
कुछ करनी कुछ करतूत
हीराबल्लभ पाठक
मित्रो! बचपन में बुजुर्गनांक् मुख बटि एक कथा सुणि छी, वीकैं लिपिबद्ध करणक् प्रयास करनयू। पढ़िया और अपंणि प्रतिक्रिया जरूर दिया हाँ। धन्यवाद्

एक सैंणि पशुभाखा ज्याणनेर भै, एक दिनैंकि बात कि- एक स्याव हुआ-हुआ करनौछी ऊ सैणिल् सुणौ त् तुरन्त दौड़ लगैबेर् नदी तरफ्यां न्है गे, गौं वलांल् द्यखो त् ऊं लै विक् पिछ करन-करनै न्है गाय। नदी किनार जै बेर उनूल् द्यखौ कि ऊ सैंणि त् एक मरी मैसैकि लाश कैं दांतुल् उधेणंण लै रै त् उनूल् सोचौ ओहो! यौ त् मरी मैंस खांण लै रै, जरूर यौ कोई भूतणि छू। उन सब गौं वलांल् वीक् सौर थैं कौ कि यकैं गौं निकाव करौ।
आब् वीक् सौर असमंजस में पड़ि गो किलैकि ऊ भौतै कृषाण और भल् मनैकि भै कसिक् निकाऊ यौ सोचनैं सौरैल् सोचो कि नि निकालन त् गौं वाल् नाराज है जैंल् तब सौरैल् ऊ ब्वारि तैं कौ कि तिकैं त्यार मैत् पुजै उनूं , और द्वियै वीक् मैत् हैं बाट लै गाय। जान-जानैं धोपर है गे और तीसैल् बिडौव है गाय त् बाट निसाइ एक नौव देखि बेर सौरैल् कौ ब्वारि मथि ऊ नौव छू पाणि पि ल्यूल् । पाणि पिबैर सुस्ताण लै रौछी कि एक कौ क्यां- क्यां करंण लागौ, ब्वारिल् वीक् क्यां-क्यां सुणिबेर हल्की अवाज में मन-मनैं कौ कि- (जम्बू (स्याव) बोले यौ गत भयी तू क्या बोले काग) सौरैल् कौ ब्वारि तू यौ मणमणाट जस क्ये लै रौछै और यौ कौ दगै क्ये बात कुनछै।
ब्वारिल् कौ सौरज्यु मिकैं पशुभाखा क् थ्वड़ ज्ञान छू, उदिन जब गौं तीर स्याव बला त् वील् कौ कि नदीतीर एक मैंसैकि लाश बगि ऊनै वीक् जंघा में चार लाल सिणी हुयी छन् तू ऊ लाश कैं किनार लगे द्ये , जंघा चिरि बेर् लाल तू लि ले और लाश कैं मैं खै ल्यूल् । यस सुणिबेर मैं दौड़नैं वां हैं गऊं, दातुलि या चक्खु ल्हि जांण भुलि गऊं, वां जै बेर मिल् ऊ लाश पाणि बटि भ्यार निकायी औरअपंण दांतुल् वीकि जंघा चिरि बेर चार लाल निकाइ, तस्सै गौं वाल् पुजि गयीं और बाकि तुमुल् उनरि बात मानि बेर मिकैं मैत भेजणछा। सौरैल् कौ पै ऊं लाल कां छीं, त् ब्वारिल् अपंण गांत बटि निकाइ और सौरक् हाथ में धरि दी। फिरि सौरैल् पुछौ यौ कौ दगण तू क्या बात करनछी। ब्वारिल् कौ कि- कौ कुनौ यौ नौवक् भ्यार् जो ठुल पाथर छू वीक् तिराइ एक सुनौंक् भरी गागर छू, और एक स्याप लै ऊ में भै रौ, तू यौ पाथर कैं हटै दे, मैं स्याप कैं मारि बेर खै ल्यूल् और तू सुनौक् भरी गागर ल्हीजा।
तब सौर और ब्वारिल् ऊ पाथर हटा त् एक भौत्तै ठुल् स्याप ऊ गागर में भैटी भौय, कौ ल् तुरत ऊ स्याप कैं पकड़ौ और दूर लि न्है गो। सौरैल् कौ ब्वारी! माफ करिये मिल गौं वलांकि बात मानि बेर् त्यर् उपर शंका करी। हिट आब घर हैं न्है जूल, और द्वियै अपंण घर ऐ गाय। और ऊं गौं भरि में सेठज्यु बणि गाय।
(कुछ करनी कुछ करतूत कुछ पूर्वजनम के भाग)
यस्सै हुनेर भये हो।
धन्यवाद् मित्रो
(सर्वाधिकार सुरक्षित @ हीराबल्लभ पाठक),08-02-2021
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स्वर साधना संगीत विद्यालय लखनपुर, रामनगर

श्री हीरा बल्लभ पाठक जी की फेसबुक वॉल से साभार
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