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ऐड़ी देवता - कुमाऊँ के लोकदेवता


ऐड़ी देवता - कुमाऊँ के लोकदेवता

लेखक - भुवन चन्द्र पांडे

यौ देवता कुमाऊं और गढ़वाल द्विया दी मंडल में बहुपूजित लोक देवता छू और कुमाऊं देवकुल में यैक महत्वपूर्ण स्थान छु।  सैम और गोरिया समान यैक पूजा लगभग पुर क्षेत्र नें हुं।  यौ प्रमुख रूप पर पशुचरूंणी वर्गौक देवता मानी जां।

अटकिंसनौक अनुसार यौ दिन में घण जंगलों में छिप रूं और रात में उल्ट खुट वालि परियों दगाड़ बंण और पहाड़नैकि शिखरन में घुमूं।  यौ मानि जां कि रात नें कोई लै यैक सामंणी पड़ गयौ तो वीक तत्काल मृत्यू हैजां।  यैक स्वरूपौक बार में कई जां कि यैक आंख मुनइ मैं हुनी और यैक चार हाथ हुनी जनूमै यो धनुष, बांण, त्रिशूल और लौहदण्ड ल्हि राखूं । सजधज बेर यात्रा में निकलूं।  यैक पालकी कैं साऊ और भाऊ नामक द्वि सेवक उठूनी । पालकी दगाड़ द्वि कुकुर लै हिटनी जिनौर गाव मे घंटी लटकी हुनी और ऊं टन- टन आवाज करनी।  पालकी दैंण और बौं तरफ द्वि चुड़ैल अंग रक्षक (आंचरी और चांचरी) रूनी।  यैक अतिरिक्त भूत बेताल और परी लै दगाड़ में चलनी।

अट्किंसनौक विवरणौक हबेर जरा अलग लोक गाथा और जन श्रुति यै बार में कुनी।  जागर गाथाक अनुसार ऐड़ी देवताक विवरण जरा भिन्न छू और भौते रोचक छू।  जरा लम्ब छू यै लिजी जरा इंतजार करण पड़ौल, द्वि तीन भागन में लिखुन।

यौ थैं अहेरी देवता लै कूनी, अटकिंसनल जे लिखौ उपलब्ध लोकगाथा और जन श्रुती दगाड़ मेल नि खान।  जागर गाथा नुसार ऐड़ी एक अल्हड़ और आखेट प्रिय देवता छु और शिकार खोज मे उच्च उच्च डानन में घूमते रूं।  यैक बांण अचूक बतैई जां।

यस कूनी कि यैक असली नाम त्यूना और भाई नाम ब्यूना छि।  यौ रोज आंपण कुकुरनौक दगाड़ धनुष बांण ल्हिबेर शिकार करहूं निकल जांछी।  एक दिन शिकार हुं जांण बखत यैक इजैल य थैं को कि आज वील भौतै खराब स्वैंण देख राखौ यै लिजि आज तु शिकार निजा, के लै अनिष्ट है सकूं।  पर जिद्दी हुंणा कारण वील नि मानि, ऊ आंपण कुकुर कठुवा और झपुवा कैं ल्हि बेर शिकार हुं पिपलीकोट,कातियाचांठा और कटारीबघान जंगलन हुं न्हैगोय।जब उ शिकारौक तलास करते करते थक गो तो कटारीबघान नें एक बोटाक तलिबै एक खुट मे कठुवा और एक खुट मे झपुवा कै बादि बेर सित गो । जरा देर मे एक काकड़ ( हिरण जौस ) वां बटि निकलौ जै पर द्विवा द्वि कुकर झपट्ट मारुहूं दौड़ पड़ी । एक बौं तरफ हूं दौड़ो एक दैंण तरफ हूं जैक वील त्यूनाक टांग टुट गैऊं और उ मर गो । यै लिजि यैक प्रेत आत्मा अाब डोलि यानि कि पालकी में चलूं।

