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गुमानी पंत - कुमाऊँनी भाषा के प्रथम कवि

गुमानी पंत कुमाऊँनी भाषा के प्राचीन कवि हैं साथ ही निर्विवाद रूप से हिंदी खड़ी-बोली के पहले कवि हैं।  प्रसिद्ध ब्रिटिश भाषाविद सर ग्रियर्सन ने ''लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया" में गुमानी पंत को कुर्मांचल प्राचीन कवि माना है। Gumani Pant is the first poet of Hindi, Kumaoni and Nepali

गुमानी पंत - कुमाऊँनी भाषा के प्रथम कवि


गुमानी पंत कुमाऊँनी भाषा के प्राचीन कवि हैं
साथ ही निर्विवाद रूप से वह हिंदी खड़ी-बोली के भी पहले कवि हैं।
प्रसिद्ध ब्रिटिश भाषाविद सर ग्रियर्सन ने भी''लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया" में
गुमानी पंत को कुर्मांचल प्राचीन कवि माना है।

हिंदी साहित्य के विकास में कुमाऊँ के साहित्यकार अपना विशिष्ट योगदान देते आये हैं।   लेकिन विशेष रूप से हिंदी खड़ी बोली में अपने योगदान के लिए जिस महाकवि को लगभग भूला दिया गया है, वह नाम है गुमानी पंत का जिनका रचना काल हिन्दी खड़ी-बोली के जनक माने जाने वाले भारतेन्दु हरीशचंद से भी कम से कम आधी शताब्दी पूर्व में शुरु हो चुका था है।

गुमानी पंत एक बहुभाषी कवि (Gumani Pant a multilingual Poet):-

गुमानी पन्त एक ऎसे विलक्षण और एकमात्र कवि हैं जो मूल रूप से संस्कृत के विद्वान थे। किन्तु उन्होने नेपाली, कुमाऊंनी, हिन्दी खडी बोली, गडवाली में भी काव्य रचनाऎं की हैं।  गुमानी जी की कुछ रचनाऎं ऎसी भी हैं जिसमें उन्होने एक ही छन्द में एक से अधिक भाषाओ का प्रयोग किया है।  इस प्रकार गुमानी पन्त कुमाऊंनी ही नही बल्कि नेपाली के भी आदि कवि माने जा सकते हैं।  भारतेंदु काल से सौ वर्ष पूर्व रची गई महाकवि गुमानी पंत की खड़ी बोली की रचनाएँ आज भी अपना ऐतिहासिक महत्व रखती हैं।  यह निर्विवाद सत्य है कि गुमानी पंत कुर्मांचल में कुमाऊंनी के साथ-साथ खड़ी बोली को काव्य रूप देने वाले प्रथम कवि हैं।   डॉ. भगत सिंह के अनुसार कुमाँऊनी में लिखित साहित्य की परंपरा १९वीं शताब्दी से मिलती हैं और यह परंपरा कुमाऊंनी के प्रथम कवि गुमानी पंत से लेकर आज तक अविच्छिन्न रूप से चली आ रही है।

गुमानी पंत का जीवन परिचय (Biography of Gumani Pant):-

गुमानी पंत के जन्म के विषय में कहा जाता है कि उनका जन्म विक्रत संवत् १८४७, कुमांर्क गते २७, बुधवार, फरवरी १७९० में तत्कालीन  नैनीताल जिले (अब उधम सिंह नगर) के काशीपुर में हुआ था। इनके पिता देवनिधि पंत उप्रड़ा (या उपराड़ा) ग्राम,  (अब जनपद पिथौरागढ़) के निवासी थे। इनकी माता का नाम देवमंजरी था।  इनका बाल्यकाल पितामह पं, पुरुषोत्तम पंत जी के सान्निध्य में बीता। इनका जन्म का नाम लोकरत्न पंत था। इनके पिता प्रेमवश इन्हें गुमानी कहते थे और कालांतर में वे इसी नाम से प्रसिद्ध हुए।  कुछ विद्वानो का यह भी मत है कि क्योंकि यह तत्कालीन काशीपुर नरेश गुमान देव के दरबारी कवि थे, जिस कारण इनको गुमानी पंत के उपनाम से जाना गया।

