
अरंड या एरंड (Castor oil plant)
लेखक: शम्भू नौटियालअरंड या एरंड (Castor oil plant) वानस्पतिक नाम रिसिनस काॅम्युनिस (Ricinus communis); यह वानस्पतिक कुल यूफोर्बिएसी (Euphorbiaceae) से संबंधित है। संस्कृत में इसे एरण्ड, आमण्ड, चित्र, गन्धर्वहस्तक, उरुबक, चित्रबीज आदि कहते हैं। अरंडी चौड़े पत्तों का छोटे कद वाला पौधा होता है, जो प्राकृतिक रुप में जन्म लेता है व कृषिजन्य या वन्यज भूमि में 2000 मीटर की उंचाई तक पाये जाते हैं।
इसके बीजों से तेल निकाला जाता है, जो औषधि रुप में प्रयोग किया जाता है। अरंडी का तेल कैस्टर ऑयल नाम से ज्यादा प्रचलित हैं। सदियों से इसका प्रयोग स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं के लिए किया जाता है। इसके पत्ते भी औषधि रुप में बहुत काम आते हैं। आम तौर पर एरंड का इस्तेमाल आँख संबंधी समस्या, पाइल्स, खाँसी, पेट दर्द जैसे समस्याओं के लिए प्रयोग किया जाता है। अर्श, भगंदर तथा गुदभ्रंश के रोगियों में एरंडपाक के सेवन से बिना जोर लगाए मल साफ होता है, जिससे रोगी को उक्त व्याधियों से होने वाले दैनिक कष्ट से मुक्ति मिल जाती है। औषधि-कर्म के साथ ही यह पोषण का भी कार्य करता है।

अरंड (एरण्ड) रक्त (लाल) और श्वेत (सफेद) दो प्रकार का होता है। जिन वृक्षों के बीज बड़े होते हैं, उनका तैल जलाने के काम आता है और जिनके बीज छोटे होते हैं, उनका तेल औषधि में प्रयोग किया जाता है। किसान रबी एवं खरीफ फसल में आवारा पशुओं से परेशान रहता है दस फीसद पैदावार को आवारा जीव नष्ट कर देते है किंतु अंरडी ऐसी फसल है, जिसको खाने के लिए कोई जीव आकर्षित नहीं होता है।
उपयोग व फायदे:
- अरंडी की जड़ 20 ग्राम को 400 मिलीलीटर पानी में पकायें। जब यह 100 मिलीलीटर शेष बचे तो इसे पिलाने से त्वचा संबंधी रोगों में लाभ होता है। अरंडी के तेल की मालिश करते रहने से शरीर के किसी भी अंग की त्वचा फटने का कष्ट दूर होता है।
- अरंडी के तेल की मालिश नियमित रूप से सोते समय करने से कुछ ही सप्ताह में सुंदर, घने, लंबे, काले बाल उगने लग जाएंगे।
- सिर पर अरंडी के तेल की मालिश करने से सिर दर्द की परेशानी दूर होती है। अरंडी की जड़ को पानी में पीसकर माथे पर लगाने से भी सिर दर्द में राहत मिलती है।
- अरंडी का तेल थोड़े-से चूने में फेंटकर आग से जले घावों पर लगाने से वे शीघ्र भर जाते हैं। अरंडी के पत्तों के रस में बराबर की मात्रा में सरसों का तेल फेंटकर लगाने से भी यही लाभ मिलता है।
- मल त्यागने में कठिनाई का अनुभव हो तो अरंडी के तेल को दूध के साथ देने से लाभ होता है।
- अरंडी का तेल गर्म पानी के साथ देना चाहिए या फिर अरंडी का रस शहद में मिलाकर बच्चों को पिलाना चाहिए। इससे बच्चों के पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
- पत्ते पर थोड़ा चूना लगाकर तिल पर बार-बार घिसने से तिल निकल जाता है। अरंडी के तेल में कपड़ा भिगोकर मस्से पर बांधने से मस्से मिट जाते हैं। अरंडी का तेल लगाने से जख्म भी भर जाते हैं और इसकों मस्सों पर लगाने से मस्सा ढीला होकर गिर जाता है।
- अरंडी के बीज की मींगी को दूध में पीसकर रोगी को पिलाने से गर्दन और कमर दोनों जगह का दर्द चला जाता है।
- 10 ग्राम एरंड की जड़ को छाछ के साथ पीसकर पिलाने से उल्टी और दस्त बंद हो जाते हैं।
- अरंडी के पत्तों का क्षार 3 ग्राम, तेल एवं गुड़ आदि को बराबर मात्रा में मिलाकर चाटने से खांसी दूर हो जाती है।
- अरंडी के तेल की 10 बूंदों को रात को सोते समय पानी में मिलाकर सेवन करने से कब्ज की बीमारी में लाभ होता है।
- चोट लगकर खून आने लगे, घाव हो तो एरंड का तेल लगाकर पट्टी बांधने से लाभ होता है। एरंड के पत्ते पर तिल का तेल लगाकर गर्म करके बांधने से चोट से सूजन एवं दर्द में लाभ होता है।
- 20-30 मिली एरण्ड मूल-क्वाथ में 2 चम्मच मधु मिलाकर पिलाने से कामला में लाभ होता है।
- हरे एरंड की 20 से 50 ग्राम जड़ को धोकर कूटकर 200 मिली पानी में पकाकर 50 मिली शेष रहने पर पीने से पेट की चर्बी कम (beneficial in weight loss) होती है।
- 20-30 मिली एरण्ड के पत्ते के काढ़े में 15 मिली घृतकुमारी स्वरस मिलाकर प्रात सायं सेवन करने से अर्श में लाभ होता है।
- एरंड तैल और घृतकुमारी स्वरस मिलाकर मस्सों पर लगाने से जलन शान्त हो जाती है।
- एरंड की मींगी को पीसकर, गर्म कर उदर के अधोभाग में लेप करने से वृक्कशूल व शोथ का शमन होता है।
- प्रसव-काल में कष्ट कम हो सके इसके लिए गर्भवती त्री को 5 मास बाद एरंड तेल का 15-15 दिन के अन्तर से हलका जुलाब देते रहनेसे प्रसव के समय 25 मिली एरंड तेल को चाय या दूध में मिलाकर देने से प्रसव शीघ्र होता है।
- एरंड के पत्तों को गर्म कर पेट पर बांधने से मासिक-विकारों का शमन होता है।
- एरंड और मेंहदी के पत्तों को पीसकर प्रभावित स्थान पर लेप करने से वातज वेदना (Arthritis) का शमन होता है।/
- एरंड के बीजों को पीसकर जोड़ों में लेप करने से छोटी सन्धियों और गठिया की सूजन मिटती है। वेदना स्थल पर एरंड तेल की मालिश करनी चाहिए।
- 20 ग्राम एरण्ड मूल को 400 मिली पानी में पकाकर, काढ़ा बनाकर, 100 मिली शेष रहने पर पिलाने से चर्म रोगों में लाभ होता है।
- एरण्ड पत्र को पीसकर लगाने से घाव और सूजन में लाभ होता है।
- एरण्ड के 10-15 ग्राम फलों को पीस-छानकर पिलाने से अफीम का विष उतरता है।


सावधानी:
लाल एरण्ड के बीजों को अत्यधिक मात्रा में सेवन करने से मूर्च्छा तथा भ्रम उत्पन्न होता है। इसका अत्यधिक प्रयोग आमाशय के लिये भी अहितकर होता है।
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