
उत्तराखंड में बैसि (बैसि जागर)
बिरखांत-166 : उत्तराखंड में 'बैसि'
लेखक: पूरन चन्द्र काण्डपाल
उत्तराखंड में सौण (सावन) में कुछ लोग बैसी करनीं। चनरदा बतूरईं, “कुमाउनी में लेखी एक कहानी किताब छ ‘भल करौ च्यला त्वील’ ( लेखक पूरन चन्द्र काण्डपाल -२००९)। य किताब में एक कहानी छ ‘बैसी में ल्हे बद्यल’।” चनरदा ल कहानि शुरू करी, “उत्तराखंड में बैसि क मतलब छ बाइस दिन तक गौं कि धुणी में रोज जागर। (जागर क मतलब जां डंगरी (डा. एस एस बिष्ट ज्यू क अनुसार ‘देव नर्तक’ ) नाचनी और दास नचूनीं। य दौरान जो लोग बैसी करनीं ऊँ यकोई खानी और दुकोई नानीं। नियम क अनुसार बाईस दिन तक भक्ति करनी और आपण घर कि बिलकुल लै बात नि करन। इनार घरा क लोग लै इनुहें मिलु हैं नि औंन। बाईस दिन तक यूं दाड़ी लै नि बनून। पर आब समय कैं आग लैगो, य बैसी लै दिखावै कि रैगे।”
चनरदा ल कहानि अघिल खसकै, “एक आदिम ल मैंकैं आपण गौं कि बैसि कि पुरि कहानि बतै। द्वि डंगरियां कूण पर गौं वाल बैसि क लिजी मानि गाय। हरेक घर बटि द्वि हजार रुपै मांगी गाय और य लै बतै दे कि जो ज्यादै द्याल भगवान् वीक उतुक्वे ज्यादै भल करल। जो नि दी सकछी वील लै करज गाड़ी बेर रुपै जम करीं।
उ आदिम ल एक दिन कि कहानि बतै, “एक दिन मी धोपरि कै धुणी में आयूं। उता वां सिरफ द्वि डंगरी छी। उनू दिना चौमासि टिमाटर, कोपी, बीन और सगीमर्च कि फसल है रैछी। गौं क मैंस जै क पास जतू साग-पात हौय दनादनी बेचै रौछी। गौं बै द्वि रुपै किलो माल खरीदी बेर पांच-छै गुण ज्यादै कीमत पर माल शहर हूं जां रौछी | मील द्विए डंगरियां हूं हाथ जोड़ि बेर कौ, “अहो आदेश”| बैसि में भैटियां हूं नमस्कार करण क य ई तरिक छ | उनूल जवाब दे ‘अहो आदेश’| ऊँ गेरू धोति लपेटि बेर आसन बिछै बेर भै रौछी। उनूल मि हूं इशार करनै कौ ‘भैटो भगत’ | ‘जो आदेश’ कौनै मि भै गोयूं। यूं द्विए मि कैं पच्छाण छी लै। एकै ल मि हूं पुछौ, “कतू डाल टिमाटर न्हैगीं और भौ क्ये चलि रौ ? फलाण क कतू न्हैगीं? अमकाण क कतू न्हैगीं? और नईं-ताजि क्ये हैरीं गौं में ? मी ल उनुकें सब बता और थ्वाड़ देर भै बेर मि नसि आयूं?
बैसि में भक्ति करण क त नाम छी, पर इनर ध्यान चौबीस घंट घर-गौं कि तरफ छी। चालिस घरों बै द्वि-द्वि हजार कनै इनूल अस्सी हजार रुपै इकठठ करीं और राशन, साग, घ्यूं, तेल, फल, इनण, दै, दूद, धूप, बत्ती यों सब भेट-घाट चड़ाव में ऐ गाय। आखिरी दिन इनूल भनार करौ। लोग आईं और खै-पी बेर न्है गईं | य ई गौं में उ साल दर्जा दस और बार क इमत्यान में क्वे लै नान पास नि हौय। बिना बैसि करिये केवल एक दिन भनार करि बेर मेल-मिलाप करण सही बात है सकीं।
अगर गौं वाल हरेक परिवार बै एक्कै हजार रुपै लै इक्कठ करि बेर यूं नना लिजी अंगरेजी, गणित और विज्ञान क ट्यूशन धरना तो यूं सबै नना कि जिन्दगी बनि जानि। गौं में पुस्तकालय हुनौ या एक अखबार हुनौ तो नना क ज्ञान बढ़न। पर यस सुझाव गौं में कैक समझ में नि ऐ सकन। यकैं ऊँ भल काम नि समझन। बैसि करि बेर डंगरियों क प्रचार हुंछ। उनर रुजगार, रुतवा और कद बढूं। उनू कैं गौं क नना क पास-फेल सै क्ये लै मतलब न्हैति। अघिल बिरखांत में क्ये और.......
पूरन चन्द्र काण्डपाल 06.07.2017
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