बनप्सा के मसाला, औषधि उपयोग का इतिहास
उत्तराखंड में वन मसाले – कृषि व भोजन का इतिहास - 95आलेख - भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री)
वनस्पति शास्त्रीय नाम - Viola serpens, Viola canescenstty
सामन्य अंग्रेजी नाम - Banfsa, Himalayan white violet
संस्कृत नाम -बनप्सा
हिंदी नाम - बनफ्सा
नेपाली नाम -घट्टेघांस
हिमाचल -गुगलु फूल, बनफ्सा, बनाक्षा
उत्तराखंडी नाम - बनफ्सा,
बनफ्सा भूमि पर फैलने वाला बहुवर्षीय पौधा है जिसके बैंगनी, सफेद व नीले फूल होते है। पाकिस्तान से उत्तर पूर्व के हिमालय में 1600 -2000 मीटर ऊंचाई में पैदा होता है।
जन्मस्थल संबंधी सूचना - Viola की दो एक जातियों का जन्म हिमालय है
संदर्भ पुस्तकों में वर्णन - संहिताओं में बनफ्सा का नाम नहीं है किन्तु आदर्श निघण्टु व सिद्ध भेषज मणिमाला में बनफ्सा व इसके उपयोग का वर्णन मिलता है। सिद्ध भेषज मणिमाला में तो कथा भी मिलती है। भावप्रकाश निघंटु में बनफ्सा को परसिष्ट भाग में जोड़ा गया है।
औषधि उपयोग
इसे गरम तासीर का पौधा माना जाता है। फूल व पत्तियां का उपयोग - कफ, शर्दी, जुकाम, बुखार, मलेरिया बुखार, बदहजमी निर्मूल हेतु, नेत्र विकार, बबासीर में रक्त स्राव रोकने में लाभदायी माना जाता है। तेल के साथ लॉसन निर्माण में प्रयोग होता है। रूखी त्वचा में लाभदायी होता है। बाम बनाने में प्रयोग होता है। हर्बल साबुन बनाने में उपयोग। बालों से जूं निकालने में उपयोगी।
चाय मसाला
फूल के सुक्सा को गढ़वाल में जाड़ों के दिनों में कम मात्रा में चाय में डाला जाता था- विशेषकर जब तापमान गिर जाता था या हिमपात हो रहा ड़ी हो। लोककथ्य है कि बनफ्सा को चाय में पीने से बर्फ में भी पसीना आ जाता है। काफी ठंडियों के दिनों में कभी उड़द की दाल में भी बनफ्सा के बहुत कम मात्रा में सूखे फूल डाल दिए जाते थे।लेमोन्वाइड में इसे सलाद रूप में उपयोग करते हैं। मिठाईयों, पेय पदार्थों में कच्चा माल रूप में प्रयोग।
वैज्ञानिकों का मत है अति दोहन से कई प्रजातियां खतरे में पड़ गयी हैं।
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श्री भीष्म कुकरेती जी के फेसबुक वॉल से साभार
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