कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल - 15
पं. बदरीदत्त पांडे जी के "कुमाऊँ का इतिहास" पर आधारितवर्तमान में कुमाऊँ का जो इतिहास उपलब्ध है उसके अनुसार ऐसा माना जाता है कि ब्रिटिश राज से पहले कुछ वर्षों (१७९० से १८१७) तक कुमाऊँ में गोरखों का शासन रहा जिसका नेतृत्व गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा ने किया था और वह पश्चिम हिमाचल के कांगड़ा तक पहुँच गया था। गोरखा राज से पहले चंद राजाओं का शासन रहा। अब तक जो प्रमाण मिलते हैं उनके अनुसार कुमाऊं में सबसे पहले कत्यूरी शासकों का शासन माना जाता है। पं. बदरीदत्त पांडे जी ने कुमाऊँ में कत्यूरी शासन-काल ईसा के २५०० वर्ष पूर्व से ७०० ई. तक माना है।
त्रिलोकपाल दूसरे पुत्र निरंजनमल्लदेव के वंशज मल्ल कहाए उन्हींके वंशजों में से नागमल के दो पुत्रों में से बड़े पुत्र शमशेरमल्ल के वंशज मल्ल, छोटे पुत्र अजनसाही के वंशज साही कहलाये।
५१. निर्भयपाल
५२. भारतीपाल
५३. भैरवपाल
५४. भूपाल
५५. से ८० तक ज्ञात नहीं।
८१. रत्नपाल
८२. शंखपाल
८३. श्यामपाल
८४. शाहपाल या साईपाल
८५. सुर्जनपाल
८६. भोजपाल
८७. भरतपाल
८८. सुर्तानपाल
८९. अच्छपाल
९०. त्रिलोकपाल (२)
९१. सूरपाल
९२. जगतपाल
९३. प्रजापाल
९४. रायपाल ( सन् १५८८ में गोपी ओझा द्वारा मारे गये।)
९५. महेन्द्रपाल
९६. जयंतपाल
९७. वीरबलपाल
९८. अमरसिंहपाल
९९. अभयपाल (२) (अठकिन्सन ने ब्रह्मपाल लिखा है।)
१००. उच्चहरपाल या उच्छवपाल
१०१. विजयपाल (भाई रुद्रपाल के वंशज रौलखेत में हैं )
१०२. महेन्द्रपाल
१०३. बहादुरपाल ( भाई तेजसिंह प्रभृति)
१०४.पष्करपाल ( भाई० कु. गोविन्दसिंह)
१०५, गजेन्द्रपाल
१०६. भूपेन्द्रपाल
१०७. विक्रमबहादुरपाल (वर्तमान)
पं बद्रीदत्त पांडे जी लिखते हैं कि कत्यूरी शासकों के अस्कोट वाले वंसज अपने को उत्तानपाद की संतान में कहते हैं। उनका कहना है इनको हुए २२१ पुश्तें हुई और यह सूर्यकुल के मूल-पुरुष थे। इसी वंश में ब्रह्म, मरीचि, कश्यप, हरिश्चन्द्र, अज, दिलीप, रघु, दशरथ व रामचन्द्र हुए हैं। शालिवाहन के आगे कहते हैं, वंशावली में लिखा है कि वे अयोध्या से आकर कत्यूर में समाए हुए। अतः अँगरेजी विद्वान् लेखक अठकिन्सन का यह सिद्धान्त कि कत्यूरी जोशीमठ से कत्यूर में आये, अस्कोट के राजवंश के कथनानुसार ठीक नहीं जंचता।
जैसा कि पं बद्रीदत्त पांडे जी पहले भी यह लिख चुके हैं कि गढ़वाल का राज्यप्रबंध कार्तिकेयपुर उर्फ कत्यूर से होता था। गढ़वाल के सब शिला-लेख व तामपत्रों में कत्यूर की छाप है। अतः अस्कोट का लेख ही ज्यादा न्यायसंगत प्रतीत होता है। कत्यूरी राजा कटौर-वंशी नहीं, बल्कि सूर्यवंशी थे। वे अयोध्या से आकर कत्युर में बसे। ललितसूरदेव के तामपत्र में एक स्थल में कुशली शब्द आया है। उसके मानी अनूपशहर के विद्वान् व संस्कृत के प्राचार्य कविरत्न पं. अखिलानंदजी ने इमको "कुश के वंशवाला” होना भी बताया है। कुश रामचन्द्र के पुत्र थे और सूर्यवंशी थे।
पं बद्रीदत्त पांडे जी का कहना है की ऊपर के लेखों से यह बात सिद्ध है कि कुमाऊँ किसी समय सूर्यवंशी राजात्रों के राज्य का एक अंग था। बाद को शायद यह राज्य शालिवाहन देव के समय से अयोध्या से अलग हो गया। नेपाल से काबुल तक का प्रान्त उनके आधीन था। धामदेव के समय तक धामपुर व बिजनौर सब इसी राज्य में थे। उनके बाद ये राजा चक्रवर्ती समाट हुए हैं:-
१. सम्राट वासुदेव
२. कनकदेव (काबुल में मारे गये ?)
३. वसन्तनदेव
४. खरपरदेव
५. कल्याणराजदेव
६. त्रिभुवनराजदेव
७. निर्मतदेव या नूनवराटदेव
८. ईशतारणदेव या इष्टोभनदेव
९. ललितसूरदेव
१०. भूदेवदेव
११. सलौनादित्यदेव
१२. इच्छटदेव
१३. देसटदेव
१४. समाट् पद्मटदेव
१५. समाट् सुभिक्षराजदेव
१६. समाट् देवपालदेव
ये सब “गिरिराज चक्र चूड़ामणि" की उपाधि से अलंकृत थे। इनके पश्चात् विराट् कत्यूरी साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया। कम-से-कम उसकी सीमा कुमाऊँ - राज्य के अंदर ही रही। बाद को वह परगना व पट्टी के राजो में विभाजित हो गया। जो ख़ानदान जहाँ को गया, उसने अपने पुश्तनामे में जहाँ से उनको ज्ञात था, वहाँ से नाम भर लिए। इसी कारण पुश्तनामों में एकता नहीं, न बहुत से नाम ही मिलते हैं।
श्रोत: "कुमाऊँ का इतिहास" लेखक-बद्रीदत्त पाण्डे, अल्मोड़ा बुक डिपो, अल्मोड़ा,
ईमेल - almorabookdepot@gmail.com, वेबसाइट - www.almorabookdepot.com
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