
श्याव या सियार - ख़तरनाक जंगली शिकारी
(लेखक: दीप रजवाड़)सियार एक शिकारी जानवर है और यह कॉर्बेट व इसके आस पास के जंगलों और गन्ने आदि के खेतों में आमतौर से पाया जाता है यह आकार में लगभग लोमड़ी की तरह का होता है। भारत में कई स्थानों पर मनुष्यों कि जनसंख्या विस्फोट के कारण इनकी जनसंख्या में ज्यादा कमी हुई है।
सामान्य तौर पर सियार या जिसे घरेलू भाषा में हम छोटा सियार कहते हैं वह गांव के निकट पाया जाता है सियार भोजन के लिए गांव की भेड़ बकरियों पर भी हमला करते हैं ये कुत्ते के बच्चे को भी खा जाते हैं सामान्य तौर पर सियार इंसानों पर हमला नहीं करते लेकिन कभी-कभी ऐसी घटनाएं देखी गई हैं।
सियार जोड़ों में रहते हैं और ठंडी की रातों में सियार एक साथ मिलकर पुकार या आवाज़ लगाते हैं यह बहुत ही डरावना लगता है कुछ दंतकथाओं में ऐसा प्रचलित है कि सियार गांव में प्रवेश करने से पहले गांव में उपस्थित धार्मिक स्थल से पुकार लगाकर प्रवेश की इजाजत मांगते हैं। सियार सर्वहारी जीव हैं और जो कुछ भी खाने को मिले उसे खा जाते हैं।
यहां तक कि पौराणिक कथा के अऩुसार यह जानवर इंसान के नवजात शिशुओं को भी अपना भोजन बना लेते है। सियार जो एक पौराणिक जन्तु है विश्व की अनेक दन्त कथाओं में इसका उल्लेख मिलता है। यह शानदार जीव 16 किमी प्रति घण्टे की रफ़्तार से दौड़ सकता है। ये बहुत अवसरवादी व मौक़ापरस्त शिकारी होते है जो अधिकतर बड़े शिकारियों जैसे बाघ व तेदुआं द्वारा मारे गए शिकार की जूठन खा का अपना पेट भरते हैं इसके अलावा इनको घायल हिरन और प्रजनन के बाद जन्मे हुए उनके छोटे बच्चों का भी शिकार करते हुए भी देखा गया है।




पर्यावरण को शुद्ध बनाने में सियार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। लेकिन जैसे-जैसे जंगल समाप्त हो रहे हैं, सियारों की प्रजाति भी खतरे में आ गई है। सियारों का इस तरह खत्म हो जाना पर्यावरण के लिए अशुभ संकेत है। भोजन की तलाश में ये 10 से 15 कि.मी तक की दूरी तय करते है और ख़ासकर मरे पड़े जानवरों पर ये ज़्यादा आश्रित रहते हैं और अपने परिवार का भरण पोषण करते हैं।
दीप रजवाड़, 19-10-2020दीप रजवाड़ जी के फेसबुक पेज DeepRajwar Wildlife Photographer से साभार
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