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कुमाऊँनी कसिक लेखी जैं?

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कुमाऊँनी कसिक लेखी जैं?

कहानीकार - डॉ. केशवदत्त रुवाली

(य कुमाउनी कहानि कैं ‘पहरू’ कुमाउनी पत्रिका द्वारा आयोजित 
‘बहादुर सिंह खनी स्मृति प्रेम कहानी लेखन योजना 2019’ में पुरस्कार मिली छु) 

उत्तराखंडा्क तेर जनपद द्वि मंडलन में विभाजित छन: कुमाऊँ मंडल और गढ़वाल मंडल। वर्तमान कुमाऊँ मंडल में छै जनपद छन- पिथौरागढ़, चंपावत, बागेश्वर, अल्मोड़ा, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर। कुमाऊँ क्षेत्र में प्रचलित भाषा कुमाउनी कई जैं।

संपूर्ण कुमाऊँ क्षेत्र में एकै भाषाक प्रयोग नि पाई जा्न। यां करीब दस बोली छन और यो बात देखण में ऊंछि कि जो कुमाउनी साहित्यकार जै क्षेत्र में निवास करूं ऊ वांकी बोली कैं लेखणक माध्यम बणू। यै कारणलि कुमाउनीक लिखित रूप में समानता नि पाईन। सर्वविदित छ कि कुमाऊँ क्षेत्र में लगभग दस बोलिनक व्यवहार हुंछ और हर बोलि में उच्चारण, वर्तनी, शब्दावली आदि भाषिक तत्व विषयक बहुत कुछ अंतर विद्यमान छ। ये वास्ते आज एक ज्वलंत समस्या छ कि सर्वमान्य- सर्वग्राह्य मानक कुमाउनीक रूप कि छ, यानी मानक कुमाउनी कसिक लेखी जैं?

उपलब्ध कुछ प्रमाण पाई जानी कि कुमाउनी भाषाक आदिकाल लगभग इग्यार सौ शताब्दी बटी चैद सौ शताब्दीक बीच में पड़ों। यैक प्रारंभिक तीन सौ सालन में कुमाउनीक ज्ञात प्रारंभिक रूप देखी सकीं। ये काल में कुमाउनीक संस्कृतनिष्ठ रूप पाई जां। उदाहरण स्वरूप पिथौरागढ़ जनपदक दिगांस नामक स्थान बटी उपलब्ध सन् इग्यार सौ पांचक एक शिलालेख में कुमाउनी भाषा में लिखित यो वाक्य पाई जां-शाके दस सौ सत्ताईस (1027) द्सि महिन्द्र भट माहेश्वर स्थायीतं।

चौद सौ शताब्दी बटी सत्र सौ शताब्दी तक कुमाउनीक पूर्वमध्यकाल छ। यो अवधि में जा्ग-जा्ग बटी अनेक जातिनक लोग कुमाऊँ क्षेत्र में संक्रमित है बेर आई और उनरि भाषाक प्रभाव कुमाउनी में प्रवेश करण लागौ। यो प्रभावक बावजूद पूर्वमध्यकालीन कुमाउनी भाषा में संस्कृतनिष्ठता बरकरार रै। यतुक जरूड़ लक्षित हुंछ कि तत्समताक अपेक्षा तद्भव शब्दावलीक प्रयोग अधिक हुण लागौ। उच्चारण में ट्ठस्वताकि प्रवृत्ति प्रकट हुण लागी, हालांकि लेखन में कती-कती दीर्घीकरण लै पाई जां।

सत्र सौ ईसवी बटी उन्नीस सौ ईसवी तक कुमाउनीक उत्तरमध्यकाल छ। यै काल में कुमाऊँक संबंध दिल्ली दरबारक दगाड़ हुणा कारण अरबी-फारसी शब्द कुमाउनी भाषा में प्रविष्ट हुण लागी। साथ-साथ तद्भव शब्दनक प्रयोग में लै बृ(ि हुण लागी।

