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घूघुतिया त्यार या उतरैणी (मकर संक्रान्ति)
कुमाऊँ का प्रमुख लोकपर्वमकर संक्रान्ति का पर्व भारतवर्ष का प्रमुख त्यौहार है जो पूरे देश में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसे हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम और तरीके से मनाया जाता है। इस त्यौहार को हमारे उत्तराखण्ड राज्य में "उत्तरायणी" या "उतरैणी" के नाम से मनाया जाता है तथा गढ़वाल में इसे पूर्वी उत्तर प्रदेश की तरह "खिचड़ी संक्रान्ति" के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ अंचल में मकर संक्रांति का त्यौहार स्थानीय भाषा में घुघुतिया के नाम से जाना जाता है और यह कुमाऊँ अंचल का सबसे बड़ा त्यौहार माना जा सकता है।
घुघुतिया त्यार क्या है?
घुघुतिया त्यार, मकर संक्रांति पर्व पर मनाया जाने वाला कुमाऊँ अंचल का स्थानीय पर्व और स्थानीय लोक उत्सव है। मकर संक्रांति के पर्व के दिन मनाये जाने वाले इस त्यौहार में एक विशेष प्रकार का व्यंजन "घुघुत" बनाया जाता है जिस कारण ही कुमाऊँ में मकर संक्रान्ति का यह पर्व उतरैणी (उत्तरायणी) के साथ साथ "घुघुतिया त्यार" के नाम से ज्यादा जाना जाता है। घुघुतिया तैयार पर घुघुते बनाने की अपनी एक विशिष्ट परंपरा है क्योंकि यह एक ऐसा व्यंजन है जो केवल इस अवसर पर ही बनाया जाता है।
घुघुत बनाने की विधि:
घुघुत बनाने की वैसे कोई विशिष्ट रैसीपी नही है और इनको सामान्य विधि से बनाया जाता है। सबसे पहले पानी गरम करके उसमें गुड़ डालकर चाश्नी बना ली जाती है, फ़िर आटा छानकर इसे आटे में मिलाकर गूंथ लिया जाता है। जब आटा रोटी बनाने की तरह तैयार हो जाता है तो आटे की करीब ६" लम्बी और कनिष्का की मोटाई की बेलनाकार आकृतियों को हिन्दी के ४ की तरह मोड़्कर नीचे से बंद कर दिया जाता है। इन ४ की तरह दिखने वाली आकृतियों को स्थानीय भाषा में घुघुते कहते हैं। घुघुतों के साथ साथ इसी आटे से अन्य तरह की आकृतियां भी बनायी जाती हैं, जैसे अनार का फ़ूल, डमरू, सुपारी, टोकरी, तलवार आदि पर सामुहिक रूप से इनको घुघूत के नाम से ही जाना जाता है। घुघुते बनाने का क्रम दोपहर के बाद करीब २:०० - ३:०० बजे से शुरु हो जाता है जिसमें परिवार का हर सदस्य योगदान करता है।
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आटे की आकृतियां बन जाने के बाद इनको सुखाने के लिए फ़ैलाकर रख दिया जाता है। रात तक जब घुघुते सूख कर थोड़ा ठोस हो जाते है तो उनको घी या वनस्पति तेल में में पूरियों की तरह तला जाता है। वैसे इस समय तक बच्चे सो जाते है पर अगर बच्चों की उत्सुक्ता अधिक हुयी तो किसी को भी तलते समय बात करने के मनाही रह्ती है। हमें तो बचपन में यह कह कर शान्त रह्ने को कहा जाता था कि अगर शोर करोगे तो घुघुते उड़ जायेंगे। इसका मुख्य कारण यह है कि इससे रसोइये का ध्यान भंग ना हो, दुसरा कारण यह भी रहता है कि थूक के छीटे अगर गर्म तेल में पड़ेंगे तो तेल के छींटे भी काफ़ी नुकसान कर सकते हैं। पर एक विशेष बात यह रहती है कि घुघुते कौओं को खिलाने से पहले कोई नही खा सकता।
घुघुतों को तलने के बाद इनकी माला बनायी जाती है जिसे और सुन्दर बनाने के माला में मूंगफ़ली, स्थानीय फ़ल जैसे मालटा/नारंगी, बादाम की गरी या अन्य मेवे भी पिरोये जाते हैं। घुघुतों की माला बनाने के बाद इनको अगले दिन कौओं खिलाने की तैयारी के साथ संभालकर रख दिया जाता है।
घुघुतिया त्यार पर कौओं का महत्त्व:
