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श्री नैननाथ रावल जी |
पारंपरिक कुमाऊँनी गायन शैली के गायकों में श्री नैननाथ रावल जी एक जाना पह्चाना नाम हैं। न्योली गायन तथा जागर गायन में श्री नैन नाथ रावल जी के स्तर का उत्तराखण्ड राज्य में कोई गायक नहीं है। यह हो सकता है कि लोकप्रियता और पुरस्कार प्राप्त करने में कुछ कलाकार उनसे आगे नजर आते हों पर गायन शैली से जो प्रभाव नैननाथ रावल जी ने पैदा किया है उसका कोई मुकाबला नही है।
श्री नैननाथ रावल जी का जन्म १३ मई १९४३ को अल्मोड़ा जनपद के दन्या क्षेत्र के सिरौड़ा गांव में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री टिकानाथ रावल तथा माता जी का नाम बिशनी देवी था। रावल जी परिवार में कुल छह भाई थे, जिनमें से रावल जी के अलावा एक भाई और जीवित हैं। नैननाथ रावल ने प्रारम्भिक सिक्षा कक्षा 6 तक दन्या के विद्यालय से ही प्राप्त की। उसके बाद आप दिल्ली आ गये और 7 वीं और 8 वीं की पढ़ाई दिल्ली के विद्यालय से प्राप्त की।
पारिवारिक स्थिति तथा गायन मे रुचि के कारण आप ने आठवीं के बाद पढाई छोड़ दी और छोटी-मोटी नौकरी के साथ गायन का प्रयास आरम्भ किया। कुछ साल बाद बैंक में टेंमपरेरी कर्मचारी के रूप मे कार्य करते रहे। बैंक में अस्थायी कर्मी के रूप में कार्य करते हुये वर्ष 1970 में आपकी नौकरी बैंक में परमानेंट नौकरी लग गई। परन्तु यह नौकरी रावल जी को रास नही आयी और एक साल में ही आपने यह नौकरी छोड़ दी। आप बताते है कि जिस दिन 1971 में भारत और पाकस्तिान का युद्ध शुरू हुआ था उसी दिन 14 जनवरी को आपने नौकरी छोड़ी थी। उसके बाद आपने अपनी जिन्दगी गायकी को ही सुपुर्द कर दी।
आपको गाने का शौक बचपन से ही था। गाने की प्रेरणा आप को अपने आस पास के लोक से मिली। उ स वक्त के लोकगायक मोहन सिंह रीठागड़ी जी से प्रेरित होकर आपने गीत गाने शुरू किये। इन्ही को सुनकर प्रयास करते करते गीत गाना शुरू किया। जागेश्वर में एक बार किसी कार्यक्रम में रीठागड़ी जी के साथ आप को गाना गाने का मौका मिला, उन्ही के आर्शीवाद से आपने अपने गायन कला को आगे बढ़ाया। स्वयं श्री रावल जी के शब्दों में उन्होने उस समय के सभी प्रमुख पारंपरिक गायकों जैसे मोहन सिंह रिठागाड़ी, रामचन्द्र पंत आदि के साथ जागेश्वर मेले में भग्नौल गायन में संगत और प्रतियोगिता की थी।
प्रसिद्ध गायक श्री चन्द्र सिंह राही जी का भी रावल जी के संगीत सफ़र को आगे बढ़ाने में विशेष योगदान रहा। नैननाथ रावल जी बताते हैं कि उनकी गायकी से प्रभावित होकर राही जि ने ही उनको गीतों की कैसेट बनवाकर रिलीज करने हेतु प्रेरित किया। जिसके बाद राही जी के प्रयासों से ही रावल जी को कैसेट कम्पनियॊं से सम्पर्क करने और और गीतों की रिकॉर्डिंग कर कैसेट के रूप में प्रस्तुत करने का अवसर मिला। दिल्ली में नैननाथ रावल जी ने सबसे पहली रिकार्डिंग हीरदा कुमाउनी कैसेट कम्पनी के लिये की थी। उसके बाद रावल जी ने रामा कैसेट कम्पनी, नीलम कैसट कम्पनी और टी-सीरीज आदि के लिए भी गीतों की रिकार्डिंग की। अब तक आपने कुल मिलाकर लगभग 124 संगीत एल्बम/कैसेट के लिए गीतों की रिकार्डिंग की है। आपने आकाशवाणी तथा दूरदर्शन के माध्याम से भी कई कुमाऊँनी गीत गाये हैं।
उत्तराखण्ड के गायकों में रावल जी श्री चन्द्र सिंह राही के अलावा श्री नरेन्द्र सिंह नेगी को एक प्रतिभाशाली और महान संगीत कलाकार मानते हैं। नरेन्द्र सिंह नेगी जी भी रावल जी का बड़ा सम्मान करते हैं तथा विभिन्न अवसरों पर नेगी जी द्वारा रावल जी को बुलाकर अपने ग्रुप के साथ स्टेज पर प्रस्तुति देने का अवसर दिया गया है। नये गायकों के बारे में पूछे जाने पर रावल जी गायकों में श्री प्रह्लाद सिंह मेह्ररा और गायिकाओं में मीना राणा जी को बहुत प्रतिभावान कलाकार मानते हैं। वैसे वह आजकल के कुमाऊँनी कलाकारों की गायकी से वह निराश ही नजर आते हैं क्योंकि उनके अनुसार ज्यादातर नये कलाकार गायकी की पुरानी परंपराओं के प्रति अंजान और कुछ हद तक संवेदनहीन भी हैं।
