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गौं बै शहर- यांकौ अगासै दुसौर छु (भाग-१९)



-:गौं बै शहर -यांकौ अगासै दुसौर छु:-

कुमाऊँनी नाटक
(लेखिका: अरुण प्रभा पंत)

->गतांक भाग-१८ बै अघिल-->>

अंक ४४-

आज नरैणैल आपण खरीदी  जमीन में भूमि पूजन  करवै बेर भौत भल जौ चिता।  पद्मा खुश तो छी पर सोचणैछी कि अघिल चलौल कैसी?  सब्बै खर्च कर दिया तो ये चेलि कैसी पार करुंल।  अज्यान पढ़ूण  लै भै, फिर  हमार यों चेलि तौ पड़ौसाक चेलि जा इंटर बी. ए. कर बेर ब्या हूं मंसाणी जा ले नि भाय।औरी औरी कोर्सनाक नाम ल्हिबेर आपण बाबू को मतकै  दिन और ऊं होय होय कै बेर मतकी जानी, आग लगूंणमायभैऔलादैकि।

तब तक नरैण मेन मिस़तिर (मुख्य मिस्त्री) थैं बात करि बेर भीतर आ। 

नरैण - "के भागी के सोच लाग रैंयी, आब तू यो परदेस में  मकान वालि है जालि।"
पद्मा - तबै तो सोच पड़रैंयीं।  कैसी करला तुम?  यो साल रीता डाक्टरी फौरम ले भरणै, नीता दसुऔंक इम्तिहान  दिणै।  तो नानि क्याप क्याप खेलणी  सामान  मगूंणी वालि छु।  सांचि कुंणयूं यो हमूल भौत जाग हाथ धर हैलीं, हौलदिलीजजै है जैं मकं।
नरैण - "तस नि कौ भागी, त्यार मलबै मैल आपण सब कामौक उमेद धर राखी।  जां तक खर्च छू उ तो होलै  सही, ऐल नि होलो तो कबहोल तू बस कमर कस राख, मैल आपण भविष्य निधि बबै डबल गाड़ राखीं।  रीता अगर पैल प्रयास  में  निकल गयी तो ख्वार ले कपाव।  वीक वास्ते तो आजकल शिक्षा लोन है गो और मैल भौत पैल्ली जब मेरी नय नय नौकरी लाग छी तब एक पौलसी खोल छी आब छः म्हैणाक अंदर लगभग बीस तीस हजार मिली जाल।
पद्मा - "फिर  ले भौत संभलबेर चलण पड़ौल यां परदेस में कोछु आपण!"
नरैण - "हद्द करणै छै, यां इतु बर्सबै हम रुणंयां और यों ले हमारै भाय, इननककं पराय नि कौ हो, गलत बात।"
पद्मा - "होय तस तो भयै हम यां रैबेर आपण  गौं तो जाण नि लागराय और फिर लै इनन को पराय समझनूं, मौक पर ऐल योई तो काम आल।"
नरैण - "आब तू घरपन देसवालिण झन बणिये, भितेर हमुल आपण भास बोलि नि छाड़न भै हां"।
पद्मा - तैक तुम चिंता नि करो।  मैं  मरण  जांलै आपणै भास रीति रिवाज करूंल।  उं दिन हम उं जोशज्यूक वां गैंया, ओइजा मेरी जम्मै यैंकी बोलि और  कुणैछी "हम तो अब बोल नहीं  पाते, बच्चे  तो जानते भी नहीं, कौनभैन्ट में पढ़ते हैं बच्चे।" "ओ इजा खोरि फुटि सिगल पू बाड़ रैत देलि पुजण सबै भुलिगे हो गजब।"
नरैण - "मैस तो रोज रोजगार हुंजानेरै भौय पर आपण जाड़ छाड़न नि भाय, हमरि बोलि रीतरिवाज कभ्भै भुलणि बात भयी कैं!डबल होला तो घरौक कुड़ ले सुदारूंल, रिटैर हुण पर गरमीन में पहाड़ और बांकि यां रूंल। 

क्रमशः अघिल भाग-२०->>  
मौलिक
अरुण प्रभा पंत 

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