🎄भैयादूज: उत्तराखंड का 'दुति त्यार'🎄
🔥च्यूड़ धर लियो ख़्वार में🔥
"जी रया, जागि रया। यों दिन-मास भेटनै रया।"
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कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया अर्थात् दीपावली के दो दिन बाद
भैया दूज का त्यौहार मनाया जाता है। भाई बहन के प्रेम का प्रतीक यह त्यौहार
'यम द्वितीया' कहलाता है। इस त्यौहार के पीछे पौराणिक मान्यता के अनुसार
यमराज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन अपनी बहन यमुना के घर
मिलने आते हैं। इस अवसर पर अपने बहन से मिलने की खुशी में यमराज सभी
नरक-वासियों को मुक्त कर देते हैं। उनके इस कृत्य से बहन यमुना बहुत
प्रसन्न होती हैं और अपने भाई यम से यह वरदान मांगती है कि आज के दिन अपने
भाई का टीका करने व उसे भोजन करवाने वाली बहन को कभी भी यम अर्थात् मृत्यु
का भय नहीं होगा। बहन यमुना के वचन सुनकर यमराज अति प्रसन्न हुए और उन्हें
वैसा ही वरदान दिया। यमुना को दिए गए वरदान स्वरूप ही इस त्योहार को मनाने
की परंपरा शुरू हुई। भैयादूज के दिन यमुना में स्नान करना काफी शुभ माना
गया है। इससे अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। इस दिन बहनें भाई की लंबी
उम्र की कामना करती हैं।
इस पर्व से जुड़ी एक पौराणिक कथा यह भी है कि भाई दूज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर वापस द्वारिका लौटे थे। इस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने फल,फूल, मिठाई और अनेक दीप जलाकर उनका स्वागत किया था और भगवान श्री कृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनके दीर्घायु की कामना की थी।
उत्तराखंड में इस त्यौहार को 'दुति त्यार', भ्रातृ-टीका या भैया दूज नाम से मनाने की परंपरा है। इस दिन बहन अपने भाई का टीका उसके सिर में 'च्यूड़' चढ़ा कर करती है।
उत्तराखंड में च्यूड़ बनाने की विधि यह है कि तीन-चार दिन पहले से धान को
एक बर्तन में भीगा देते हैं। उसके बाद भाईदूज के दिन उनको एक बर्तन में
रखकर छान लेते हैं,ताकि उस से पानी अलग हो जाए। उसके बाद चूल्हे में तसला
रखकर इसको अच्छे से भून लेते हैं। अगर च्यूड़े बनाना हो तो तुरन्त ओखली में
कूट लेते हैं और अगर खाजे बनाने हों तो उसे ठंडा होने का इन्तजार करते
हैं। फिर दूब, कच्चे हल्दी और गाय का घी रखकर उसकी पूजा प्रतिष्ठा होती
है।उसके बाद च्युड़ों को मन्दिर में चढ़ाते हैं।उन च्युड़ों को अपने सिर और
परिवार जनों के सिरों में आशीष के रूप में रखते हैं। फिर उन्हें विवाहित
पुत्रियों और सगे संबंधियों को भी भेजते हैं।
च्यूड़ों से टीका करने का अनुष्ठान पर्वतीय समाज के कुछ इलाकों में हरेला लगाने जैसा ही है। हाथ में दूब और च्यूड़े पकड़ कर बहन अपने भाई का टीका करते हुए उसके पैर, घुटने और कंधे का स्पर्श कर उन्हें सिर पर रखा जाता है। ऐसा तीन बार किया जाता है। ऐसा करते हुए बहन अपने भाई की दीर्घ आयु और उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए आशीष दी जाती है-
"जी रए, जाग रए,
तिष्टिए, पनपिए,
स्याव जस बुद्धि हैजो,
स्यू जस पराण हैजो
आकाश बराबर उच्च हैजै,
धरती बराबर चकाव हैजै,
दूब जस फलिये,
हिमाल में ह्यूं छन तक,
गंग ज्यू में पानी छन तक"
आशीर्वाद के इन कुमाऊनी बोलों का अर्थ हुआ- "जीते रहो,जागरूक रहो, स्थिरता पूर्वक तरक्की करो, तुम्हारी सियार के समान तीव्र बुद्धि हो,सिंह के समान बलशाली बनो, तुम आकाश के समान ऊंचाइयां छुओ, पृथ्वी के समान धैर्यवान बनो, दूर्वा घास के समान तुम्हारा फैलाव हो, जब तक हिमालय में हिम रहे गंगा नदी में पानी रहे तब तक जियो"।
कुमाऊं गढ़वाल में रक्षाबंधन की ही तरह यह त्यौहार भी बहुत भावनात्मक महत्व का है और पहाड़ के ग्रामीण इलाकों में इसे किसी समय बहुत उत्साह से मनाया जाता था। पहले लोग स्वयं अपने घरों में रह कर धान की खेती करते थे और और द्वाराहाट आदि के कुछ गांवों में तो आश्विन नवरात्र में इन धानों को दिवाली के च्यूड़ा बनाने के लिए बाइस दिन पहले भिगोने के लिए रख दिया जाता था और दीवाली के मौके पर इन च्यूड़ों को लक्ष्मी पूजा के अवसर पर मंदिर में चढ़ाया जाता था। मां और बुजुर्ग महिलाएं अपने परिवार जनों को इन च्यूड़ों को सिर पर चढ़ाते हुए भैयादूज के दिन 'जी रये जाग रये' का आशीर्वाद देती हैं। कुछ इलाकों में विवाहिता बहन को च्यूड़ा देने भाई उसके ससुराल जाता है। किंतु पलायन और महानगरीय संस्कृति के प्रभाव के कारण पहाड़ में इस त्योहार की लोकप्रियता अब लगातार कमी होती जा रही है।
विभिन्न प्रान्तों में भैयादूज पर्व मनाने की अलग अलग परम्पराएं प्रचलित हैं। पूरे बिहार में भैया दूज काफी धूमधाम से मनाया जाता है।बिहार में वर्षों से चली आ रही गोधन कूटने की परंपरा प्रचलित है।बहनें भाइयों की पूजा करती हैं और भगवान से उनकी लंबी उम्र की कामना करती हैं।मिथिला में इस पर्व के अवसर पर चावलों को पीसकर एक लेप भाईयों के दोनों हाथों में लगाया जाता है। साथ ही कुछ स्थानों में भाई के हाथों में सिंदूर लगाने की भी परंपरा देखी जाती है। भाई के हाथों में सिंदूर और चावल का लेप लगाने के बाद उस पर पान के पांच पत्ते, सुपारी और चांदी का सिक्का रखा जाता है। उस पर जल उड़ेलते हुए भाई की दीर्घायु के लिये मंत्र बोला जाता है। भाई अपनी बहन को उपहार देते है। भाई की आरती उतारते वक्त बहन की थाली में सिंदूर, फूल, चावल के दाने, पान, सुपानी, नारियल, फूल माला और मिठाई आदि वस्तुएं रखी जाती हैं।
सभी मित्रों को भैया दूज,यम द्वितीया और दुति त्यार की हार्दिक शुभकामनाएं।
© डा.मोहन चन्द तिवारी 💐💐💐
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