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भिलमोरी/चंगेरी (Yellow Sorrel) की सब्जी, औषधीय व अन्य उपयोग

भिलमोरी/चंगेरी की सब्जी, औषधीय व अन्य उपयोग, medicinal and food uses of wood yellow sorrel

भिलमोरी/चंगेरी की सब्जी, औषधीय व अन्य उपयोग और इतिहास

उत्तराखंड में कृषि व खान-पान, वन भोजन का इतिहास - 63

संकलन - भीष्म कुकरेती

Botanical name - Oxlis corniculata
Common Name - Wood Yellow Sorrel
उत्तराखंडी नाम - भिलमोरी, चिलमोरी, मेथिया झाड़
संस्कृत नाम - चंगेरी, अम्लपत्रिका
हिंदी नाम - अमरूल, अम्बिलोसा, चंगेरी, सुनसुनिया रहन सहन - एक शीघ्र फैलने वाली लतायुक्त खर पतवार है जो 1300-2200 मीटर ऊँचे स्थलों में उगती है। इसके पत्ते गहरे हरे व फूल पीले होते हैं। भिलमोरी/चंगेरी की लता जमीन के समांतर 10 इंच तक जा सकता है।

भिलमोरी/चंगेरी जन्मस्थल यूरोप है।

औषधीय उपयोग-

चरक संहिता, सुश्रुवा संहिता, भावप्रकाश निघण्टु में चंगेरी /भिलमोरी को दस्त, रक्तस्राव में औषधीय उपयोग का उल्लेख हुआ है।
चंगेरी इनफ्लुएंजा, रक्तरोग, सर्प दंश, त्वचा खुजली, आँख, जली त्वचा, कीडों के काटने से दर्द, आँखों में जलन, सिरदर्द ,जून का दर्द इन्सोमिया धतूरा पान, पारा पान, पुरानी पेचिस, आदि में लाभकारी है या रोग निडर करना है। चंगेरी/भिलमोरी का उपयोग यकृत संबंधी रोगों में भी होता है।

भिलमोरी/चिचोड़ा की भाजी-

अब चंगेरी का भोजन उपयोग बहुत कम हो गया है पहले चंगेरी दुर्भिक्ष व हीन दशा का भोजन था।
भिलमोरी/चंगेरी के पौधे पौधे में ऑक्सेलिक ऐसिड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है , इसलिए भिलमोरी /चिचोड़ा का स्वाद खट्टा , कुछ अनोखे तीखेपन लिए होता है। विटामिन C बहुत होता है किन्तु अधिक खाने से शरीर के कैल्सियम पर बुरा प्रभाव पड़ सकता हैं। यही कारण है कि भिलमोरी/चंगेरी का उपयोग कम होता है।
लता सहित पत्तियों सब्जी वैसी बनाई जाती है जैसे मरसू, राई/लाई की का बनाया जाता है।
गरम कढ़ाई में तेल गरम करने के बाद जख्या छौंकने के बाद कूटे / थिंचे लहसुन को थोड़ा सा भूनने के बाद भिलमोरी /चिचोड़ा की पत्तियों को डंठल सहित मसालों के साथ पकाया जाता है।
भिलमोरी/चंगेरी पत्तियों के पहले उबालकर चौली या सरसो का साग की सब्जी जैसी सब्जी भी बनाई जाती है।
भिलमोरी/चंगेरी के खट्टे स्वाद, कुछ अनोखे तीखेपन के कारण किन्ही अन्य सब्जियों में स्वादवृद्धि के लिए भी उपयोग होता है।
यदि आवश्यकता पड़ जाय तो झंगोरा के पीठ या मक्के के आटे के साथ भिलमोरी /चंगेरी/ चिचोड़ा का कफिल /धपड़ी भी बनाई जाती है जिसे अन्य महाद्वीपों या देसों में सूप कहा जाता है।
झंगोरे के आटे/मकई के आटे को उबला जाता है , पकाया जाता है जिसमे नमक मिर्च , लहसुन , अदरक आदि मिलाकर सूप बनता है व अंत में चंगेरी के तने सहित पत्तियां दाल दी जाती है छह मिनट तक पकाने के बाद धपड़ी /काफिल तैयार है जो भात, झंगोरा के साथ खाया जाता है।
मुख्यत: यह वनस्पति अकाल या सब्जी की कमी वाले मौसम की सब्जी है।
आसाम
आसाम में मूंग या मसूर दाल में स्वाद वृद्धि हेतु दाल में चंगेरी पकाया जाता है पालक
अन्य कई क्षेत्रों में अन्य सब्जियों, सलाद में खट्टे पन या विशेष स्वाद हेतु चंगेरी का उपभोग होता है।
भीलमोरी /चंगेरी की चटनी विधि-
आधा कप चंगेरी पत्ती तना सह में पोदीना, हरी मिर्च, नमक, लहसुन के एक कली जीरा या जीरा चूरा डालकर म्हें पीस लें। स्वादयुक्त चटनी तैयार है।
भिलमोरी /चिचोड़ा का शरबत-
चंगेरी /भिलमोरा का स्वाद नीम्बू जैसा होता है। पत्तियों को धो कर दस मिनट तक उबाला, जाता है। फिर पत्तियों को पीसकर शरबत बनाया जाता है।
गार्निशिंग हेतु- पहले चंगेरी का उपयोग धनिया पत्ती जैसे ही गार्निशिंग हेतु उपयोग होता था। अब भी समय अनुसार, दही, छाछ, सब्जी, दाल, कढ़ी, करी, सूप में गार्निशिंग हेतु उपयोग होता है।
औषधि हेतु उपयोग - केवल वैद्य को पूछकर ही किया जाना चाहिए।

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