
बैजनाथ मन्दिर परिसर, बागेश्वर
उत्तराखंड राज्य के बागेश्वर जनपद में स्थित बैजनाथ मंदिर समुह कुमाऊँ में धार्मिक व पुरातात्विक स्थानों की यात्रा करने वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगहों में से एक है। यह मन्दिर पर्यटन एवं पुरातात्विक महत्व तो रखता ही है। परन्तु ऐसी मान्यता भी है कि गोमती व गरुड़ गंगा नदी के संगम पर स्थित इसी स्थान पर व और पार्वती ने विवाह रचाया था। जिस कारण यह मन्दिर परिसर अपना एक बड़ा धार्मिक मह्त्व भी रखता है।

बैजनाथ मन्दिर परिसर बागेश्वर जिले के गरुड़ तहसील में पड़ता है जो गरुड़ से लगभग २ कि.मी. की दूरी पर गोमती नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से लगबग 1126 मीटर की ऊंचाई पर गोमती नदी के बाएं किनारे पर स्थित है। यह मन्दिर कुमाऊँ के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल कौसानी से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अत: कौसानी आने वाले यात्री बैजनाथ आसानी से आ सकते हैं।
बैजनाथ मन्दिर परिसर लगभग १००० साल पुराना बताया जाता है। कहा जाता है कि बैजनाथ मंदिर का निर्माण कुमाऊँ के कत्युरी राजाओं द्वारा करीब 1150 इसवी में किया गया था। इस मन्दिर का निर्माण काफी बड़ी बड़ी पाषण शिलाओं को काटकर किया गया है। लगता तो नहीं है पर इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि इस मन्दिर का निर्माण सिर्फ एक रात में किया गया था। यहाँ की मूर्तियां इतनी सजीव हैं कि मूर्तियों को देख कर लगता है कि ये अभी बोल पड़ेंगी।

बैजनाथ मन्दिर परिसर शिव, गणेश, पार्वती, चंदिका, कुबेर, सूर्य और ब्रह्मा की मूर्तियों के साथ कत्युरी राजाओं द्वारा बनाया गया है। मन्दिर परिसर में पत्थर के बने हुए कई मन्दिर हैं, जिनमें मुख्य मन्दिर भगवान शिव का है। पर्यटकों के लिए सर्वाधिक आकर्षण का केन्द्र 12वीं सदी में निर्मित शिव, गणेश, पार्वती, चंडिका, कुबेर और सूर्य मंदिर आदि हैं। यहाँ पर माता पार्वती जी की एक आदम कद मूर्ति है, उसी के आगे शिवलिंग की स्थापना की हुई है। शिव भगवान के चिकित्सकों, वैद्यनाथ के लिए समर्पित, बैजनाथ मंदिर वास्तव में अदभुत है। मन्दिर के महंत जी के घर के ठीक नीचे मुख्य मंदिर के रास्ते में ब्राह्मणी मंदिर भी है। जिसके बारे में पौराणिक कथा यह है कि मंदिर में एक ब्राह्मण महिला द्वारा निर्मित शिवलिंग भगवान शिव को समर्पित था। यहाँ से कुछ ही दूरी पर एक और शिव मन्दिर भी स्थित है जिसे चक्रब्रतेश्वर महादेव मन्दिर कहते हैं।

बैजनाथ को पहले “कार्तिकेयपुर” के नाम से जाना जाता था, जो कि 12वीं और 13वीं शताब्दी में कत्यूरी वंश की राजधानी हुआ करती थी । इस मन्दिर समूंह के आगे गोमती नदी में काफी सारी मछलियाँ हैं, जो आकार में काफ़ी बहुत बड़ी बड़ी हैं। सैलानी इन मछलियों के लिए चने, मूंगफली, मक्का आदि ले कर जाते हैं। दाना डालते ही ये मछलियाँ दाना खाने को आ जाती हैं, जिन्हें देख कर मन प्रसन्न हो जाता है और मन करता है इनके साथ ऎसे ही बैठे रहो। इस मन्दिर के एक घाटी में स्थित होने के बावजूद भी मन्दिर परिसर से हिमागच्छित हिमालय पर्वत के दर्शन होते हैं।
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