आज के समय में श्री नैन नाथ जी को कुमाउँनी गीतों का भीष्म पितामह भी कहा जाता है। हम आगे भी नैननाथ रावल जी के गायन व संगीत के बारे में चर्चा करते रहेंगे। यहां पर प्रस्तुत है श्री नैननाथ रावल जी के द्वारा दिये गये एक साक्षात्कार की ऑडियो जिसमॆं उन्होने अपने संगीत व निजी जीवन के बारे में स्वय़ं ही बताया है:-
श्री नैननाथ रावल जी का जन्म १३ मई १९४३ को अल्मोड़ा जनपद के दन्या क्षेत्र के सिरौड़ा गांव में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री टिकानाथ रावल तथा माता जी का नाम बिशनी देवी था। रावल जी परिवार में कुल छह भाई थे, जिनमें से रावल जी के अलावा एक भाई और जीवित हैं। नैननाथ रावल ने प्रारम्भिक सिक्षा कक्षा 6 तक दन्या के विद्यालय से ही प्राप्त की। उसके बाद आप दिल्ली आ गये और 7 वीं और 8 वीं की पढ़ाई दिल्ली के विद्यालय से प्राप्त की।
पारिवारिक स्थिति तथा गायन मे रुचि के कारण आप ने आठवीं के बाद पढाई छोड़ दी और छोटी-मोटी नौकरी के साथ गायन का प्रयास आरम्भ किया। कुछ साल बाद बैंक में टेंमपरेरी कर्मचारी के रूप मे कार्य करते रहे। बैंक में अस्थायी कर्मी के रूप में कार्य करते हुये वर्ष 1970 में आपकी नौकरी बैंक में परमानेंट नौकरी लग गई। परन्तु यह नौकरी रावल जी को रास नही आयी और एक साल में ही आपने यह नौकरी छोड़ दी। आप बताते है कि जिस दिन 1971 में भारत और पाकस्तिान का युद्ध शुरू हुआ था उसी दिन 14 जनवरी को आपने नौकरी छोड़ी थी। उसके बाद आपने अपनी जिन्दगी गायकी को ही सुपुर्द कर दी।
आपको गाने का शौक बचपन से ही था। गाने की प्रेरणा आप को अपने आस पास के लोक से मिली। उ स वक्त के लोकगायक मोहन सिंह रीठागड़ी जी से प्रेरित होकर आपने गीत गाने शुरू किये। इन्ही को सुनकर प्रयास करते करते गीत गाना शुरू किया। जागेश्वर में एक बार किसी कार्यक्रम में रीठागड़ी जी के साथ आप को गाना गाने का मौका मिला, उन्ही के आर्शीवाद से आपने अपने गायन कला को आगे बढ़ाया। स्वयं श्री रावल जी के शब्दों में उन्होने उस समय के सभी प्रमुख पारंपरिक गायकों जैसे मोहन सिंह रिठागाड़ी, रामचन्द्र पंत आदि के साथ जागेश्वर मेले में भग्नौल गायन में संगत और प्रतियोगिता की थी।
प्रसिद्ध गायक श्री चन्द्र सिंह राही जी का भी रावल जी के संगीत सफ़र को आगे बढ़ाने में विशेष योगदान रहा। नैननाथ रावल जी बताते हैं कि उनकी गायकी से प्रभावित होकर राही जि ने ही उनको गीतों की कैसेट बनवाकर रिलीज करने हेतु प्रेरित किया। जिसके बाद राही जी के प्रयासों से ही रावल जी को कैसेट कम्पनियॊं से सम्पर्क करने और और गीतों की रिकॉर्डिंग कर कैसेट के रूप में प्रस्तुत करने का अवसर मिला। दिल्ली में नैननाथ रावल जी ने सबसे पहली रिकार्डिंग हीरदा कुमाउनी कैसेट कम्पनी के लिये की थी। उसके बाद रावल जी ने रामा कैसेट कम्पनी, नीलम कैसट कम्पनी और टी-सीरीज आदि के लिए भी गीतों की रिकार्डिंग की। अब तक आपने कुल मिलाकर लगभग 124 संगीत एल्बम/कैसेट के लिए गीतों की रिकार्डिंग की है। आपने आकाशवाणी तथा दूरदर्शन के माध्याम से भी कई कुमाऊँनी गीत गाये हैं।
उत्तराखण्ड के गायकों में रावल जी श्री चन्द्र सिंह राही के अलावा श्री नरेन्द्र सिंह नेगी को एक प्रतिभाशाली और महान संगीत कलाकार मानते हैं। नरेन्द्र सिंह नेगी जी भी रावल जी का बड़ा सम्मान करते हैं तथा विभिन्न अवसरों पर नेगी जी द्वारा रावल जी को बुलाकर अपने ग्रुप के साथ स्टेज पर प्रस्तुति देने का अवसर दिया गया है। नये गायकों के बारे में पूछे जाने पर रावल जी गायकों में श्री प्रह्लाद सिंह मेह्ररा और गायिकाओं में मीना राणा जी को बहुत प्रतिभावान कलाकार मानते हैं। वैसे वह आजकल के कुमाऊँनी कलाकारों की गायकी से वह निराश ही नजर आते हैं क्योंकि उनके अनुसार ज्यादातर नये कलाकार गायकी की पुरानी परंपराओं के प्रति अंजान और कुछ हद तक संवेदनहीन भी हैं।
आज के समय में श्री नैन नाथ जी को कुमाउँनी गीतों का भीष्म पितामह भी कहा जाता है। हम आगे भी नैननाथ रावल जी के गायन व संगीत के बारे में चर्चा करते रहेंगे। यहां पर प्रस्तुत है श्री नैननाथ रावल जी के द्वारा दिये गये एक साक्षात्कार की ऑडियो जिसमॆं उन्होने अपने संगीत व निजी जीवन के बारे में स्वय़ं ही बताया है:-
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