रचनाकार: रेणुका जोशी
माघौ म्हैण लाग रौ
प्रयागराज में कौतिक है रौ ।
मोटर कारन कं त भैरै रोकी भै
तीरथ में आछा त पैदलै हिटण भै।
हिटण हिटणै खुट पटैं जानी
यां चै बे मैंस रणीं ज जानी
कस कस स्वांग धरि छन !
कोई घुंघुट करनी कोई नांगडे़ छन।
बाटनाक नौ पढ ल्हिया
हरै जाला त कैधें पुछ ल्हिया।
दगडुवा दगै हाथ झन छोड़या
कौतिक देखन देखनै भबरी झन जाया।
गंगैकि रेत में कसि ज रौनक भैयि
मैस त भया यां साधु लै छाजि रैंयि।
संगम में ना हुं आला
इदु काम कर्या।
गाड़ गद्ध्यारन कं कभै
मैल झन कर्या।
गंग छू यौ हमैरि मै छू
यैक त्वप पिबेर त मोक्ष छू।
नानछिना बै सुणनै ऐ रयूं
गंग में पाणि बगण जालै
जी रया जागि रया
हिमालै में ह्यूं रूण जालै।
जां लै है सकों खूब बोट लगाया
आपुण धर्ती मै कं हर्याल ज छजाया।
अघिलाक नानतिनां हं
गंगक अमृत बचै जाया।
प्रयागराज में कौतिक है रौ ।
मोटर कारन कं त भैरै रोकी भै
तीरथ में आछा त पैदलै हिटण भै।
हिटण हिटणै खुट पटैं जानी
यां चै बे मैंस रणीं ज जानी
कस कस स्वांग धरि छन !
कोई घुंघुट करनी कोई नांगडे़ छन।
बाटनाक नौ पढ ल्हिया
हरै जाला त कैधें पुछ ल्हिया।
दगडुवा दगै हाथ झन छोड़या
कौतिक देखन देखनै भबरी झन जाया।
गंगैकि रेत में कसि ज रौनक भैयि
मैस त भया यां साधु लै छाजि रैंयि।
संगम में ना हुं आला
इदु काम कर्या।
गाड़ गद्ध्यारन कं कभै
मैल झन कर्या।
गंग छू यौ हमैरि मै छू
यैक त्वप पिबेर त मोक्ष छू।
नानछिना बै सुणनै ऐ रयूं
गंग में पाणि बगण जालै
जी रया जागि रया
हिमालै में ह्यूं रूण जालै।
जां लै है सकों खूब बोट लगाया
आपुण धर्ती मै कं हर्याल ज छजाया।
अघिलाक नानतिनां हं
गंगक अमृत बचै जाया।
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