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पहाड़ों में बसंत - गिर्दा का कुमाऊँनी गीत

गिरीश तिवारी "गिर्दा" का बसंत ऋतु का कुमाऊँनी गीत, Girish Tiwari Girda Kumaoni Geet Basant, Girda ka Basant par Kumaoni Geet

जनकवि श्री गिरीश तिवारी "गिर्दा" का बसंत ऋतु का गीत

यह गीत गिर्दा का पहाड़ों में बसंत के सौंदर्य को साकार रूप में हमारे सामने खड़ा कर देता है।  बसंत के मौसम में पहाड़ो के खेत, गाँव और जंगल किऐसे खिल उठते है कर कैसे प्रकृति रंगों से नहा उठती है?  इसको गिर्दा ने अपनी कल्पना के माध्यम से कुमाऊँनी भाषा के शब्दों में प्रस्तुत किया है।

रात उज्यालि पै घाम निमैलो
डान-कानन केशिया फूलो .. 2
शिव ज्यू कैं मारि मुट्ठी रँगै की
सार हिमाल है गोछ रंगीलो ... 2
हुलरि ऐ ग्ये बसंतै की परि
फोकि गो जां तां रंग पिंगलो....2

ध्यान टूटो छार फूका जोगी को
आज बीभूत जां लै पिंगली ग्ये... 2


मुल-मुल हँसैं हिमालै की चेली
सुकीली हंसी थोल नैर बणी ग्ये....
ध्यान टूटो छार फूका जोगी को
आज बीभूत जां लै पिंगली ग्ये
मुल-मुल हँसैं हिमालै की चेली
सुकीली हंसी थोल नैर बणी ग्ये....


बण बोटण में फूटि गयीं पूँगा
कैरू किल्मोड़ी का कान कौंलिणा ...2
आड़ू खुमानी का फूल मौलिणा
हरिया सारि मा पिङ्गलो दैंणा ...2
सुर सुर हवा पड़ि फागुणै क
ठुम ठुमा बन परि नाचण फै ग्ये ...2


फर फर उड़ो बसंती आँचल
सुर बुर ही में कुतकाली लै ग्ये
सुर सुर हवा पड़ि फागुणै की
ठुम ठुमा बन परि नाचण फै ग्ये
फर फर उड़ो बसंती आँचल
सुर बुर ही में कुतकाली लै ग्ये
हुलरि ऐ ग्ये बसंतै की परि
फोकि जगो जां तां रंग पिंगलो

रात उज्यालि पै घाम निमैलो
डान-कानन में केशिया फूलो
शिव ज्यू कैं मारि मुट्ठी रँगै की
सार हिमाल है गोछ रंगीलो
हुलरि ऐ ग्ये बसंतै की परि
फोकि गो जां तां रंग पिंगलो
फोकि गो जां तां रंग पिंगलो
फोकि गो जां तां रंग पिंगलो


वीडियो मनमोहन बिजल्वाण जी की फेसबुक वॉल से

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