
बाटुली - कुमाऊँनी कहानी
(लेखक: श्री महेन्द्र ठकुराठी)"मनक मनसा बैरि। मन करंछ हौरै, करम करंछ हौरै। पालघर जमनदाक द्वी च्याल पल्टन में सिपै छन। द्विए ब्वारियां और नाति-नातिणी गों में रौनी। जमनदा आपण बुड़्याकाव खुशी-खुशील उनर दगड़ बितूणौ। रात्ती बखत नाति-नातिणियों कें इस्कूलहुं छाड़िओं और ब्यावहुं घर ल्यैओं। जब लै देखौ, स्यैणी-नानतिनोंक हंसी-खेलल घरक माहौल गरमैरों। एकदम खुशहाल परिवार छु। एक गोरु और भैंस धिनू छें। एक भैंस बाखुड़ छु। खेति-पाति कमै राखी, सो अलग। डबल-टाकनकि दैल-फैल होते हुए लै ब्वारियां काम-धंद में जुटि रौनी। तबैत कई जां- जै घर धिनालि त्यारै त्यार, जै घर नानतिन कौतिकै कौतिक। जमनदाक परिवार में सुख-चैनकि क्वै कमी न्हा। सबनक मुखड़ में उज्यावपट देखीरों। एक म्यर परिवार छु। जम्मै चार आदिमि त छन। लेकिन सब मन-मनक पुर्ख हैरई। कैकें कैकी परवा न्हा। पत्त नै मैंल कस किसमक दान माङि राखी। जिंदगी भरि कभै सुख-चैन देखण में नै आय। आब यो बुड़्याकाव फोड़ि सकूंई मैं आपण हांट-भांट? उमर भरि फौजियोंक ब्वज बोकि-बोकिबेर कमर टेड़ीगै। जबकि मैं हैबेर जमनदाक शरीर में आजि लै पुरि तड़ि मौजूद छु।" घरक पटांगण में घिङारुक जांठ टेकि-टेकिबेर चहलकदमी करते हुए किसनूकाक मन में योई किसमक विचारोंल जबरदस्त हलचल मचै राखी।
इज बाबनल नानछनाई मुयैबेर हिटिदे। पढ़ण-लेखण त छाड़ौ, सुखल द्वी गास खाणहुं लै मौक नै लाग। पछूं सालकि उमर बैई गोंवालनकि चाकरि करी। गोरु-बाछ चराई। दूद पिणी नानतिनोंक ग्वाव रौण पड़ौ। ज्वान्यूकि शुरुआतै बै पुरि उमर ब्वज बोकण में गुजरिगै। काक-काखीनल ब्या करिदे। पैंली एक चेलि खिमुलि और द्वी साल बाद एक च्यल पिरमू पैद भई। घरवालि कें हैजा है पड़ौ। वील लै अदबाटै छाड़िबेर परलोकहुं हिटिदे। खिमुलिल अठूं दर्ज हैबेर ज्यादे नै पढ़ि सक। ब्वज बोकिबेर एकबट्याई डबल कां पुर पड़छी। थ्वड़ कर्ज-पर्ज गाड़िबेर चेलिकें बेवा। पिरमू कें जसी-तसी पढ़ा-लेखा। पैंली-पैंली त वील खूब मन लगै। लेकिन दसूं दर्ज में तीन साल फेल है पड़ौ। जब उकें लागौ कि अघिलकें पढ़ण-लेखण वीक बसक बात न्हा, त वील दिल्ली उज्याण हिटिदे।
वां उकें एक डाक्टर सैपनक क्लीनिक में दवै-पुड़ी बाणनक और साफ-सफाई धरणक काम मिलि गय। तनखा इतुक कम भै कि सिर्फ जेबखर्चै निकवण रौछी। डाक्टर सैपनल यो कैबेर पिरमू कें अलज्यैदे कि अगर उ अघिलकें भल काम करल त उं वीकि पगार बढ़ै द्याल। मेरि लै उमर ढवण पैगैछी। मैं एकलै के करि सक्छी? सोचौ- च्यलक खुट बेड़ि द्यूंल त मेरि जिम्मेदारी पुरि हैजालि और च्यल लै कमूण-धमूण भैटल। घर परिवारकि फिकर करल। बाबुक दिल भय। थ्वड़ दिनोंकिथें च्यलकें घर बुलैबेर वीक ब्या लै करिदे।
