चीड़ के मसाले, औषधि उपयोग का इतिहास
उत्तराखंड में वन मसाले – कृषि व भोजन का इतिहास - 104History of Agriculture, spices, Culinary, Gastronomy, Food, Recipes in Uttarakhand -104
आलेख - भीष्म कुकरेती (वनस्पति व सांस्कृति शास्त्री)
वनस्पति शास्त्रीय नाम - Pinus longifolia Roxb
सामान्य अंग्रेजी नाम -Pine
उत्तराखंडी नाम - कुंळै
हिंदी - चीड़
संस्कृत - सरल
नेपाली -खोते सल्ला
जन्म स्थल - हिमालय कई लाख वर्षों से
आयुर्वेद ग्रंथों में उल्लेख -चरक संहिता, सुश्रुत संहिता व आचार्य बागभट्ट में उद्घृत। कालिदास ने अतैलपुरा प्रदीप के नाम से चीड़ या देवदार के तनों से निर्मित सलाई (दिवळ छिल्ल) का उल्लेख किया है।
पेड़ - २००० फ़ीट 6000 फ़ीट ऊँचे स्थानों में, ५० स्व १५० फ़ीट ऊँचे पेड़। हजार वर्ष से ५००० हजार वर्ष तक जिन्दा रह सकता है।
उपयोग
आयुर्वेद में - कर्ण पीड़ा, आंत में दाह , पेट फूलने रोग, कफ , त्वचा में जलन आँख आदि में चीड़ के भागों से निर्मित तेल का औषधि उपयोग। लीसा घाव भरने के भी काम आता था।
रसोई -हेतु काष्ठ (लम्बा जीवन)
आग जलाने या आग इधर से उधर ले जाने जैसे जलता टॉर्च जैसा उपयोग
घर के निर्माण हेतु काष्ठ
लीसा (रेजिन ) से कई रसायन बनते हैं।
अगरबत्ती निर्माण में उपयोग
भोजन हेतु निम्न उपयोग
तने के अंदर के कोमल भाग को खाया जाता था जो कई पौष्टिक पदार्थों की कमी दूर करता था। कोमल आंतरिक तने को कच्चा या सुखाकर आटा बनाया जाता था जो कई भोजन में आलण (thickner) के रूप में उपयोग होता था।
दूसरे क्षेत्रों में हरी पत्तियों को उबालकर इसे चाय जैसा उपयोग किया जाता है। चाय व शराब में भी इसका उपयोग होता है।
चीड़ के बीजों (छ्यूंत, स्यूँत, चिलगोजा या पाइन नट) का उपयोग
चीड़ के कोन या छ्यूंती के बीजों का कई उपयोग हैं यथा -
कच्चे बीज जंगल में चरवाहे भूख निवारण करते हैं।
भुने बीजों को खाया जाता है।
बीजों को कच्चा या भूनकर मिठाईयों, बिस्किट निर्माण में अवयव
रोटी या हलवा या खीर या कोई झोली या भात को कुरकुरे व स्वादिस्ट बनाने हेतु उपयोग।
पेस्ट या चटनी में उपयोग
कीमा या मटन -चिकन में उपयोग
भरी रोटियों या कचौरी को कुरकुरा व स्वादिस्ट बनाने हेतु चिलगोजा के टकड़ों का उपयोग
खिचड़ी मको कुरकुरा व स्वादिस्ट हेतु
रायते में
कद्दू, लौकी, राजमा दाल या उड़द , या हरी सब्जियों में कुरकुरे पन व स्वाद हेतु
तरीदार साग में उपयोग
औषधीय उपयोग हेतु वैद्य की ही सलाह लें।
श्री भीष्म कुकरेती जी के फेसबुक वॉल से साभार
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