ऐड़ीक गाथा गीतन में यैक मूल-स्थान ब्यानधुर नामक शिखर में मानी जां जोकि चम्पावत जनपदौक पालबलौन पट्टी मे हल्द्वानी टनकपुर राजमार्ग में राजमार्ग बटि २५ किलोमीटर उत्तर दिशा में छू । यां पर यैक मन्दर छु , उ में न तो छत छु न कलश, वां केवल बांण और त्रिशूलाक ढेर छन । नजदीक एक खेत में साढ़े चार मन वजनी एक धनुष छू । यां नवरात्रि में और कार्तिक पुन्यूं हुं म्यल लागूं । आस पास १०-१५ किलोमीटर तक क्वै आबादी न्हैं । यैक पुजारि लै १५ किलोमीटर चौड़ा कोट में रूनी।

ऐड़ी जागरनाक अनुसार त्यूना यानि ऐड़ी कैं अर्जुन और ब्यान कैं युधिष्ठिरक अवतार मानी जां । यां एक धुंणि लगातार जलते रूं । यौ कें तुरन्त फलदाई और वरदाई द्याप्त मानी जां । यां अबेर नि:सन्तान लोग सन्तान , अन्याय पीड़ित न्याय, पशुचारक पशु नैकि रक्षा और उनौर वृद्धिक मनौती मांगनी । मनौति पुर हुंण पर यां अबैर २०-२५ किलोग्राम तक वजनी लुवौक धनुष चढ़ूनी जैक ड्वर लै लुवैक हुं । यै अलावा लुवौक दण्ड जै थैं गाजा कूनी चढ़ूनी । यैक मन्दर कै छान ( छत नि बणून) न्हैतन यौ मानि जां कि क्वै छालौ तो ऐड़ी उकैं सजा दि द्युं। असोकाक नौर्त और कार्तिक पुन्यूं हुं बानाधुरा में विशेष आयोजन हुनी।

नौर्तन में रात में यैक जागर लागूं, यौ आंपण डंगरियों और धामियों में अवतरित हबेर दुखीनैकि ब्यथागाथा सुंणु और उनुकूं मनोकामना पुरि हुंणौक वरदान द्युं । वां यैक दरबार लागूं बकायदा एक चौरस ढुंग में यैक सिहंसन बड़ाई जां।दास ढोल वजूनी और विरुदावली गानी और ऐड़ी डंगरी में अवतरित हबेर सिंहासन में बैठूं और लोगनैकि फरियाद सुंणु ।

ब्यानाधूरा मन्दिर में कार्तिक पूर्णिमा हुं संन्तानैकि इच्छा धरंणी महिला लोग रात में दी थाम बेर लाइन में ऐड़ीक आसनैकि चौकीक चारों और ध्यानस्थ मुद्रा में बैठजानी । ऐड़ीक छड़ीबरदार ठाड़ रूनी । वांक ढोली जागर गां, डंगरी में ऐड़ी अवतरण हैजां और उ बारी बारी सबनैकि फरियाद सुंणु और अभीष्ट फल इच्छा पूर्तिक आशिर्वाद द्यूं । मनोकामना पूर्ण हुंण पर फिर अबेर बिधि बिधान सांथ लोग झनुष बांण आजि आदि चणूनी ।

कुमाऊं में ब्यानाधूरा बाद ऐड़ी एक मुख्य पूजास्थल चम्पावत जिलौक असी पट्टीक गौत़ोड़ा गौं मे स्थित फटिक शिला में छू । धूना घाट बटि ३ किलोमीटर दूर लोहाघाट-देवीधूरा राजमार्ग में उत्तर में एक पहाड़ी में द्वि शिला रूप में ऐड़ी स्थापित छू । जन श्रुति अनुसार पिछ्याड़ि समय में यां एक दैत्यौक भौतै आतंक छी । यांक लोग नैल जब ऐड़ी कैं पुकार लगाई तो वील द्वि शिला दैंत्यैक और फैंकी , दैंत्य उनुमै दब बेर मर गो । तब बटि यां चैतक नवरात्रि में उत्सवौक आयौजन हूं । लोग दूर दूर बटि यां ऐड़ी पूजा अराधना करहूं ऊनी ।