बखतल करवट बदली। तीन सालक भितेर द्वी नाति लै भई। हालांकि माली हालत त सुधरि नै पै, लेकिन नानतिनों दगड़ संतोष देखीण रौछी। चिताईनौछी कि आब सुदिन आल। लेकिन मनकि मुराद मन में धरियै रैगे। द्वी-चार दिन मरियां मनल घरपन लै रौ, फिरि स्यैणि नानतिनोंकें दगड़ ल्हिजनै रौ। दिल्ली पुजिबेर वील बुड़ बाबुकि सोद खन्यावै नै करि। डबल टाकनकि मधत त रैगे दूर, कुशौ बात लै नै पुछ। बातचीत करणहुं जो मोबाइल नमर दी जैरौछी, उ कामै नै करणय। पुजण-पुजणै सिम बदेइदे सैत। इंतजार करते हुए चार म्हैण बिति गई, आजि तक क्वै खबर नै ऐरै।
किसनूकाक मन में विचारोंक सिलसिल चलते जाणौछी। अचाणचक उनर ध्यान तब टुटौ, जब जमनदाकि छै सालकि नातणि सुरेखा आ और उनर हातबै जांठ खोसिबेर ल्हिजानी रै।
"अरे सुरेखा! के करली बुड़ मैंसक जांठल तूं? ल्या, मैकें दे। तसैक सहारल हिटि सकूं मैं।" उनूल सुरेखा उज्याण हातनल शान करते हुए कौ, और खोलदेइ में भैटि ग्याय।
"ल्हियौ, मैं त खालि मजाक करण रई। बुड़ बुबुकें किलै सतूंल? बुबू! तुमूल खाण खा कि नै?" खिलखिल हंसिबेर नानि सुरेखाल जांठ उनूकें देते हुए सोदौ। उ लै किसनूका दगड़ भैटिगै।
"खैहै नातणी! बेलि ब्यावबै द्वी र्वाट और आद्द ब्याव साग बची छी। उसैल काम चला। ज्यादे भूख लै नै छी। आज ब्यावकें तुमरै घर खोंल। जमनदाल बेलीबै कै राखौ।" सुरेखाक मुखपन मसारते हुए किसनूका ल लाड़ देखा।
"जरूर आया बुबू! रोजै लै वां खाला त भल भय। तुम एकलै बुड़ मैंस छा। द्वी गास हमरै घर खै ल्हेला।" सुरेखाल उनर च्यूणपन आङुव फेराते हुए कौ।
"बिल्कुल नातणी! कभणी तुमर घर खोंल, कभणी मालघर फकीरूक घर खोंल। कभणी आपण भितेरै चुल जलै ल्हियूंल। म्यर लिजी अकाव जें के हैरो?" उनूल भौ उज्याण नजर घुमाते हुए कौ।
सुरेखाक मुखमंडव देखिबेर उनूकें खिमुलिकि याद ऐ पड़ी। नानछना उ लै इतुकै मयालु छी। बुड़ और बीमार मैसनकें देखिबेर उकें दाय ऐ जनेर भै। घर नजिक बै औनेर जानेर बुड़ मैसोंकें जबरदस्ती घर भितेर भैटूनेर भै। रुख-डावन में लागियां मौसमी फलों कें टिपि ल्यैबेर खवूनेर भै। आपण हातनल चहा-पाणि बणैबेर पिवूनेर भै। कभै कै दगड़ वीक झगड़ नै भय हुन्यल। सबनकिथें भल सोचनेर भै। तबैत भगवानल वीक लिजी लै चारों तरफबै दैल-फैल करि राखौ। जमाईज्यू भौत भल मैंस छें। किरानाकि भौत ठुलि दुकान छु। खिमुलिल द्वी जर्सि गोरु पाइ राखीं। दूद, दै, छांछ और घ्यू बेचनी। घर नजिक पाणि छु। सौड़-भौड़न में खूब साग-पात पैद हूं। बेचि लै ल्हिनी और आपण खाणहुं लै हैजां। द्वी च्याल और एक चेलि छें। पढ़ण-लेखण में एक हैबेर एक हुस्यार। वां इस्कूलनक मासाप लोग उनरि खूब बणनत करनी।
चेलि-जमैं और नाति-नातणियोंकि याद में किसनूका यस ढङल मिसी गई भ्या कि सामणि भैटी सुरेखा तरफ लै उनर ध्यान नै रय। मनै मन बड़बड़ाण लागी भ्या- "हे नौलिंगज्यू! मेरि चेलि-जमैं राठनक भल करिया। उनर कारोबार यसीकें खूब फलते-फूलते रवौ।"
"बुबू! तुमर सुर्त पराण कांहु पुजि रई?" सुरेखाल उनूकें घचपचाते हुए सोदौ- "तुमूकें खिमुलि प्वीजुकि याद औणैछी?"