कुमाऊँ के अल्मोड़ा, चम्पावत, नैनीताल तथा उधमसिंहनगर जनपदीय क्षेत्रों में मकर संक्रान्ति को (अर्थात माघ मास के १ गते को) घुघुते बनाये जाते हैं और अगली सुबह (२ गते माघ को) को कौवे को दिये जाते हैं (कौओं को पितरों का प्रतीक मानकर यह पितरों को अर्पण माना जाता है)। वहीं रामगंगा पार के पिथौरागढ़ और बागेश्वर अंचल में मकर संक्रान्ति की पूर्व संध्या (पौष मास के अंतिम दिन अर्थात मशान्ति) को ही घुघुते बनाये जाते हैं और मकर संक्रान्ति अर्थात माघ १ गते को कौवे को खिलाये जाते हैं।
वैसे तो पहाड़ो में कौए को प्रिय माना जाता है और तड़के उसका स्वर घर के आस पास सुनायी देना शुभ माना जाता है पर इस दिन कौओं की विशेष पूछ रहती है। छोटे-छोटे बच्चे भी तड़के उठ, स्नान करके तैयार हो जाते हैं और घुघुतों की माला पहन कर कौवे को आवाज लगाते हैं:
काले कौवा का-का, ये घुघुती खा ज
काले कौव्वा का-का, पूस की रोटी माघे खा
इसी प्रकार के कई नारे हैं जैसे
काले कौआ काले, घुघुति माला खा ले आदि
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इसके बाद शुरू होता है रिश्तेदारों तथा मित्रगणों के घर-घर घुघूते बांटने का सिलसिला और यह कई दिनों तक चलता रहता है। जो सद्स्य घर से दूर रहते हैं उनके लिए घुघूते सम्भाल कर रख दिये जाते हैं, जिससे जब वह घर पर आयें तो उनको खाने के लिए दिये जा सकें। जो लोग अपने घर से दूर रहते हैं उनको भी घुघूते खाने का ईन्तजार रहता है। आजकल घुघूते प्रियजनों तक पार्सल और कोरियर के माध्यम से भी भेजे जाने लगे हैं। वैसे घुघूतिया के दिन घुघूते बनाने के बाद इनको आवश्यकतानुसार बसन्त पंचमी तक बनाया जा सकता है, पर इस दिन इनको हर घर में बनाया जाना आवश्यक होता है।
घुघुतिया त्यार से सम्बधित कथा:
घुघुतिया त्यार से सम्बधित एक कथा प्रचलित है....। कहा जाता है कि कुमाऊँ में एक राजा था जिसके मंत्री का नाम घुघुतिया था। घुघुतिया एक कुशल योद्धा होने के साथ साथ बड़ा ही महत्वाकांक्षी भी था। धीरे धीरे उसकी महत्वाकांक्षा इतनी बढ़ गयी कि वह खुद राजा बनने की सोचने लगा। एक बार जब वह अपने किसी साथी के साथ राजा को मारकर ख़ुद राजा बनने का षड्यन्त्र बना रहा था तो एक कौए ने उनकी बातें सुन ली। कौआ बड़ा ही चतुर पक्षी समझा जाता है, जिस कारण ही बाल कथाओं में प्यासे कौए की कहानी बड़ी प्रसिद्ध है।
![आटे की आकृतियां बन जाने के बाद इनको सुखाने के लिए फ़ैलाकर रख दिया जाता है। रात तक जब घुघुते सूख कर थोड़ा ठोस हो जाते है तो उनको घी या वनस्पति तेल में में पूरियों की तरह तला जाता है। वैसे इस समय तक बच्चे सो जाते है पर अगर बच्चों की उत्सुक्ता अधिक हुयी तो किसी को भी तलते समय बात करने के मनाही रह्ती है। हमें तो बचपन में यह कह कर शान्त रह्ने को कहा जाता था कि अगर शोर करोगे तो घुघुते उड़ जायेंगे। इसका मुख्य कारण यह है कि इससे रसोइये का ध्यान भंग ना हो, दुसरा कारण यह भी रहता है कि थूक के छीटे अगर गर्म तेल में पड़ेंगे तो तेल के छींटे भी काफ़ी नुकसान कर सकते हैं। पर एक विशेष बात यह रहती है कि घुघुते कौओं को खिलाने से पहले कोई नही खा सकता। घुघुतों को तलने के बाद इनकी माला बनायी जाती है जिसे और सुन्दर बनाने के माला में मूंगफ़ली, स्थानीय फ़ल जैसे मालटा/नारंगी, बादाम की गरी या अन्य मेवे भी पिरोये जाते हैं। घुघुतों की माला बनाने के बाद इनको अगले दिन कौओं खिलाने की तैयारी के साथ संभालकर रख दिया जाता है। आटे की आकृतियां बन जाने के बाद इनको सुखाने के लिए फ़ैलाकर रख दिया जाता है। रात तक जब घुघुते सूख कर थोड़ा ठोस हो जाते है तो उनको घी या वनस्पति तेल में में पूरियों की तरह तला जाता है। वैसे इस समय तक बच्चे सो जाते है पर अगर बच्चों की उत्सुक्ता अधिक हुयी तो किसी को भी तलते समय बात करने के मनाही रह्ती है। हमें तो बचपन में यह कह कर शान्त रह्ने को कहा