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बिरुड़ पंचमी, सातु आठूं या डोर-दुबड़ा का व्रत

बिरुड़ पंचमी-कुमाऊँनी त्यौहार, Birud Panchami is main festival in east kumaun regin, Kumaoni Tayauhaar, birdu aur satun athun parva


बिरुड़ पंचमी

बिरुड़ पंचम उत्तराखंड के कुमाऊँ अंचल में मनाया जाने वाला प्रमुख व्रत/पर्व है जिसे सातू-आठू यानि गौरा पर्व के प्रथम दिवस के रूप में मनाया जाता है।  यह पर्व भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है।  सातू-आठू/गौरा पर्व शिव-पार्वती की उपासना का पर्व मना जाता ख़ासतौर से महिलाएं इस दिन उपवास और पूजा-अर्चन करती हैं।  पिथौरागढ़ क्षेत्र में इसे विभिन्न आयोजनों के साथ अलग अंदाज में मनाने की परम्परा है।

जैसा की पहले बताया गया है की बिरुड़ पंचमी, सातू-आठू/गौरा उत्सव के पहले दिन के रूप में भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन, उत्सव की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है।  इस दिन महिलाएं उपवास रखती है और बिरूड़ (सात या पांच प्रकार के अनाज व दाल) को अंकुरण हेतु एक साफ तांबे के बर्तन में भीगा कर मंदिर के समीप के स्थान पर रखा जाता है।

भिगाये जाने वाले सात या पांच तरह के भीगे हुए अंकुरित अनाज व दालों में लोबिया, गहत, गुरौन्स, चना व कलों आदि होते हैं।  कुमाऊं क्षेत्र में दालों में मसूर की दाल अशुद्ध मानी गयी है इसलिये कभी भी बिरुड़े में मसूर की दाल नहीं मिलायी जाती है।  कुछ क्षेत्रों में जौं और सरसों एक पोटली में डालकर उस बर्तन में भिगो दिया जाता है जिसमें बिरुड़े भिगोए जाते हैं। कुछ दिनों बाद अंकुरित इन विरुड को घी में भूनकर प्रसाद के रूप में खाया जाता है। अंकुरित अनाज व दालों को ही बिरुड़े कहा जाता है जिस कारण ही इस पर्व को बिरुड़ पंचमी के नाम से जाना है।

यह त्योहार महिलाओं से सम्बन्धित है लेकिन क्षेत्र के अनुसार इसके स्वरूप  में भिन्नताऐं दिखती हैं।  इसमें महिलाओं द्वारा डोर और दुबड़ा धारण किया जाता है   जिस कारण अल्मोड़ा क्षेत्र में सातु आठूं व्रत को डोर-दुबड़ा का व्रत के रूप में भी जाना जाता है।  यहाँ महिलाऐं सप्तमी के दिन अखँड सौभाग्य की कामना से ब्रत रख कर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। तत्पश्चात बांये बांह पर पुरोहित (पंडित) द्वारा प्रतिष्टित किया गया सप्त ग्रन्थियुक्त डोर बाँधा जाता है।  अगले दिन दुर्वाष्टमी को सदा सर्वदा हरी भरी कोख के निमित्त गले में प्रतिष्ठित दुबड़ा धारण किया जाता है।  डोर और दुबड़ा का निर्माण अल्मोड़ा शहर के ही पटूवा समुदाय के लोगों द्वारा किया जाता है, समय के साथ इनकी बनावट व डिज़ाइन में काफी बदलाव इनके द्वारा किये गए हैं।

कुमाऊँ के पिथौरागढ़ में यह सातू-आठू उत्सव और पश्चिम नेपाल के क्षेत्रों में गौरा-महेश्वर उत्सव के रूप में ये पर्व मनाया जाता है। बिरुड़ पंचमी से शुरू होने वाला सातू-आठू पर्व भाद्र महीने की पंचमी से शुरू होता है और लगभग पूरे सप्ताह भर तक चलता है।  महिलाएं इस पर्व में शिव-पार्वती के जीवन पर आधारित लोक गीतों पर नाचती-गाती और खेल लगाती हैं।  कई गाँवो में झोड़े-चांचरी तथा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।   इस पर्व में शिव-पार्वती की जीवन लीला का प्रदर्शन विभिन्न माध्यमों से किया जाता है।

कहा जाता है कि जब पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर मायके आतीं हैं तो वह हिमालय में अपने मायके आ जाती हैं।  जिस पर भगवान् शिव उन्हें वापस लेने धरती पर आते हैं, माँ पार्वती (गौरा देवी) की घर वापसी के इसी मौके को गौरा देवी की विदाई के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।  वैसे इस उत्सव को प्रकृति से जुड़ा पर्व भी माना जाता है क्योंकि इन दिनों पहाड़ो पर प्रकृति पूरी तरह पल्लवित पेड़ पौंधों से सुसज्जित होती है।

डोर और दुबड़ा की फोटो श्री जगमोहन साह जी के फेसबुक पोस्ट से

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