ऐड़ी द्यौ नामैल प्रसिद्ध एक प्रसिद्ध मन्दिर जिला अल्मोड़ाक लमगाड़ विकास खण्ड में पट्टी मल्ला सालम में जैंतीक नजदीक कुटौली गौं मे छू । यैक सम्बन्ध में यौ मान्यता छू कि यां ऐड़ील आपंणि पहिचानाक लिजी त्रिशूल और लुवा दण्ड (गाज ) बरसाई यैक लिजी यौ " बरसी गाज"कई जां । यां शिवरात्रि हुं और अशोजाक नौर्तन में या म्यल लागूं ।

एक ऐड़ी मन्दिर छडौंज में और एक राजधार गघोली हाट में छू ।

अल्माड़क तिखून पट्टी मजखाली- सोमेश्वर मार्ग में ७५०० फीट उच्च शिखर द्यौली डान मे लै एेड़ीक निवास मानी जां । वां लै एक मन्दिर छू । ऐड़ी स्थापना खास कर उच्च डानन में करी जां ।
देवीधूरा में बग्वाल वाल मैदाना खालीखांड-दुबाचौड़क समीप एक उच्च टिल में ऐड़ी मन्दिर छू। उकूं मचवाल कई जां । मान्यता यो छु कि दैंत्यनौक संहार करण में ऐड़ील देवीक सहायता करी यै लिजी देवी ऐड़ी कैं आंपण भाइ मानू । बग्वालाक दुहार दिन देवी उकूं मिलुहूं मचवाल जां ।
यैक जनश्रुति और मान्यता भौत विस्तृत छन, जनकु लिखण में भौत समय लागौल यैकि लिजी ऐंड़ी देवत अध्याय यैं समाप्त करनू ।

(संग्रह सहयोग - उत्तरा खण्ड के लोक देवता" डी० डी० शर्मा और अन्य)

बी० सी० पाण्डे
फेसबुक ग्रुप कुमाऊँनी शब्द सम्पदा पर भुवन चन्द्र पांडे जी की पोस्ट से साभार

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7 टिप्पणियाँ

  1. सर ऐड़ी को जो आपने त्यूंदर बताया वो पूरा गलत है जिसका कोई आधार नहीं।ऐड़ी देवता नेपाल के डोटी महरजान से आए देवता हैं।ये बाईस भाई ऐड़ी थे जागर फाग में बताते हैं।आप ब्यानधुरा के दास से सुन सकते हैं।कृपया गलत जानकारी न फैलाएं वैसे ही नेट पर ऐड़ी देव के बारे में बहुत गलत जानकारी है।ऐड़ी त्यूंदर नहीं है सर