जाता था कि अगर शोर करोगे तो घुघुते उड़ जायेंगे। इसका मुख्य कारण यह है कि इससे रसोइये का ध्यान भंग ना हो, दुसरा कारण यह भी रहता है कि थूक के छीटे अगर गर्म तेल में पड़ेंगे तो तेल के छींटे भी काफ़ी नुकसान कर सकते हैं। पर एक विशेष बात यह रहती है कि घुघुते कौओं को खिलाने से पहले कोई नही खा सकता। घुघुतों को तलने के बाद इनकी माला बनायी जाती है जिसे और सुन्दर बनाने के माला में मूंगफ़ली, स्थानीय फ़ल जैसे मालटा/नारंगी, बादाम की गरी या अन्य मेवे भी पिरोये जाते हैं। घुघुतों की माला बनाने के बाद इनको अगले दिन कौओं खिलाने की तैयारी के साथ संभालकर रख दिया जाता है।](https://1.bp.blogspot.com/-q4TCI_VESho/YAB_RC1VzhI/AAAAAAAAODk/_05juFzc8-ILVFL4Yd3M5HCOXFXau1PdwCNcBGAsYHQ/w400-h250/Ghugutiya-tyaar-Kumauni.jpg)
कौव्वे को जैसे ही राजा की हत्या की साजिश की जानकारी हुयी, उसने तुरन्त आकर राजा को इस बारे में सूचित कर दिया। राजा को पहले तो विश्वास नही हुआ परन्तु उसने घुगुतिया को गिरफ़तार कर कारागार में डाल दिया। जिसके बाद जांच में बात सही पाये जाने पर राजा द्वारा मंत्री घुघुतिया को मृत्युदंड मिला। कौए की इस चतुराई और राजा के प्रति राजभक्ति से राजा बड़ा प्रभावित हुआ और उसने राज्य भर में घोषणा करवा दी कि मकर संक्रान्ति के दिन सभी राज्यवासी कौव्वो को पकवान बना कर खिलाएंगे। तभी से कौओं के प्रति सौहार्द प्रकट करने वाले इस अनोखे त्यौहार को मनाने की प्रथा की शुरूवात मानी जाती है।
घुघुतिया त्यार पर पक्षियों के प्रति सम्मान:
विश्व में पशु पक्षियों से सम्बंधित कई त्योहार मनाये जाते हैं पर कौओं को विशेष व्यंजन खिलाने का यह अनोखा त्यौहार उत्तराखण्ड के कुमाऊँ अंचल के अलावा शायद कहीं नही मनाया जाता है। वैसे कौए की चतुराई के बारे में कहावत है कि मनुष्यों में नौआ और जानवरों में कौआ अर्थात मानवों में नाई और जानवरों में कौआ सबसे बुद्धिमान होते हैं। कौए की चतुराई के बारे में कई वैज्ञानिक शोध भी हो चुके जिनसे भी इस बात की पुष्टि हुयी है कि कौए का मष्तिष्क अन्य पशु-पक्षियों से अधिक विकसित होता है।
घुघुतिया त्यार के दिन मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर देश के विभिन्न भागों की तरह ही कुमाऊँ अंचल में भी विभिन स्थानों पर लोग नदियों में स्नान करते हैं। इस दिन ही बागेश्वर, गोदी (गिरी का मेला), रामेश्वर, पाताल भुवनेश्वर, थल, पंचेश्वर, झूलाघाट, ब्यानधुरा, टनकपुर आदि स्थानों पर उत्तरायणी मेला का आयोजन भी होता है। बागेश्वर और रानीबाग़ का उत्तरायणी मेला कुमाऊँ में आयोजित होने वाले मेलों में बहुत महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक माने जाते हैं। पिछले कुछ समय से घुघुतिया त्यार के अवसर पर पर कुमांऊँ के सबसे बड़े नगर व व्यापारिक केंद्र ह्ल्द्वानी में विशाल स्तर पर उत्तरायणी महोत्सव भी आयोजित किया जा रहा है।
काले कवा काले, घुघुती मावा खा ले - घुघुती त्यौहार मुबारक!
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2 टिप्पणियाँ
उत्तराखंड विशेष रुप से कुमाऊं का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है यह। अब उत्तराणी कौथग, कौतिक, मेला के रुप में भी मनाया जाता है अब तो पूरे भारत मे जहाँ उत्तराखंडी है वे वहां वहां उत्तराणी कौतिक, कौथिग मना रहे है।यह मेला, उत्सव, कौथिग, कौतिक,महोत्सव जो भी नाम दें बडे उत्साह से मनाया जाने लगा है। आपका सुन्दर लेख।धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंपढ़ते हुए आनंद आ रहा था। यह भी देख सकते है उत्तराखंड के पर्व
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