जिम कार्बेट पार्काक् शेर......
रचनाकार: ज्ञान पंत
कूँणैं बात
जि भै ....
बखत पर
" मिर " उसै जानीं ।
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जब
बलालै
आफि है
पछ्याँणी जालै।
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सूर्ज त
भोल ले आल
आ्ब, तु नि समझनै
यो दुहैरि बात छ।
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अन्यार मैयीं
उज्याव ' कि ले
आस भै .....
नन्तरी
को मुँख लगूँछी
जैंङिणी कैं।
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उकाव-उलार
भये त
जिन्दगी ले
मोहिल है जाँछि .....
सैंण में
"छीड़" कभै नि हुँन।
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आज
नमस्कार के दिनुँ ...
भोल'कि
को जाँणौं पैं।
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बानरा-राज में
गुणि मन्तरी
बाघ सन्तरी
स्याव दफ्तरी....
ग्वाँण बा्ब सैप
समारी बल्द था्ंणदार
बहौड़ हौलदार
बा्छ तहसीलदार
कुकुर लेखपाल
और कुकुड़ चौकिदार.....
या्स में
बका्र
अनसन पैठि रयीं
बेई द्वि त
आज चार कम है गियीं....
आ्ब मुकदम चलौल
शिबौ! च्योड़ी घुघुत
के "न्या" करौल।
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जांण'कि
को जांणौ ...
ऊँणैंकि त
कौव ले बतै दिनेर भै।
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त्यार स्वैंण
मैलि ले देख
नींन टुटी
लागि उदेख।
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छो
यां ले फुटौं ......
आँखन में
पहाड़ बसी छ।
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दिगौलालि ....
काफल
पाकि ग्यान्हा्ल!
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शब्दार्थ:-
मिर - मसूड़े,
उसै - सूजना (आशय दाँत निकलने से है),
जैंङिणी -- जुगनूँ ,
सैंण - मैदान,
छीड़ - झरने
समारी बल्द - बधिया किया बैल,
कुकुड़ - मुर्गी,
च्योड़ी घुघुत - पर कटा घुघुता,
न्या - न्याय,
स्वैंण - सपने,
छो - पानी का सोता,
दिगौलालि - अहा! (भाव यही है),
पाकि ग्यान्हाल - पक गए होंगे
Mar 25, 27, 2018
...... ज्ञान पंत
ज्ञान पंत जी द्वारा फ़ेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी से साभार
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