सन् सत्र सौ अठाईस ईसवी है पूर्व तक कुमाउनी भाषा अभिलेख और पत्र व्यवहार तकै सीमित रै। सन् सत्र सौ अठाईस ईसवी में रामभद्र त्रिपाठी द्वारा ‘लघुचाणक्य राजनीतिशास्त्र’ ग्रंथ कुमाउनी गद्य में अनूदित करी गो। यै पुस्तक में चाणक्य द्वारा प्रणीत राजनीति आदि विषयक संस्कृताक श्लोकनक कुमाउनी भाषा में गद्यानुवाद प्राप्त हुंछ। शब्दावली विचारलि यै पुस्तक में संस्कृतनिष्ठता जादे छु। पुर किताब में जुबाब और माफिक मात्र द्वि शब्द अरबी-फारसी भाषाक छन। लोकरा, मुशन आदि ठेठ कुमाउनी शब्द लै प्रयुक्त करी गई।

ध्वन्यात्मक संदर्भ में यो बात देखण में ऊंछि कि चाणक्यनीतिक कुमाउनी अनुवाद में सामान्यतया सर्वत्र दंत्य स ध्वनिक स्थान पर तालब्य श ध्वनि ;स्वनद्ध प्रयुक्त पाई जां, बतौर उदाहरण- ‘लघुचाणक्य’ अध्यायः 4, श्लोक: 4 में पैंल पंक्ति देखी सकीं- ‘‘असंकीर्णो दृढ़ो विप्रो दृढो राजा सुधार्मिक’’ श्री रामभद्र ज्यूलि यैक कुमाउनी गद्यानुवाद- ‘‘वर्णशंकर जो नि हो शो ब्राह्मण दृढ हुंछ-’’ करि राखौ। यो टीका श्री रामभद्र त्रिपाठी ज्यूल सन 1728-29 में प्रस्तुत करी। कुमाउनी भाषा और संस्कृतिक ज्ञान प्राप्त करणाक वास्ते यो अनुवाद महत्वपूर्ण सामग्री छ।

रामभद्र त्रिपाठी द्वारा अनूदित ‘चाणक्यनीति’ है लै पैंली बटी कुमाउनी भाषा में लेखणकि परंपरा मौजूद छी। सत्र सौ अठाईस तक आते-आते ऊ काफि विकसित है गैछि। उत्तरमध्यकाल में कुमाऊँ पर गोरखा शासनक दौरान कुमाउनी में नैपालि शब्द ऊण लागी। उदाहरण स्वरूप लोकरत्न गुमानीक कविताकि भाषा संस्कृतनिष्ठ और नैपाली भाषा प्रभावित छ। अठार सौ पन्द्र में कुमाऊँ पर अंग्रेजनक शासन शुरू हुणा कारण कुमाउनी भाषा में अंग्रेजी शब्द लै प्रयुक्त हुण लागी।

उन्नीस सौ बटी कुमाउनी भाषाक आधुनिक काल प्रारंभ हुंछ। यै काल में कुमाउनी भाषा में लेखनेर साहित्यकारनकि संख्या में आशातीत बढ़ोत्तरी लक्षित हुँछि। हिंदी भाषाक प्रभावलि कुमाउनी में स्थानीय यानी ठेठ कुमाउनी भाषाक शब्दनक प्रयोग समाप्त हुण लागौ और उनार स्थान पर हिंदी शब्द प्रयोग में ऊण लागी। यो क्रम बरकरार छ। कुमाउनी शिक्षित वर्ग और साधारण घरन में लै हिंदी और अंग्रेजी प्रभावित कुमाउनी बुलाण में लोग गर्व अनुभव करण प्रतीत हुनी।

आधुनिक कुमाउनी में हिंदी शब्दनक भौत जादा प्रयोग और व्याकरणगत समानता देखि बेर डाॅ. हरदेव बाहरी आदि भाषाविद् कुमाउनी और गढ़वाली ;मध्य पहाड़ीद्ध भाषा कैं पहाड़ी हिंदी नाम दिण उचित समझनी, पर यो नाम उचित न्हांती। आधुनिक कुमाउनी में दिन पर दिन साहित्य रचना में वृद्धि हुण लागि रै। 

विभिन्न रचनाकार अगर आपण- आपण क्षेत्र में प्रचलित बोली प्रभावित कुमाउनीक प्रयोग करनै रौला तो कुमाउनी भाषाक एक मानक रूप कभै लै सामणि नि ऐ सकौ। यै वास्ते यो अनिवार्य छ कि एक सर्वग्राह्य- सर्वस्वीकृत मानक कुमाउनीक संकल्पना सामणि लाई जावो, अन्यथा कुमाउनी भाषा में अराजकता घर करि जालि।

