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कुमाऊँनी समाजा्क आभूषण

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कुमाऊँनी समाजा्क आभूषण


-प्रो. दया पंत, सेवानिवृत्त आचार्य (इतिहास), अल्मोड़ा

कुमाऊँ, मध्य हिमालयक यक भौते महत्त्वपूर्ण जा्ग छ।  कुमाऊँ, शब्दैकि व्युत्पत्ति ‘कूर्मांचल‘, ‘कुमारवन‘ या ‘कूर्मवन‘ बटिक करी जैंछ। यां यौ मान्यता छ कि भगवान विष्णुल मन्दर पर्वत कैं धारण करणक लिजी लुआघाट-चंपावतक निकट ‘कूर्म‘ औतार ल्हे। पैलि बै लुआघाट-चंपावत आस-पासक जा्ग कैं ‘कूर्मांचल‘ कई जांछी। बाद में जब चंदवंशैकि चम्पावत में राधजानी हुणक वजैल, वीक संपर्क राज्यक नाम ‘कुमाऊँ‘ है गो छी, जो कि आजक पिथौरागढ़, चम्पावत, अल्माड़्, बागश्यर, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिल्ल में तलक छी।

यक अलग भौगोलिक क्षेत्र हुनक बारणल कुमाऊँक जन-जीवनैकि अपुंण कई विशेषता रयी छन। आज सब्ब इतिहासकार यौ बात पर सहमत लै छन कि कुमाऊँ में मानव गतिविधयां प्राचीन काल बटिक प्रारम्भ हैई गो छी। हमन कें  जानकारी लै किलैं कि प्रारम्भिक मानवैल उ सब्ब भू-क्षेत्र कैं आपुण निवास लिजी चुनाव करौ, जां उकैं खाण-पिंणक लिजी ज्यादा मसक्कत न करण पड़ौ। और जा उकैं ख्वौर ढकीनैक जिली, रौंणक जिली उड्यार मिल सकौ। कुमाऊँ भू-भागक भौगोलिक परिवेश कैं देखते हुए कई जै सकूं कि यां प्रारम्भिक मानव कैं कुमाऊँक विभिन्न पहाड़ी वन क्षेत्र में खान-पिणक लिजी कंदमूल फल और रौंणक लिजी ‘उड्यार‘ मिल गई हुन्याल।

आदिमानवल आपुंण निवासक रूप में उड्यार कैं चुनौ। जसिक-जसी मानवौक बौद्धिक विकास भौ, उसिकैं उ आपुण सुंदरताक ओर लैं ध्यान दिन फैटौ। फलस्वरूप कालान्तर में वील आपुंण सौन्दर्य कैं निखारणक लिजी अनेक प्रकाराक प्रसाधनौं कैं प्रयोग में ला। वर्तमान परिपे्रक्ष्य में सौन्दर्य कैं बढूंनौक लिजी अनेक प्रसाधनों क अलावा आपुण शरीरक अलग-अलग हिस्स में धारणप करनी लिजी आभूषण महत्त्व मिलौ। यहां उल्लेख करण ह्वल कि मध्य  हिमालयक भौत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र कुमाऊँ में प्रचलित आभूषणौंक अध्ययन करन पर हमन कैं यांक परम्परागत ज्ञानक बार में भौत जानकारी मिली जैं।

ऐतिहासिक और पुरातात्त्विक सामग्री, विभिन्न प्रकाराक साहित्यक अध्ययन करन पर हमन कैं यौ ज्ञात हूंछ   कि जतुक प्राचीन यांक मानव गतिविधिक इतिहास छ, उतुकै प्राचीन कुमाऊँ में आभूषणौंक इतिहास लै रई हुनेल।  यां मिली हुई प्राचीन मूर्तियौंक अवलोकन करण पर हमन कैं  काफी ज्यादे जानकारी मिली जैं।