गुमानी पंत की शिक्षा-दीक्षा मुरादाबाद के पंडित राधाकृष्ण वैद्यराज, परमहंस परिव्राजकाचार्य तथा मालौंज निवासी पंडित हरिदत्त ज्योतिर्विद की देखरेख में हुई। माना जाता है कि लगभग २४ वर्ष की उम्र तक विद्याध्ययन के पश्चात इनका विवाह हुआ। यह अभी गृहस्थाश्रम में प्रविष्ट होने भी न पाए थे कि अचानक बारह वर्ष तक के लिए ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने की ठान बैठे और तीर्थाटन को निकल गए।  गुमानी पंत ने तीर्थाटन के दौरान लगभग चार वर्ष तक प्रयाग में रह कर वहाँ पर एक लाख गायत्री मंत्र का जप किया। ऎसा कहा जाता है कि एक बार भोजन बनाते समय इनका यज्ञोपवीत जल गया। जिससे व्यथित होकर प्रायश्चित स्वरूप उन्होंने व्रत समाप्ति तक पका अन्न न खाने की प्रतिज्ञा कर ली। उनके प्रपौत्र गोवर्धन पंत जी के अनुसार गुमानी जी ने प्रयाग के बाद कुछ वर्षों तक बदरीनाथ के समीप दूर्वारस (दूब का रस) पीकर तपस्या की थी।  व्रत समाप्ति के बाद माता के आग्रह पर तीर्थाटन से वापस आकर इन्होंने पुन: गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया। जिसके उपरान्त आपका काव्या रचना का कार्य भी अनवरत चलता रहा।

गुमानी जी संस्कृत के महापंडित थे ही, साथ-साथ ही कुमाउंनी, नेपाली, हिन्दी और उर्दू के भी सशक्त हस्ताक्षर थे। राजकवि के रूप में गुमानी जी सर्वप्रथम काशीपुर नरेश गुमान सिंह देव की राजसभा में नियुक्त हुये थे।  गुमानी जी को उनके जीवन काल में जिन अन्य राजाओं से भी सम्मान मिला उनमें टिहरी नरेश महाराज सुदर्शन शाह, पटियाला के राजा श्री कर्ण सिंह, अलवर के राजा श्री बनेसिंह देव और नाहन के राजा फ़तेह प्रकाश शामिल हैं।  इस प्रकार गुमानी जी की विद्वता की ख्याति पड़ोसी रियासतों-कांगड़ा, अलवर, नाहन, सिरमौर, ग्वालियर, पटियाला, टिहरी और नेपाल तक फ़ैली थी।   करीब ५६ वर्ष कि अल्प आयु में ही ई० १८४६ में गुमानी पंत जी का निधन हो गया।

गुमानी पंत हिंदी खड़ी बोली के भी प्रथम कवि हैं (Gumani Pant also First Poet of Hindi Khadi boli):-

गुमानी पंत की रचनाओं से यह स्पष्ट होता है, कि वह खड़ी बोली को काव्य रूप देने वाले प्रथम कवि माने जा सकते हैं।  मुझे हिन्दी साहित्य के सम्बन्ध बहुत अधिक जानकारी नहीं है, इसलिए हो सकता है हिन्दी खड़ी बोली में उनसे पूर्व के भी कोई रचनाकार हों।  परन्तु  हिंदी साहित्य के इतिहास में सर्वमान्य रूप से भारतेन्दु हरिश्चंद को हिंदी का आदि कवि माने जाने को, गुमानी पंत की रचनाएँ स्पष्ट रूप से चुनौती देती हैं।   प्रसिद्ध अन्ग्रेज लेखक/शोधकर्ता सर ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक ''लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया" में गुमानी जी को कुर्मांचल प्राचीन कवि माना है।

