में मदद करती है। 10-20 मिली श्वेत कंटकारी के जड़ (root) का सेवन करने से प्रसव पीड़ा कम होता है।

त्वचा संबंधी समस्याओं के उपचार में (Treatment of Skin Diseases)
आजकल के प्रदूषण भरे वातावरण में त्वचा संबंधी रोग होने का खतरा बढ़ता ही जा रहा है। हर कोई किसी न किसी त्वचा संबंधी परेशानी से ग्रस्त हैं। कंटकारी इन सब परेशानियों को कम करने में मदद करती है।
श्वेत कंटकारी के जड़ को पीसकर लेप करने से कण्डू या खुजली, क्षत (कटना या छिलना) तथा अल्सर के घाव में लाभकारी होता है।

कंटकारी के औषधीय उपयोग के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे है आचार्य बालकृष्ण जी:

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि हमारे पहाड़ों की बंजर भूमि पर अपने आप उगने वाली कंटकारी की झाड़ी औषधीय रूप हमारे लिये बहुत ही लाभकारी है।  औषधीय रूप से इसकी उपयोगिता के देखते हुये हम कह सकते हैं कि अगर उचित प्रयास किया जाये तो यह पहाड़ में सीमित रूप से कुछ लोगों के लिए रोज़गार का जरिया भी हो सकती है क्योंकि यह अनुपजाऊ जमीन पर स्वत: उगने वाली वनस्पति है।  अगर इसको औषधीय उपयोग हेतु उगाया जाता है तो इसके लिए कोई विशेष तरह की जमीन, खाद, पानी और देखभाल की आवश्यकता नहीं होगी।  इसके कंटीले पौधे को जंगली जानवरों जैसे सुअर, बन्दर आदि का भी खतरा नही होता है।  पहाड़ों की विसम परिस्थितियों वाली उसर जमीन पर भी इसे आसानी से उगाया जा सकता है।

कंटकारी के औषधीय उपयोग सम्बन्धी चेतावनी:
इस लेख में केवल कंटकारी के औषधीय गुणों एवं उपयोगों के सम्बन्ध में जानकारी दी गयी है, इसे किसी भी प्रकार हमारे द्वारा औषधीय या चिकित्सकीय परामर्श ना समझा जाए।  इसका औषधीय या चिकित्सकीय प्रयोग केवल योग्य विशेषज्ञ चिकित्सक के परामर्श से किया जाना चाहिए।


सन्दर्भ:
कटेरी के हैं अनेक अनसुने फायदे
कटेरी के ३६ चमत्कारी फायदे और उपयोग विधि
वीडियो आस्था चैनल तथा फेसबुक पेज - Ayurveda medicine academy के सौजन्य से
[[हमारे पोर्टल पर औषधीय वनस्पतियों के बारे में जानें]]

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