हिंदी भाषाकि भांति कुमाउनी लै देवनागरी लिपि में लेखी जैं। देवनागरी वर्णमाला में परंपरागत जतुक वर्ण छन उना्र आधार पर कुमाउनी में-आ्/ तथा ओ् द्वि स्वर या्स छन जनर ट्ठस्व कती त मात्र स्वनिक छ, पर कती यो ट्ठस्व उच्चारण अर्थभेद प्रकट करांै। जस-कुमाउनी में हिंदी दादी या नानी वास्ते बहुप्रयुक्त आम शब्द में प्रारंभिक आ कणि ट्ठस्व बुलाण जरूड़ी छ और लेखण में लै यो ट्ठस्वता कणि सूचित करणहिं आ तलि हलंत जस संकेत अंकित करण अनिवार्य हो्ल, अन्यथा यो शब्द आम जस प्रतीत हो्ल और जाहिर छ कि आ्म तथा आम द्वि अलग-अलग अर्थ दिणी शब्द छन। योई प्रकार का्न-कान, बा्त-बात, पा्ठ-पाठ आदि या्स भौत शब्दयुग्म छन। यसी कै ओ्ड़-ओड़, जो्ड़-जोड़, खो्ट-खोट आदि शब्दयुग्म में लै शुरू वा्ल शब्दनक ओ् ट्ठ्रस्व उच्चारण अर्थ भेदक छ, जै कणि लेखण में लै ओ स्वरक तलिक विशेषक चिह्न ( ा्) लगाई जा्ण अनिवार्य छ।

परम शुद्ताध दृष्टिलि त संकेत ( ा्)  छ, पर प्रयोगताओंक आग्रह और सुविधाक वास्ते हलंत जस चिह्न  ( ा्)  कणि मानक कुमाउनी लेखण में स्वीकार करणकि मजबूरी छ। असल में हलंत ( ा्)  अलगै परिभाषिक भाषा तत्व छ, पर कुमाउनी संदर्भ में सुविधा वास्ते ट्ठस्व आ् तथा ओ् लेखणकि मजबूरी छ। असल में आ् तथा ओ्स्वनिम कुमाउनीक आपणि निजी अस्मिता अथवा विशिष्टिता छ।

कुमाउनी भाषा में लेखन उच्चारणानुगामी न्हाती यानी जस उच्चारण करी जां ठीक उसै लेखण में न उतारी जै सकीन। यो बात भौत जरूरी ध्यान में धरण छ अर्थात् जस बुलाण में सुणी, उस लेखण में उतारण पर ह्स्वत्व संकेत ( ा्)  कणि भौत सावधानीपूर्वक प्रयोग करण चैं। ध्यान दिणै बात छ कि कुमाउनी उ आल वाक्य लेखण में दीर्घनायुक्त है जां, उदाहरणार्थ- ऊ यां आलो

भौगोलिक आधार पर कुमाउनी भाषा कणि पूर्वी कुमाउनी और पश्चिमी कुमाउनी नामक द्वि भागन में बांटी सकीं। पूर्वी कुमाउनी में चार बोलि-कुमाई, सोराली, सीराली और अस्कोटी छन। पश्चिमी कुमाउनी अंतर्गत छै बोलि छन- खसपर्जिया, चैगर्खिया, गङोई, दनपुरिया, पछाई और रौचैबैंसी।

पूर्वी कुमाउनी और पश्चिमी कुमाउनी में उच्चारण और शब्दावली संदर्भ में अंतर छ। पूर्वी कुमाउनी शब्दगत अंतिम न ध्वनि पश्चिमी कुमाउनी में ण रूप में पाई जैं। उदाहरणार्थ- पूर्वी कुमाउनी में पानि, स्यैनि, बैनि उच्चारण-वर्तनी पाई जैं।

एक विचित्र बात यो देखण में एें कि उच्चारण में पश्चिमी कुमाउनी में अंतिम न ध्वनि पूर्वी कुमाउनी में ण उच्चारण में पाई जंै। जसिक-पश्चिमी कुमाउनी में घुन (घुटना) उच्चारण मिलों, जबकि योई शब्द पूर्वी कुमाउनी में घुण बोली जां। कुछ शब्दन में अंतिम न ध्वनि पूर्वी और पश्चिमी कुमाउनी द्वीनै में समान छ, जसिक-कान=कर्ण, का्न=कांटा, बान=सुन्दर, बा्न=बच्चे के लिए तिरस्कार सूचक शब्द आदि।