मनखी हमेशा बटिक ईश्वरक अलौकिक रूपैक कल्पना   करनौक बाद उकैं अलग-अलग स्वरूपोंक स्मरण करूं। और उसी अलौकिक रूप कैं उ कभै-कभै कलाक माध्यमैल लै उद्घााटित करनौक प्रयास करूं। मध्य हिमालयी भू-भाग बटिक प्राप्त विभिन्न प्रकाराक अवलोकन है जानकारी मिलैं कि यां भौत पुराण समयाक देव मूर्ति में सुंदर-सुंदर आभूषणोंक प्रदर्शन करि गौ छी। मनखी हमेशा बटिक आपण आराध्य देवक सुंदर स्वरूप कैं विचार आपण मन भितेर धारण करूं। और येक आधार पर ऊ आपुं कै लै सुंदर बनौंनक प्रयास करौं। अलग-अलग कालखंडोंकि मूर्तियों में सौंदर्य की अभिवृद्धि लिजी भिन्न-भिनन प्रकाराक आभूशणोंक प्रदर्शन करी राखौ। येक संदर्भ में शिव प्रसाद डबराल लिखनी कि ‘कुााणकालीन मूर्तियोंक प्रभामंडल साद रौंछी। गुप्तकाल में प्रभामंडलों कैं कमल, पुष्प, लता गंधर्व आदिल अलंकृत करनैकि परम्परा चली। नारायण आदिक मूतियों में ख्वार पर ‘किरीट-मुकुट‘, ‘कानों मेमं कुंडल‘, हाथों में ‘कंकड़‘, गाव में ‘हार‘, और ‘केयूर वनमाला‘ और कभै-कभै उत्तरीय या श्री वत्सयुक्त वक्षस्थल और अधोवस्त्र दिखाई जाण फैगेछी।‘

कुमाऊँक संदर्भ में हमन कैं यौ जानकारी मिलैंछ कि यां अलग-अलग कालखंडन में अलीग प्रकाराक आभूषण प्रचलन में छी। यतुकै नैं, आभूषण कैं धारण करनौक प्रचलन मात्र सौंदर्याभिवृद्धि न हुंछी, अपिु ये साथ अनेक लोक-विश्वास जुड़ी हुई छी। जो वर्तमान समय में यांक निवासियोंक परम्परागत ज्ञान कैं प्रमाणित करछी। यौ परम्परागत ज्ञान कुमाऊँक समाज में आज सब जा्ग देखी जै सकूं।

कुमाऊँ में आभूषण धारण करनौक प्रचलन बाल्यकाल बटिक आरम्भ भौछ। यां नामकरण संस्कार में च्यल और च्येलि द्विवनों कैं ‘सुत‘ और ‘धागुल‘ पैरौंनौक रिवाज छ। यां येसि परम्परा शामिल छ कि नवजात भौ कैं नामकरण संस्कार में पैरौंनी वाल आभूषणन में गाव में ‘सुतः और हाथ और खुट में धागुल‘ कैं माकौट वाल रिश्तेदार लै बेर पैरा दिनीं। यांक संस्कारन में येसि कई प्रकाराक परम्परा विद्यमान छन। कुमाउनी समाज में आभूषण धारण करनेकी परम्परा स्यैणिंयन मै ही न्हैंतैं, बल्कि यां पुरुष लै आभूषणन कैं पैरनीं। पर्वतीय समाज में पुरुशैकी अपेक्षा स्यैणीं आभूषणैन कैं पैरनी।

पूर्व काल में कुमाऊँक विभिन्न क्षेत्रों अलग-अलनग जाति वर्गाक स्यैंणी और पुरुष, द्विनै अलग-अलग धातुओंल निर्मित आभूषण कैं धारण करछीं।  पिथौरागढ़ जिल्ल में रौंणी वाल आदिवासी वनराजी आदिवासी जनजातिक बार में जानकारी मिलैं कि यौ लोग स्वछंद वातावरण में रौंनी और प्रकृति में सरलताल मिलनी वाल लता-पुष्पोंक प्रयोग आपण साज-श्रृंगार में करनीं।

