
कुमाऊँनी भरद्वाज गोत्री पाण्डे
लेखक: भुवन चन्द्र पांडे
कुमाऊँ में बामणनाक बार में जाण लियो जरा।
कुमाऊँ में भरद्वाज गोत्री पाण्डे-
पं- श्री बल्लभ पाण्डे उपाध्याय कान्यकुब्जी ब्रह्मण कन्नोज के खोर ग्राम से चंद राजा के समय आये थे। खोर ग्राम मे चार भाई थे देव दत्त, हरिदत्त, शंभुदेव और श्री बल्लभ । इनमें से श्रीबल्लभ कुमाऊँ को आये । संस्कृत के धुरन्धर विद्वान होने के कारण वे उपाध्याय भी कहे जाते थे।
अटकिंसन के गजेटियर के अनुसार- श्रीबल्लंभ पाण्डे उपाध्याय कन्नौज के कान्यकुब्जी ब्राह्मण थे। वे राजगुरू थे। कहते हैं कि पांडे जी कालीमाटी पर्वत में जंहा पर राजाका सस्त्रागार था रात में पंहुचे और संत्रियों से हवन करने के लिये लकड़ी मांगी पर संत्रियों ने उन्हैं मजाक मे लकड़ी की जगह लोहे के डंडे दे दिये। पंडित जि तंत्रसास्त्री थे उन्हौंने लोहे के डंडो का ही होम करदिया। तभी से वंहा की मिट्टी काली होनी कही जाती है और उस जगह को कलमटिया (अल्मोड़ा में) कहा जाता है।
जिस शाखा ने लोहे का होम किया वह लोह होमी अर्थात लोहनी कहलाई, जो लोग वेद में निपुण थे वे काण्डपाल कहलाये क्योंकि वे वेदों के कांडो और रिचाओं के पालक थे, इनको सत्राली मे जागीर मिली।
सत्राली में जिस स्थान पर श्रीबल्लभ जी रहते थे वंहा से पानी बहुत दूर था। एक दिन उनकी पत्नी थक जाने के कारण पानी हाथ में न लाकर सिर पर रख कर लाई तो पण्डित जी ने कहा कि पूजा का पानी सर पर लाने से भ्रष्ट होगया है। पंडितायन नाराज होगई और बोली कि ऐसे ही तांत्रिक हो तो या तो पानी खुद लाओ या यंही पर पैदा दकरदो। इस पर पांडे जी ने कहा कि वह भगवान से प्रार्थना करंगे पर अगर पानी निकल आया तो आश्चर्य मत करना । पांडे जी ने कुशा घास उखाड़ी, पानी निकल आया पर पंडितायन के मुह से आश्चर्य मे "हें हें" निकल आया जिस से पानी कम होगया । वह धारा गणानाथ में अभी भी श्रीबल्लभ के धारे के नाम से प्रसिध्द है।
सत्राली में जिस स्थान पर श्रीबल्लभ जी रहते थे वंहा से पानी बहुत दूर था। एक दिन उनकी पत्नी थक जाने के कारण पानी हाथ में न लाकर सिर पर रख कर लाई तो पण्डित जी ने कहा कि पूजा का पानी सर पर लाने से भ्रष्ट होगया है। पंडितायन नाराज होगई और बोली कि ऐसे ही तांत्रिक हो तो या तो पानी खुद लाओ या यंही पर पैदा दकरदो। इस पर पांडे जी ने कहा कि वह भगवान से प्रार्थना करंगे पर अगर पानी निकल आया तो आश्चर्य मत करना । पांडे जी ने कुशा घास उखाड़ी, पानी निकल आया पर पंडितायन के मुह से आश्चर्य मे "हें हें" निकल आया जिस से पानी कम होगया । वह धारा गणानाथ में अभी भी श्रीबल्लभ के धारे के नाम से प्रसिध्द है।
राजा ने इस वंश के लोगों को राज गुरू बनाया पाटिया गांव जागीर में दिया । इस वंश के लोग पाटिया, कसून, पिलिख, बरेली, अनूप सहर, मेरठ, पतेलखेत, भैंसोड़ी, ओकाली, बल्दगाड़, भगौती आदि स्थानों मे रहते हैं।
लोहनी व कांडपाल लोहना, कांडे, कोटा, कुमल्टा, थापला, लछमपुर,कांटली, भेटा,पनेरगांव, भाड़कोट, खाड़ी, बंटगल, काकड़ा, कोतालगांव, ताकुला, मनार, अल्मोड़ा आदि स्थानों पर रहते हैं।
मंडलियापाण्डे (सारस्वत), देवलिया पांडे (गौतम गोत्री), वत्स (भार्गव गोत्री), सीमल्टिया पांडे ( कश्यप गोत्री ) एवं काश्यप गोत्री पाण्डे के बारे में भविष्य में लिखा जाएगा।
(संदर्भ-कुमाऊँ का इतिहास बद्री दत्त पाण्डे)
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