अगर हम हिंदी साहित्य के इतिहास पर नजर डालते हैं तो पाते हैं कि आधुनिक हिंदी भाषा जिसे शुरू में हिंदी खड़ी बोली कहा गया का प्रथम कवि भारतेन्दु हरिश्चंद को माना जाता है। जबकि काशी के कवि  भारतेन्दु हरिशचन्द्र, जिन्हें हिन्दी साहित्य जगत में खडी बोली का पहला कवि होने का सम्मान प्राप्त है, का जन्म गुमानी जी के निधन (1846) के चार वर्ष बाद हुआ था।  लेकिन गुमानी पंत जी द्वारा लिखित कई हिंदी भाषा की काव्य रचनाएँ उपलब्ध जिस कारण गुमानी पंत की बजाय भारतेन्दु हरिशचन्द्र को हिन्दी साहित्य जगत में खडी बोली का पहला कवि माना जान प्रासंगिक प्रतीत नहीं होता है।

गुमानी पंत जी की साहित्य रचनाऐं (Literary works of Gumani Pant):-

गुमानी जी द्वारा संस्कृत भाषा में रचित निम्न प्रमुख साहित्यिक कृतियां मानी जाती हैं:-
रामनामपंचपंचाशिका, राम महिमा, गंगा शतक, जगन्नाथश्टक, कृष्णाष्टक, रामसहस्त्रगणदण्डक, चित्रपछावली, कालिकाष्टक, तत्वविछोतिनी-पंचपंचाशिका, रामविनय, वि्ज्ञप्तिसार, नीतिशतक, शतोपदेश, ज्ञानभैषज्यमंजरी आदि।

संस्कृत भाषा उच्च कोटि की उक्त साहित्य रचनाओं के अलावा कुमाऊंनी, नेपाली और हिन्दी में कवि गुमानी की कई और कवितायें हैं- समस्यापूर्ति, संद्रजाष्टकम, रामाष्टपदी, लोकोक्ति अवधूत वर्णनम, अंग्रेजी राज्य वर्णनम, राजांगरेजस्य राज्य वर्णनम, दुर्जन दूषण, गंजझाक्रीड़ा पद्धति, देवतास्तोत्राणि।

गुमानी पंत जी पर आलोचनात्मक लेखन (Critical writing about Gumani Pant):-

भारतीय साहित्य के युगपुरुष व कूर्मांचल गौरव गुमानी जी की साहित्य साधना पर बहुत अधिक आलोचनात्मक लेखन नहीं हुआ है। 1897 में चन्ना गांव, अल्मोड़ा के देवीदत्त पाण्डे जी ने “गुमानी कवि विरचित संस्कृत एवं भाषा काव्य” लिखा है और रेवादत्त उप्रेती जी ने “गुमानी नीति” नामक पुस्तकों में कवि का साहित्यिक परिचय दिया है।  इसके अलावा कुमाऊँनी भाषा के कवि, साहित्यकार चारु चंद्र पांडे जी द्वारा अंग्रेजी भाषा में Says Gumani नामक पुस्तक में भी गुमानी जी कृतित्व के बारे में वर्णन किया गया है।  गुमानी जी के पैतृक गाँव उपराड़ा में गुमानी शोध केन्द्र इन पर व्यापक शोध कर रहा है।

गुमानी जी कुमाऊँनी तथा नेपाली के प्रथम कवि तो थे ही, साथ ही हिन्दी तथा संस्कृत भाषा पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी, देखिये निम्न चार पंक्तियों के छन्द की प्रत्येक पंक्ति में किस प्रकार उन्होंने अलग-अलग भाषाओं का प्रयोग है।
क्वे-क्वे भक्त गणेश का में बाजा हुनी तो हुनी (कुमाऊँनी)
राम्रो ध्यान भवानी का चरण मा गर्दन कसैले गरन् (नेपाली)
बाजे लोक त्रिलोक नाथ शिव की पूजा करें तो करें (हिन्दी)
धन्यात्मातुलधाम्नीह रमते रामे गुमानी कवि (संस्कृत)


गुमानी पंत जी के काव्य के बारे में हम आगे के भागों में भी पढ़ेंगे........

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