कुमाऊँ अंचलाक स्यैंणियों द्वारा पैरी जानी वाल आभूशण यांक सामाजिक विश्वासों बटिक संबंधित छन।  कांचैकि चूड़ी, चरेऊ माव और नथ आदि धारण करनैकि परम्परा केवल सधवा स्यैंणियन में देखीं जै सकैं। यां यौ लै मान्यता छ कि स्यैंणियों द्वारा उनौर मा्थ पर बिन्दी लगौंन और सिंदूरैल मांग भरनैकि परम्परा लै मात्र सधवा स्यैणियन में देखी जैंछ। यांक विभिन्न देवालयों व संग्रहालयों में धरी हुई देव प्रतिमाओंक अवलोकन करनूं त हमने कैं जानकारी मिलैं कि यां णिन्द, कत्यूरी व चंद शासकोंक शासनकाल  में लो देव प्रतिमाओंक निर्माण करि गो, उनुमैं आकर्षक व सौंदर्यैकि दृष्टिल महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन करि गोछ। याँ कुणिन्द, कत्यूरी एवं चंद शासकोंक शासनकाल में जो देव प्रतिमाओंक निर्माण करी गोछ, उनुंमैं आकर्षक येक वजैल भौत छ।

लगभग एक हजार वर्ष पैलियेकि मूर्तियों में आभूषण पैरनैकि परम्परा कैं देखी जै सकूं और अनुमान लगाई जै सकूं कि आभूषण पैरनेकि परम्परा आजैकि न्हैंत। यांक स्यैंणी-पुरुष द्वारा शरीरैक विभिनन अंेगों में आभूषण धारण करनेकि जो परम्पराक अन्वेषण सैकड़ों साल पैलियेकि मानव द्वारा करी गोछी, उ निरंतर आज लै छ। आज शरीरैक उन अंगों में आभूषण पैरनैकि परम्परा छ, जमैं सैकड़ौं साल पैलियेकि मूर्तियों विभिन्न अंगों में दिखाई दीं। यक बात भौत महत्त्वपूर्ण यौ लै छ कि आभूषण कैं बणौंनी और शरीरैक को अंग में आभूषण कैं पैरी जै सकों, यौ बात हमार यांक परम्परागत ज्ञान कै लै बतै द्यों।

ग्रामीण क्षेत्रों में रौंनी वा्ल स्यैंणि नाक और कानक आभूषणों कै धारण करनीं। यौ परम्परा भौत प्राचीन छ। यां बालिकाओं क बचपनै में नाक-कान छेद दिनीं। उत्तरायणी में नाक-कान छेदनैकि परम्परा लै यां छ। मानी जां कि उत्तरायणी में नाक-कान छेदनैक बाद कोई प्रकारैक संक्रमणैकि संभावना नी हुंण। नाक कान छेदनैक लिजी चांदील बनी हुई नुकीली बालीक प्रयोग हुंछ। और कुछ दिन तक नाक-कान में छेदी गई जा्ग पन सिर्फ तागा डाली जां।  हिलपट में उगनी वाली फर्न कैं लै छेदी हुई नाक‘-कान में में डाली जां। जब जसिकै-जसिकै समाज में आज शिक्षाक स्तर बढन फैगैछो। कई रूढ़ियां टूटन फैगई। यौ कारण काईं-न-काईं हमार समाज में आज रिश्त-नातक महत्त्व ले घटी गयो। उनुमैं आज भौत परिवर्तन देखी जै सकूं।