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  2. ब्यानधुरा धाम ऐड़ी देव मंदिर।ऐड़ी देव की बहुत सी कथाएं कुमाऊं में प्रचलित हैं परंतु उनमें से यह कथा जो फागों में गाई जाती है सर्वमान्य है।
    उत्तराखण्ड जनकल्याण संगठन का आज यह प्रयास है कि आप सभी उत्तराखंडी लोकप्रेमियों को आज एक ऐसे स्थान का दर्शन कराएं जहाँ न केवल भौगौलिक दृष्टि से हजारों वर्ष पूर्व का परिदृश्य देखने को मिलता है बल्कि इतिहास के वे खण्डहर आज भी देवभूमी में देववास को प्रमाणित करते हैं। जहाँ आज भी आधुनिक विज्ञान को लोगों की यह मान्यता चुनौती देती है कि देव अवतरित होते हैं सुनने में बड़ा विचित्र लगता है लेकिन जो लोग इस अनुभव को ले चुके हैं जरूर अचंभित नहीं होंगे।उत्तराखंड की देवभूमि में स्थापित लोक देवताओं के मंदिरों के बाबत जानने सुनने के बाद आश्चर्य ही नहीं होता बल्कि आस्था से सिर भी झुक जाते हैं। श्री ब्यानधूरा बाबा ऐड़ी देवता मंदिर भी इन्हीं मंदिरों में एक है। टनकपुर मुख्य सड़क से 35 किमी दूर इस मंदिर परिसर में अकूत लोहे के धनुष-वाण व अन्य अस्त्र-शस्त्र के साथ बड़े बड़े शंख व घंटियां चढ़ाये गये हैं। आज भी मंदिर जाने वाले लोग धनुष-वाण व घंटियां चढ़ाते हैं। इस ऐड़ी देवता के मंदिर को देवताओं की विधान सभा भी माना जाता है, जबकि ऐड़ी को महाभारत के अर्जुन के स्वरूप भी माना जाता है। ब्यानधूरा में मंदिर कितना पुराना है इसकी पुष्टि नहीं हो पायी, लेकिन मंदिर परिसर में धनुष-वाणों के अकूत ढेर से अनुमान लगाया जा सकता है कि यह ऐड़ी देवता का यह पौराणिक मंदिर हजारों वर्ष पुराना है। बताया जाता है कि ऐड़ी नाम के राजा ने ब्यानधूरा में तपस्या की और देवत्व प्राप्त किया। कालान्तर में यह लोक देवताओं के राजा के रूप में पूजे जाने लगे। ऐड़ी धनुष युद्ध विद्या में निपुण थे। उनका एक रुप महाभारत के अर्जुन के अवतार के रूप में माना जाने लगा। यहां ऐड़ी देवता को लोहे के धनुष-वाण तो चढ़ाये जाते हैं वहीं अन्य देवताओं को अस्त्र-शस्त्र चढ़ाने की परम्परा भी है। बताया जाता है कि यहां के अस्त्रों के ढेर में ऐड़ी देवता का सौ मन भारी धनुष भी है। मंदिर के ठीक आगे गुरु गोरख नाथ की धुनी भी है जहां लगातार धुनी चलती है। मंदिर प्रांगण में एक अन्य धुनी भी है, जिसमें जागर आयोजित होती है। कई लोग मंदिर को गाय दान करते हैं। मकर संक्रांति के अलावा चैत्र नवरात्र, माघी पूर्णमासी को यहां भव्य मेला लगता है। मंदिर को शिव के 108 ज्योर्तिलिंगों में से एक की मान्यता प्राप्त है।
    लोकमान्यताओं के आधार पर उत्तराखंड की पुण्य भूमि में देवी देवताओं का समय समय पर अवतार हुआ है।
    ऐड़ी देवता उत्तराखंड में लगभग सभी गांवों में ऐड़ी देवों का वास है । ऐड़ी देवता का मुख्य मंदिर ब्यान्धुरा मंदिर है असल में यह ब्यान्धुरा इस जगह का नाम है जहाँ ऐड़ी देवता का वास है अपार आस्था से प्रभावित होकर लोग ऐड़ी देवता को ब्यान्धुरा बाबा के नाम से जानने लगे जिसे पीढ़ी दर पीढ़ी हम लोग ब्यान्धुरा के नाम से पहचानने लगे। असलियत में ब्यान्धुरा यहाँ के स्थान का नाम है जहाँ धनुर्धारी एड़ी देवता ने वास लिया था।
    लोककथाओं के आधार पर कहा जाता है कि ऐड़ी बाईस भाई डोटी वर्तमान में नेपाल देश के यशस्वी राजा थे जिनकी मान्यता थी की कमजोर गरीब भूखा न रहे अमीर मजबूत अकड़ में न रहे। प्रजा सुखी थी नौलाख डोटी में सभी आनंदित थे बहुत बड़ा महल जिसके सैकड़ों स्वर्ण दरवाजे थे हजारों घोड़े हाथियों सहित सैकड़ों गौशालाये महल के अंदर थी। कहानी बहुत लंबी है थोड़ा संक्षिप्त में लिखने का प्रयास है जो संभव हो पाया है ब्यान्धुरा बाबा के पारंपरिक दास कथा वाचक श्री जगत राम जी से जब 2016 में स्वयं उनके घर जाकर मुझे सुनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
    लोककथा के अनुसार एड़ियों की संपन्नता से उंपके अपने ही जलने लगे देश देश तक उनके शौर्य को उनके अपने ही भुना नहीं पा रहे थे उनके कुल के पुरोहित केशिया पंडित षड्यंत्र वश पुरे राजमहल में विषपान करवा देता है जिससे पूरा राजमहल कई सप्ताहों तक बेहोश हो जाता है तब सबसे बड़े भाई में देवात्मा प्रवेश करती है और किसी वैद्य के सपने में आकर ऊन्हें वहां बुलाते हैं पहुंचकर सभी वहां से सन्यासी रूप मे कुमाऊँ में प्रवेश करते हैं यह बात कथनों अनुसार मुग़ल काल के समकालीन की लगती है जब मुग़ल पुरे भारतवर्ष में फैले हुए थे मगर ऐड़ी देव की कृपा से देवभूमि में मुगलों का प्रवेश नहीं हो पाया मुग़लों के साथ युद्ध का वर्ण भी लोककथा में आता है। यूँ तो ऐड़ी देव संपूर्ण उत्तराखंड के पूज्य होने चाहिए जिनकी छत्र छाया में उत्तराखंड मुगलों के आक्रमण से बच पाया मगर जमीनी हकीकत यह है कि मंदिर में कुछ भी विकास नहीं हुआ है।
    आज भी देव शक्ति के रूप में ब्यान्धुरा ऐड़ी साक्षात शक्ति है यहाँ पर ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएंगे जो बाँझ जोड़े उम्र के अंतिम पड़ाव तक औलाद का ख्वाब देखते हैं उन्हें यहां आकर ब्यानधुरा बाबा की सुख मिलता है।

