
अल्मोड़ा जिले के अंतर्गत गोविंदपुर के गल्ली गांव में स्थित नरसिंही देवी का मंदिर
इतिहास व आध्यात्मिकता का संगम
गोविंदपर में देवी का नरसिंहीरुप, मंदिर परिसर में मौजूद कत्यूरकालीन कलाकृतियां बढ़ाती हैं महत्व
त्रेता, द्वापरकालीन तथा अन्य पुरातन साक्ष्यों से भरपूर देवभूमि उत्तराखंड आर्यकालीन सभ्यता की गवाह रही है। प्राचीन इतिहास के अवशेष बताते हैं कि इस पावन भूमि पर राजतंत्र की परंपरा भी सहस्त्रों वर्ष पुरानी है। मौर्य और गप्तवंश के शासनकाल में हिमालयी क्षेत्र में कुर्णिद राजाओं की अपनी सत्ता बरकरार थी। समुद्रगुप्त के प्रयाग प्रशस्ति' में कृर्तपुर और नेपाल का सीमावर्ती राज्यों के रूप में उल्लेख हुआ है। यद्यपि ये राज्य गुप्त शासकों को कर तथा उपहार भेंट करते थे। इस लगातार संपर्क के दौरान कला और संस्कृति के आदान-प्रदान की प्रक्रिया भी स्वाभाविक रूप से हुई होगी।
फलस्वरूप देवभूमि में गुप्तकालीन कला का मंदिरों और मूर्तियों के रूप में जो विकास हुआ वह पहाड़ की समृद्ध संस्कृति की गवाही देता है। तमाम ऐतहासिक स्थल ऐसे हैं जहां दुर्लभ मूर्तियों का संसार मुग्ध करता है। लोकमत, कथाएं, किंवदंतियां इन अलौकिक स्थलों की रोचकता और महत्ता को कई गुना बढ़ा देती हैं। इस बार आपको ले चलते हैं अल्मोड़ा जिले के गोविंदपुर स्थित गल्ली गांव में नरसिंही देवी के अद्भुत मंदिर की ओर। ऐसा दिव्य स्थल जहां गुप्तकाल का प्रभाव झलकता है तो आसपास मौजूद कत्यूरकाल की समृद्ध एवं विशिष्ट मूर्तिकला इस क्षेत्र के गौरवशाली इतिहास से रूबरू कराती है। इतिहास के साथ यहां आध्यात्मिकता का संगम है।

नरसिंही देवी मंदिर में मौजूद कत्यूरकालीन कलाकृतियां और दुर्लभ शिवलिंग जागरण
मान्यता: युद्ध शांत करने के लिए देवी ने लिया नरसिंही अवतार
नरसिंही देवी के बारे में पौराणिक मान्यता है कि वह अलौकिक असीमित शक्ति वाली देवी हैं। प्रसंग है कि हिरण्यकश्यप के अत्याचार से अपने परम भक्त प्रह्लाद को बचाने के लिए विष्णु ने नरसिंह का अवतार, लेकर उसका वध किया था। विष्णु का यह रूप उसी रूप में अन्य का भी संहार करने लगा। इससे खौफजदा देवगण भगवान शिव की शरण गए और नरसिंह के क्रोध को शांत करने की प्रार्थना की। शिव ने भी शरभ (आघा पक्षी और आधा सिंह) का रूप धारण कर नरसिंह को नियंत्रित करना चाहा। सफलता नहीं मिलने पर दोनों अवतारों के मध्य महायुद्ध छिड़ गया। परिस्थितियों को समझ महामाया ने भी मुंह सिंह का वधड़ा मानव का धारण किया और नरसिंह (विष्णु) तथा शरभ (शिव) के मध्य खड़ी हो गई। देवी के इस अद्वितीय रूप को देख दोनो शांत हो गए। अपने इसी रूप के कारण ही आदिशक्ति नरसिंही के रूप में विख्याल हुई। मंदिर परिसर में मौजूद अन्य गुप्तकालीन मानवकृतियां तथा कत्यूरकालीन शिलालेख इसकी प्राचीनता को दर्शाते हैं। कई अध्येताओं ने माना है कि गुप्त शासनकाल के दौर में यहां के शासकों (कुणिंद) ने प्रेरणा लेकर मूर्तियों का निर्माण किया होगा।
कत्यूरी शासकों ने सहेजा
बेशक मंदिर को अब आधुनिक स्वरूप दे दिया गया हो, मगर इस दिव्य स्थल को गुप्तकाल के बाद कत्यूरी शासकों ने धरोहर की तरह सहेजकर रखा। बाबा किशनगिरि महाराज मंदिर की देखरेख करते हैं। वह बताते हैं कि पास ही आठवीं से 10वीं सदी के बीच स्थापित शिव मंदिर, कलाकृतियां हों अथवा मंदिर की भीतरी दीवारों पर कत्यूरीराज में निर्मित मूर्तियां । ये इस र बात की पुष्टि करते हैं कि गोविंदपुर के गल्ली गांव में कत्यूरी राजाओं की आस्था जुड़ी थी। यहां 1866 में मंदिर के पुनर्निर्माण की कथा भी मिलती है। पूर्व में गल्ली गांव का जोशी ब्राह्मण परिवार ही प्रबंधन कार्य देखता रहा।

मंदिर में कत्यूरकालीन कलाकृति जागरण
ऐसे पहुंचें इस मंदिर तक:
कुमाऊं के प्रवेशद्वार यानी हल्द्वानी से 110 किलोमीटर दूर है पर्यटक नगरी सनीखेता यहां से अल्मोड़ा हाईवे पर मजखाली कस्बा, आंतरिक कोरीछारीना रोड होते हुए गोलूछीना घाटी में बसे गोविंदपुर, फिर गल्ली गांव स्थित नरसिंही देवी मंदिर तक वाहन से पहुंचा जा सकता है।
देवी-देवताओं की प्रतिमाएं सदियों पुराने अतीत की साक्षी:
अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 30 व पर्यटक नगरी रानीखेत से 22 किमी दर है गोविंदपुर के गल्ली गांव में नरसिंही देवी का मंदिरनानकोसी (छोटी कोसी) से घिरे इस दिव्य स्थल में नरसिही देवी की प्रतिमा गुप्तकाल (5वीं सदी के आसपास) की मानी जाती है। मंदिर की भीतरी दीवारों पर कत्यूरकाल में आठवीं से 10वीं सदी के मध्य बनी शिव-पार्वती, भगवान विष्ण मां लक्ष्मी आदि की मूर्तियां मंदिर का महत्ब बढ़ा देती हैं। खास बात यह है। कि नरसिंही देवी मंदिर के ठीक सामने कत्यूरकाल में ही बना महादेव मंदिर भी है। अलौकिक शिवलिंग कत्यूरकालीन विशिष्ट स्थापत्यकला के दर्शन कराता है। परिसर की एक दिशा में चहारदीवारी के बीच देवी-देवताओं की मूर्तियां व कलाकृतियां मौजूद हैं।


गोविंदपुर के गल्ली गांव में नरसिंही देवी के मंदिर में देवी की दुर्लभ प्रतिमा
दैनिक जागरण, हल्द्वानी, शनिवार, 8 अक्टूबर 2022
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