आज बै करीब द्विदशक पैली तक हमार ग्रामीण समाज भौत अभावग्रस्त में आपुंण जीवन बसर करंछी। वां घर-परिवार कैं भौत समस्या लागि रूंछी। समाज में सधवा व विधवा स्यैंणियोंक साथ हुंनी वा्ल व्यवहार में अंतर दिखाई दिंछी।  कम उम्र में विधवा हई स्यैंणिक शेष जीवन कष्टकारी हुंछी।  पैलि बै रत्तै व्यांग अगर क्वे विधवा स्यैंणी दर्शन है जांछी त मैंस या द्यखनी वा्ल आपुहीं अपशकुन मानन फैजाछीं। यई विचार योंक आभूषण पैरनौक प्रचलन में लै देखी जै सकूं।  सधवा स्यैंणि हर प्रकाराक आभूषण कैं पैरनीं। उ तमाम किस्माक आभूषणन कैं पैर सकैं। विधवा स्यैंणि गाव पन मंगलसूत्र, नाक में फूलि, नथूली, ख्चवार में मांगटीक न सकनेर भै। यौ आभूषण विर्धा स्यैणियन कैं पैरन वर्जित है जां। यां तक कि ऊ रंग-बिरंगी, गहरी रंगैक लुकुड़ लै न पैरी सकनेर भै। आज लै यौ परम्परा कुमाऊनी समाज में लै कायम छ।

यांक स्यैंणि आपुंण पति कैं आपुंण भगवान मानिबेर पूजनीं। हमार धर्मशास्त्र में पति कैं विष्णु और स्यैंणि कैं लछिमिक रूप में मानीं जां। ब्याह काज में पति कैं ‘वर नारायण‘ कई जां। स्यैंणि येक वजैल सब्ब आभूषण कैं पैरैं और कई आभूषण कैं सुहागक प्रतीक रूप में धारण करनीं।  पैली बै गौं-घर पन भौत भारी आभूषण कैं वांक स्यैंणी पैरंछी, किन्तु आ्ब मशीन बटिक बंणि हुई आभूषण कैं पैरन फैगई।  ‘सुतः, धागुल‘, झांवर‘, उत्तरौले‘, ‘तगड़द्यी बुलाॅक जा्स आभूषण लुप्तप्राय हैं गयीं। यौ आभूषण बनौनैकि परम्परा लै खत्म हैं गयीं।

हमार पुरखों क द्वारा चलाई गयी हरेक परम्परा आ्ब कमजोर पड़न फै गयीं। जबकि ऊ परम्पराओं में दूरदर्शिता छी।  वैज्ञानिक दृष्टिकोण, वैज्ञानिक ज्ञान छी। कई सालौं पैली, लगभग 4-5 दर्शक पैली कुमाउनी आभूशण दिखाई लै पड़ंछी। आ्ब नाख में पैरनी वाली नथूलिक रूप लै बदई मिलैं। नाकैकि नथूली लै आ्ब नानि-नानि है गे।

अंगूठी लै यांक पैरनी आभूषण छ। अलग-अलग राशि वा्ल मनखीं कैं अलग-अलग धातुकी बंणी हुई अंगुठी पैरनैकि परम्परा आज लै विद्यमान छ। मूंगा, हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, श्वेत पुखराज, पीला पुखराज, नीलम आदि रत्न अंगूठी में लगै बेर यांक लोग पैरनीं। सौंदर्य अभिवृद्धि; करणैक साथ-साथ यमैं, आर्थिक, सामाजिक धार्मिक प्रभाव देखी जै सकूं। हमार पुरखोंल आभूषण कैं परम्परागत ज्ञान दगेड़ि जोड़ि बेर द्यखौछी। दशा निवारण लिजी यौ आभूषण, रत्न इच्यादि पैरंछी।

समय बदवनौक कारण आज हमार आभूषण हरै गयीं।  जांणि कां ल्है गईं, हमार समाजा्क आभूषण। आ्ब हमार आभूषण भौत कम दिखींनी। जरूवत छ कि हमार आभूषणकैं बचैंनैकि और उनर प्रयोग करनेकि।

उत्तराखण्डी मासिक: कुमगढ़ 7 वर्ष 07 अंक 7-8 नवम्बर-दिसम्बर 2020 से साभार
फोटो: फेसबुक

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