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  3. अमित जी आपने दी गयी जानकारी में कुछ संशोधन के साथ बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है। पोस्ट की गयी जानकारी सम्बंधित लेखक द्वारा श्रुति और दिए गए सन्दर्भ के अनुसार दी गयी है। आप ऐड़ी देवता के सम्बन्ध विस्तृत जानकारी पोस्ट कर सकते हैं या अगर आपने ऐड़ी देवता के सम्बन्ध में कोई जानकारी वेब पर दी है तो उसका लिंक देने की कृपा करें नहीं तो जानकारी देवनागरी में, अपने संक्षिप्त प्रोफाइल और फोटो को pahariforum@gmail.com पर ईमेल करने की कृपा करें हम आपके योगदान को अपनी वेबसाइट पर शामिल करना चाहेंगे।

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  4. सर में आपको ऐड़ी ब्यानधुरा बाबा के फाग भी दे सकता हूं जोकि ब्यानधुरा धाम में उनके पारंपरिक दास श्री जगत राम जी द्वारा गाई गई है।ऐड़ी और त्यूंदर दोनों अलग देवता हैं दोनों अलग अवतार लेते हैं इतना ही कहना चाहुंगा सर ऐड़ी ब्यानधुरा बाबा त्युंदर नहीं हैं।

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    1. अमित जी बहुत अच्छी जानकारी दी आपने क्या आप मुझे बाबा के फाग मेल कर सकते हैं।
      आपका बहुत आभार रहेगा।
      rajnegi0566@gmail.com

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  5. साहाब कृपा करके मनगणंत कहानी न बनाऐं

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