
सावन का महिना व डिकर पूजा
लेखिका: प्रेमा पांडे
कृषी व मौसम से भी सम्बन्ध रखता है, सावन की संक्रान्ति को हरेला बोया जाता है, पाँच प्रकार के अनाज .एक छोटी टोकरी में बोये जाते हैं जिसे मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिये जाता है।
हरेला बोना धन सम्पत्ति, घर के सदस्यों की आरोग्यता की कामना के लिये होता है, दसवें दिन इसे काटा जाता है, व घर की बेटीयाँ रोली चन्दन से घर के सदस्यों का टीका करती हैं, व उनके दीर्घायू व सुखी जीवन की कामना करते हुवे सब सदस्यों को हरेला धारण करवाती हैं।
हरेला काटने के पहले, नवें दिन को रात्री में डिकर पूजा होती है।
डिकार (डिकारे) क्या होते हैं ?
मान्यता है सावन के माह में शिव धरती पर विचरण करते हैं व जन मानुष में उनके प्रति आस्था बहुत बढ जाती है। कहा जाता है राजा दक्ष की पुत्री उमा (शक्ति) को शिव बहुत प्रिय थे उन्हें पाने के लिये उन्होने तपस्या की व भगवान शिव के हृदय को जीत लिया, राजा दक्ष को भी उनकी जिद के आगे झुकना पड़ा व शिव के साथ उमा का विवाह कर दिया। परन्तु शिव की वेश भूषा व उनके गण आदि राजा दक्ष को ना पसन्द थे, इसी क्रोध में उन्होंने शिव व उमा को अपमानित करने के लिये एक यज्ञ का आयेजन किया व शिव व उमा को आमन्त्रित नहीं किया। देवी उमा को इस यज्ञ में शामिल होने की इच्छा थी जिसे शिव जी ने इन्कार कर दिया परन्तु शिव द्वारा इन्कार करने के बाद भी देवी अपने पिता के घर यज्ञ में शामिल होने के लिये चली गई व वहाँ जा कर उन्होंने अपने पिता को उनके अशोभनीय आचरण के लिये समझाया।
परन्तु दक्ष नहीं सुनने को तैयार हुवे, देवी उमा ( शक्ति) को आघात लगा़ व उन्होंने हवन कुण्ड में छलाँग कर अपनी जान दे दी, भगल़वान शिव को जब यह ज्ञात हुवा कि उनकी प्राण प्रिय ने अपमान के कारण आत्मदाह कर दिया है तो उन के क्रोध का पारावार नहीं रहा। वो अत्यन्त कुपित हुवे, उनकी स्वाँस व प्रस्वाँस से अग्नी की लपटें निकलने लगीं, उन्चासों पवन आँघी तूफान बन कर स्तिथी को प्रलयकारी करने लगी, महाकाल का विक्षोभ एक ही तरह से शान्त हो सकता था कि उनकी प्राण प्रिया को पुन: जीवित किया जाये।
मैं कथा की गहराई में ना जा कर डिकारे के महत्व को बताती हूँ ..
पुन: जन्म में हिमालय की पुत्री पार्वति ने भगवान शिव को पाने के लिये कठोर तपस्या की, इसी दिन शिव का माँ पार्वति सेे विवाह हुवा था व शिव परिवार बना था। अत: अपने परिवार की खुशहाली के लिये डिकारे बनाये व पूजे जाते हैं।
सावन का महिना व डिकर पूजा
डिकारे मिट्टी द्वारा निर्मित शिव परिवार की मूर्तीयों को बोलते हैं, जिसमें शिव जी, माँ पार्वति, गणेश जी व कार्तिकेय सहित नन्दी व मूषक भी होते हैं, ये उसी पात्र में जिस में हरेला बोया जाता है, उसी में स्थापित किये जाते हैं...


सावन का महिना व डिकर पूजा
लेखिका: प्रेमा पांडे
हरेला बोना धन सम्पत्ति, घर के सदस्यों की आरोग्यता की कामना के लिये होता है, दसवें दिन इसे काटा जाता है, व घर की बेटीयाँ रोली चन्दन से घर के सदस्यों का टीका करती हैं, व उनके दीर्घायू व सुखी जीवन की कामना करते हुवे सब सदस्यों को हरेला धारण करवाती हैं।
हरेला काटने के पहले, नवें दिन को रात्री में डिकर पूजा होती है।
डिकार (डिकारे) क्या होते हैं ?
मान्यता है सावन के माह में शिव धरती पर विचरण करते हैं व जन मानुष में उनके प्रति आस्था बहुत बढ जाती है।
पुन: जन्म में हिमालय की पुत्री पार्वति ने भगवान शिव को पाने के लिये कठोर तपस्या की, इसी दिन शिव का माँ पार्वति सेे विवाह हुवा था व शिव परिवार बना था। अत: अपने परिवार की खुशहाली के लिये डिकारे बनाये व पूजे जाते हैं।
सावन का महिना व डिकर पूजा
डिकारे मिट्टी द्वारा निर्मित शिव परिवार की मूर्तीयों को बोलते हैं, जिसमें शिव जी, माँ पार्वति, गणेश जी व कार्तिकेय सहित नन्दी व मूषक भी होते हैं, ये उसी पात्र में जिस में हरेला बोया जाता है, उसी में स्थापित किये जाते हैं...

डिकारे मिट्टी द्वारा निर्मित शिव परिवार की मूर्तीयों को बोलते हैं, जिसमें शिव जी, माँ पार्वति, गणेश जी व कार्तिकेय सहित नन्दी व मूषक भी होते हैं, ये उसी पात्र में जिस में हरेला बोया जाता है, उसी में स्थापित किये जाते हैं...

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