पूर्वी कुमाउनी में पुल्लिंग एकवचन वा्ल शब्दन में ट्ठस्वत्वयुक्त ओकारांतता तथा बहुवचन में ट्ठस्व आकारांतता लक्षित हुंछि, जबकि पश्चिमी कुमाउनी में योई शब्द व्यंजनांत पाई जानी। उदाहरणार्थ पूर्वी कुमाउनी में ठुलो, भलो, कालो, मैलो शब्द पश्चिमी कुमाउनी में ठुल, भल, का्ल, मैल रूप में पाई जानी।

अब यो सवाल उठंू कि अगर संपूर्ण कुमाऊँ में एक संपर्क भाषा चुनी जावो त कुमाउनीक को बोलि कणि मुख्य आधार बणाई जावो। मतलब यो छ कि कुमाउनी भाषाक एक आदर्श रूप के छ?वास्तव में कुमाउनीक जो दस बोलि छन उनर व्यवहार आपण-आपण क्षेत्र में सहज रूप में होते रौल, पर जां तक साहित्य, पत्रकारिता, प्रशासन, शिक्षा आदि क्षेत्रनक कुमाउनीक भाषाक प्रश्न छ वीक रूप मानक, यानी शु( तथा सर्वमान्य हुण अनिवार्य छ।

आज कुमाऊँ क्षेत्र में यसि कुमाउनी भाषा आवश्यक छ जो विभिन्न व्यवहार क्षेत्रन में संप्रेषणजन्य सबै प्रयोजनन कणि साधि सकौ। यैक लिजी जरूड़ी छ कि यसि किसमकि भाषा क्षेत्रीयता तथा सामाजिक विविधता बटी ऊपर उठि बेर सर्वग्राह्य और सर्वमान्य हवौ यानी वीक एक आदर्श या मानक रूप हुण चैं। यैक वास्ते कुमाउनी भाषाक मानकीकरण भौत जरूड़ी छ। उसिक त हर समाजकि संप्रेषण-व्यवस्था सर्वग्राह्य और सर्वमान्य भाषा रूप कैं आपणि सामाजिक प्रक्रियाक भितेर खोजि ल्हीं, पर वीक सम्यक विकास और प्रसारक लिजी यो भाषाक नियोजन लै अनिवार्य छ। भाषा नियोजन विषयक यो कार्य द्वि दिशान में प्रवृत्त हुंछ-पैंल मानकीकरण और दुसर आधुनिकीकरण।

मानकीकरण एक यसि प्रक्रिया छ जै में उच्चारण-वर्तनीगत विविधता में है एक रूप कैं ग्राह्य और दुसर रूप कैं त्याज्य या अग्राह्य करी जां। उदाहरणस्वरूप जल अर्थवाची शब्द पानि और पाणि में है मानक कुमाउनीक संदर्भ में पाणि उच्चारण-वर्तनी स्वीकार करी सकीं। अब सवाल यो उठाई  सकीं कि मानक भाषा संरचनात्मक दृष्टिल आपण विभिन्न रूपन में है या विभिन्न बोलिन में है कोई एक रूप या बोलि पर आधारित हुंछि। मानकता प्राप्त करते-करते यैक बोलीगत लक्षण लुप्त है जानी और वीक विस्तार क्षेत्रीय धरातल बटी उठि बेर भाषा स्तर पर आबेर व्यापक है जां, जै में दुसर बोलिनक खास-खास तत्व स्वाभाविक रूपलि आ जानी।

आज हिंदीक जो मानक रूप छ ऊ खड़ीबोली पर आधारित छ। यई प्रकार मानक कुमाउनी खसपर्जिया बोलि पर आधारित मानी सकी। खसपर्जिया में पाणि उच्चारण- वर्तनी पाई जां, जो मानक कुमाउनी संदर्भ में स्वीकार करि बेर यैकै प्रयोग सबै साहित्यकारन कैं करण चैं, लेकिन क्षेत्र विशेषक यानी जस सोरालीक क्षेत्र विषयक साहित्य और बोल-चाल आदि में पानि शब्द पानी वास्ते स्वाभाविक रूपलि प्रयोग में आते रौल।

