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पहाड़ की याद - कुमाऊँनी कविता

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पहाड़ की याद

रचनाकार: चम्पा पान्डे

कसि मजबूरी हयी हमुलै छोड़ पहाड़ा,
हरिया भरिया स्यारा रंगीलौ म्यर पहाड़ा,,
द्वि रव्टा खातीरा ओ भुली हमुलै छौड़ौ पहाड़ा। ओ बैणा हमुलै.....

हमरौ पहाड़ा मजी रोजगार कम जै हुछी,
यै लिजी मजबुरी में हमूलै घरबार छौड़ी,,
आज यूं बाज् कुडबाडी कैं देखी म्यर झुरुछौ पराणा। ओ बैणा म्यर झुरुछौ पराणा....

यौ पहाडै़ देवभूमि में बाणी - बाणी देवों का वासा,
गाड़ गध्यारा लै बही रैंछौ मेरी गंगा माता,,
कतु भौलौ लागुछौ ओ भुली गंगा में डुबकी लगुणा। ओ बैणा गंगा में डुबकी लगुणा.....

देवों की देवभूमि में भौत छिना तीरथ धामा,
एक धार् केदारनाथा दुसौर धार् बद्री धामा,,
के भाला छाजि रनी ओ भुली हिमाला का ऊँचा डाना। ओ बैणा हिमाला का ऊँचा डाना.....

कुमाऊँ मण्डला मजी डान कना में देवी थाना,
के भौलौ रंग जमी रौ मानिला कौ हरिया डाना,,
दूर परदेश मजी याद औछौ घुघुती कौ घुर-घुराणा। ओ बैणा घुघुती कौ घुर घुराणा.....

रंगीलौ पहाड़ा मजी मन्खी लै रंगीला हनी,
ब्या बरेती खेल कौतिकौं में झ्वाड़ा चॉचरी कनी ,,
यौ माटी कौ पुतवौ परदेस छौ मन आपणा पहाड़ा।।  ओ बैणा मन आपणा पहाडा़......
द्वि रव्टा खातीरा ओ.........
धन्यवाद

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