"होई सुरेखा! हमरि खिमुलि लै त्यरै चारि खूब मयालु-दयालु छी। मैकें कभणी वीकि याद लै ऐजां।" गवूनि बेड़ियां अङौछल आंखनक आंसुओं कें पोंछते हुए उनूल जवाब दे।
"बुबू! जो सबनक लिजी भल सोचनी, भगवान उनर लिजी लै भलै करनी। खिमुलि प्वीजुक लै हमेशा भलै होल। तुमूकें फिकर करणकि क्वै जरवत न्हा।
अहा! चेलियोंक मन कतुक साफ हूं। सुरेखाकि बातनकें सुणिबेर किसनूका सोचण लागी- "इज बाबनक भौ भकारै नै समझणी च्यालन हैबेर चेलियां कतुक भलि हुनी।
"अच्छ्या बुबू! खाण बणिग्यो हुन्यल। खैबेर मैं इस्कूलहुं जोंल। आज ब्याव जरूर आया।" कैबेर उछव-कूद करते हुए नानि सुरेखा घरहुं न्हैगे। नानतिनोंक खेलण-कूदण भौत भल लागूं। सुरेखाक जाइयां पछिल किसनूका कें बेचैनी जसि चिताईनैछी। भितेर जैबेर उं बिस्तर में पड़ि ग्याय। पड़ण-पड़णै उनूकें गैलि नीन ऐगै।
ब्यावहुं जमनदाक घर जाणकिथें उं बटीई रैछी कि भैरबै सुरेखाकि आवाज सुणीगै- "बुबू! देखौ, आज मैं तुमर घर कैकें ल्यैबेर औणयूं?" इतुकै में उ सिदै भितेर पुजिगै। वीक पछिल खिमुलिकें देखिबेर किसनूका हायचितान रै ग्याय।
"अरे खिमुली!" उनर मुखबै निकई रौछी कि खिमुलिल उनर खुटन में हात धरिबेर पैलाग कौ और कसिबेर उनर दगड़ अङाव हालिदे।
"बौज्यू! कस मैस छा तुम? पिरमूदा मौ जाइयां पछिल पुरि बात मैकें किलै नै बताय तुमूल? वील तुमर बार में के नै सोच त मैं त छीई। हमर लिजी तुमूल पुरि जिंदगी भरि कष्ट झेलि राखी। बुड़्याकावक सहार हम नै बणुल त को बणल?" भरियां आंखनल खिमुलि एकै सांस में कैबेर परथें धरी पिड़ि में भैटिगै।
"चेली! तुकें यो सब कसिकें पत्त चलौ?" किसनूकाल चेलिकि मुनि मसारते हुए सोदौ।
"बौज्यू! आज दिन भरि मैकें बाटुलि लागणैछि। जब तुमर ध्यान करूं त बाटुलि रुकि जनेर भै। मैकें लागौ तुमर ऊपर क्वै न क्वै कष्ट छु। बेचैन मनल मैंल तुमर जमाईज्यू दगै बात करी। उनूल जीप बुक करैबेर मैकें यां भेजौ। यां ऐबेर मैं थ्वड़ देरकिथें सुरेखा राठनक घरथें भैटी त जमन ठुलबाल मैकें सब बात बता। भोव रात्तैहुं यो कुड़ि में ताल लगैबेर तुम म्यर दगड़ हिटौ। वां तुमर लिजी क्वै कमी नै हो। म्यर मन में लै तुमूकें ल्हीबेर क्वै फिकर नै रौ। जतुक दुख काटण छी तुमूल आज तक काटि हाली।" इतुकै कैबेर खिमुलि आङपनक कपाड़ बदेवणकि तैयारी करण भैटी। सुरेखा लै वीक दगड़ दुसर कम्र में न्हैगे।
किसनूकाक मन लै खुश हैगई भ्यो। रुख-सुख जस लै खोंल, मरण बखत आपण चेलि-जमैक घर त खोंल। आस्ते-आस्ते जतुक काम करि सकुंल उनर सौड़-भौड़न मेंई करुंल। यसै किसमकि बातोंकें सोचते हुए उनर मन में एक खास विचार यो आ- "अहा! जसि बाटुलि चेलिनकें लागें, अगर उसी बाटुलि च्यलनकें लै लागनेर हुनि त दुनी में कैक ऊपर क्वै दुख नै पड़न।
महेन्द्र ठकुराठी, मंगलवार, 9 जून 2020ग्रा. बड़ालू (धपौट) जिला- पिथौरागढ़ ( उत्तराखंड)
>मो.-9411126781

(‘आदलि कुशलि’ कुमाउनी मासिक पत्रिका बटी साभार)
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