सारांश यो छ कि पानि और पाणि में है पाणि उच्चारण-वर्तनी मानक छ। यती कें यो दुसर सवाल लै उठंू कि उच्चारण में यो पाणि पाई जां, पर लेखण में यो पाणी लेखी जां। शु( वर्तनी दृष्टिल पाणि सही छ या पाणी?इज-इजा, कैंज-कैंजा, आ्म-आमा आदि में लै दीर्घीकरण प्रवृत्ति पाई जैं। यो संदर्भ में ऐल यतुकै कै सकीं कि भाषा कैं बिल्कुल कठोर नियमन में बादि बेर जीवित धरण संभव न्हांती और न कोई भाषा प्रयोगशाला में तैयार करी जैं। सो सारि बात प्रयोग पर आधारित छ। साहित्यकार लोग जो एक मानक प्रयोग कैं व्यवहार में ल्याल, भविष्य में एक दिन वी प्रयोग मानक कई जा्ल।

दंत्य स और तालब्य श प्रयोग में लै भ्रम बणी हुई छ। पूर्वी कुमाउनी में दंत्य स कि प्रवृत्ति व्यापक छ, पर पश्चिमी कुमाउनी में तालब्य श उच्चारण पाई जां। जस- बास-बाश, पास-पाश, बीस-बीश आदि असंख्य उदाहरण छन। यो संदर्भ में यई कई सकीं कि अगर तत्सम शब्द में स वर्तनी छ त कुमाउनी में लै तद्नुसार दंत्य सई लेखण, प्रयोग करण चैं यानी संस्कृत-हिंदी परंपरा प्राप्त शब्दन में वर्तनी परंपरानुसारै धरण चैं। ठेठ कुमाउनी शब्दनक संदर्भ में वी वर्तनी मानक कई जालि जो साहित्यकार प्रयोग में ल्याई करनी।

मानकीकरण प्रक्रिया में चार बात मुख्य छन- चयन, संसक्ति, प्रयोग और स्वीकृति। मानक भाषा वास्ते कुमाऊँ क्षेत्र में प्रचलित दस बोलिन में है एक बोलि कैं मानक भाषाक आधार रूप में चयन करण अनिवार्य छ, यानी भौगोलिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टिल जो बोलि सशक्त छ वीक चयन मानक कुमाउनी लिजी आधारस्वरूप ग्रहण करण पड़ल। खसपर्जिया बोलि कैं कुमाउनीक संदर्भ में यो गौरव दी सकीं। यैकै साथ-साथ कुमाउनीक अन्य नौ बोलिनक सहयोग लै प्राप्त करण अनिवार्य ह्वल, ताकि मानक कुमाउनी भाषाक शब्दभंडार समृ( है सकौ।

संरचनात्मक संसक्ति में लेखन यानी वर्तनीक स्थायित्व और व्याकरणिक एकरूपता बणाई रखण में सहायता मिलैं। विभिन्न बोलिन में शब्दनक उच्चारण समान नि हुन, पर लेखण में प्रयास करी जां कि उच्चारणगत विविधता कैं समाप्त करि बेर मानक भाषा में संरचनात्मक एकरूपता स्थापित करी जावौ। यसि एकरूपता कैं सामाजिक प्रतिष्ठा तबै प्राप्त है सकैं जब विभिन्न रूपन में है एक रूपकि प्रयोगकि बारंबारता सहज है जावौ, यानी ऊ जबरदस्ती थोपी न लागण चैन।

संक्षेप में कई सकीं कि भाषाकि जान छ प्रयोग। कुमाउनी भाषाविद् और साहित्यकार निरंतर प्रयासरत रौला तो भौत जल्दी कुमाउनीक एक यस मानक रूप सामणि प्रस्तुत है जा्ल जो सर्वमान्य और सर्वग्राह्य ह्वल। यैक वास्ते मानक कुमाउनी शब्द संपदा, कुमाउनी गद्य-पद्य में लिखित मौलिक, संकलित और अनूदित ग्रंथनक लेखन, प्रकाशन, प्रचार-प्रसार और संवृद्धि तरफ सतत प्रयत्नशील रई  जावौ। •

‘पहरू’ कुमाउनी मासिक पत्रिका , सितंबर २०२० अंक बै साभार

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